महामारी के दौरान हमारी सरकार और पुलिसिया बर्ताव

भविष्य में जब भी कोरोना महामारी को हम याद करेंगे तो ये सब तस्वीरें हमारे आगे तैरती हुई मिलेंगी.

WrittenBy:मनदीप पुनिया
Date:
Article image

सामान्य तौर पर, केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्य महामारी के दौरान अपने कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण देने में अधिक सक्रिय थे. इन राज्यों ने पीपीई किट आदि जैसे सुरक्षा उपकरणों की बेहतर उपलब्धता भी थी, जबकि बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इन मानकों के तहत सबसे कम तैयार थे. अगर पुलिस विभाग की चुनौतियों को देखें तो, आधे पुलिस कर्मियों (52%) को कर्मचारियों की कमी उनपर लादे जा रहे काम के बोझ का एक बड़ा कारण नजर आई. नतीजतन, पुलिस कर्मियों को काम का अधिक बोझ उठाना पड़ रहा था. पांच में से चार (78%) पुलिस कर्मियों ने लॉकडाउन के दौरान दिन में कम से कम 11 घंटे काम करने की सूचना दी. एक चौथाई से अधिक (27%) ने कथित तौर पर लॉकडाउन के दौरान दिन में कम से कम 15 घंटे काम करने की जानकारी दी.

लॉकडाउन के दौरान पुलिस पर मीडिया की कवरेज उसकी विस्तारित भूमिका को दृढ़ता से दर्शाती है. मीडिया, पुलिस द्वारा प्रवासियों के साथ की जा रही बर्बरताओं के साथ-साथ उसके द्वारा किए गए नेक कार्यों को भी कवर कर रही थी. आपको गाना गाकर कोरोना के बारे में जागरूकता फैलाने वाले पुलिसकर्मी याद होंगे. पुलिस शुरुआती हफ्तों के दौरान भोजन और आवश्यक आपूर्ति वितरित करने में भी शामिल थी. इसके अलावा, पुलिस जागरूकता के लिए अलग-अलग रोचक प्रयोग भी कर रही थी, जैसे रचनात्मक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाने वाले पुलिसकर्मी नाच रहे थे, गा रहे थे, जरूरतमंदों को मास्क, दवाएं आदि वितरित कर रहे थे और नागरिकों के घर अचानक पहुंचकर उनके जन्मदिन आदि मनाने की वीडियोज भी हमने खूब देखे. लेकिन इन सब रचनात्मकताओं की संख्या काफी कम थी.

इसके अलावा मीडिया ने पुलिस द्वारा लॉकडाउन को लागू करने के लिए ड्रोन कैमरा, फेस डिटेक्शन टेक्नोलॉजी, जीपीएस सक्षम सिस्टम जैसे जियोफेंसिंग आदि जैसे नए निगरानी उपकरणों का व्यापक रूप से उपयोग करने की भी खूब कवरेज की थी. पुलिसिंग के लिए उन्नत तकनीक पर बढ़ती निर्भरता को मीडिया से खूब प्रशंसा मिली, लेकिन इस दौरान उनकी वैधता, नियमों के पालन और डेटा सुरक्षा विधियों से संबंधित कुछ सवाल उठाए गए थे. हालांकि उस समय मीडिया रिपोर्टों के विश्लेषण में लॉकडाउन के दौरान सरकारी नीतियों या पुलिस के व्यवहार का बहुत कम आलोचनात्मक मूल्यांकन दिखा.

महामारी की दो लहरें बीत जाने के बाद भी हमारे पास नागरिक और पुलिस संबंधों का विश्लेषण करने के लिए हमारी स्थाई स्मृति में जगह बनाई तस्वीरों और मीडिया कवरेज के अलावा ज्यादा कुछ हाथ में नहीं है. इस वजह से भी हम अपनी पुलिस व्यवस्था पर बहुत ढ़ंग से बात नहीं कर पाते. मेरा मानना है कि पुलिसिंग पर ठीक से न बात करने से भी हमारी पुलिस को गरीब, वंचित और हाशिए पर रहे समुदायों को जानवारों की तरह हांकने का आत्मविश्वास मिल जाता है.

Also see
article imageकोरोना महामारी के बीच ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना के प्रचार के लिए योगी सरकार ने खर्च किए 115 करोड़
article imageयह खामोश महामारी रोगाणुरोधी प्रतिरोध, कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन जितनी ही विनाशकारी है

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like