दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
कोरोना की दहशत ने इस साल दशहरा, दुर्गापूजा को बैरंग ही विदा कर दिया. लेकिन बिहार के चुनावों ने उत्सव की गर्मी को मेंटेन किए रखा. धर्म का उत्सव न सही, लोकतंत्र का ही सही. इस बहाने हमने इस बार की टिप्पणी में धृतराष्ट्र और संजय के माध्यम से सामयिक भारत के राजनीतिक गलियारों में हो रही उठापटक पर एक व्यंग्यात्मक दृष्टि डाली है.
डंकापति द्वारा हवा से पानी और ऑक्सिजन सोख लेने के विचार पर धृतराष्ट्र और संजय के बीच हुई दिलचस्प बातचीत का एक नमूना पढ़िए- धृतराष्ट्र बेसब्र होकर बोले- डंकापति ने ऐसा क्या कर दिया. संजय बोले- उन्होंने हवा से पानी निकालने का आह्वान करके हवा की हवा खराब कर दी है और पानी को पानी-पानी कर दिया है. इसके अलावा बिहार के चुनावों को लेकर भी दोनो के बीच लंबी वार्ता हुई.
धृतराष्ट्र संजय संवाद के अलावा मीडिया के अंदरखाने से निकली कुछ और कहानियों का जिक्र भी हुआ. मसलन पाकिस्तानी संसद में वोटिंग-वोटिंग के नारे को मोदी-मोदी के नारे से जोड़ने वाले राजत शर्मा का शो या फिर रोहित सरदाना द्वारा दिन ब दिन बदलने वाली चुनावी मुद्दे की कवरेज, सब पर इस हफ्ते की टिप्पणी. लेकिन सबसे दिलचस्प रहे दो साक्षात्कार. पहला अंजना ओम कश्यप और श्वेता सिंह द्वारा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का और दूसरा एबीपी न्यूज़ की रिपोर्टर द्वारा मनोज तिवारी और रविकिशन का. दोनों ही इंटरव्यू, इंटरव्यू के अलावा भी बहुत कुछ बताते हैं. इस पर शायर कलीम आजिज़ की एक ग़ज़ल पढ़िए-
मेरे ही लहू पर गुज़र-औक़ात करो हो, मुझ से ही अमीरों की तरह बात करो हो
दिन एक सितम एक सितम रात करो हो, वो दोस्त हो दुश्मन को भी तुम मात करो हो
हम ख़ाक-नशीं तुम सुख़न-आरा-ए-सर-ए-बाम, पास आ के मिलो दूर से क्या बात करो हो
हम को जो मिला है वो तुम्हीं से तो मिला है, हम और भुला दें तुम्हें क्या बात करो हो
यूँ तो कभी मुँह फेर के देखो भी नहीं हो, जब वक़्त पड़े है तो मुदारात करो हो
दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़, तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो
बकने भी दो 'आजिज़' को जो बोले है बके है, दीवाना है दीवाने से क्या बात करो हो