भारत का उत्तर-पश्चिम, मध्य और दक्षिणी इलाका बना लू का नया हॉटस्पॉट

पिछले 50 वर्षों के दौरान देशों में लू की आवृत्ति, तीव्रता और अवधि में इजाफा हुआ है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य कृषि, अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है.

WrittenBy:ललित मौर्या
Date:
Article image

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि पिछले 50 वर्षों में देश का उत्तर-पश्चिम, मध्य और दक्षिण-मध्य क्षेत्र लू के नए हॉटस्पॉट में बदल चुका है. जहां रहने वाली एक बड़ी आबादी पर स्वास्थ्य संकट मंडरा रहा है. ऐसे में इस अध्ययन में न केवल यहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर मंडराते खतरे पर ध्यान देने के साथ ही इन तीनों क्षेत्रों के लिए एक प्रभावी हीट एक्शन प्लान विकसित करने की योजना पर बल दिया गया है. यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्लाइमेटोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.

इस बारे में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार पिछले कुछ दशकों में लू स्वास्थ्य के लिए एक घातक खतरे के रूप में उभरी है. जो हजारों लोगों के लिए मृत्युदूत बन चुकी है. यदि भारत को देखें तो वो भी इसकी जद से बाहर नहीं है. पिछले 50 वर्षों के दौरान देशों में लू की आवृत्ति, तीव्रता और अवधि में इजाफा हुआ है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य कृषि, अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है.

गौरतलब है कि भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो आर के माल के नेतृत्व में सौम्या सिंह और निधि सिंह ने पिछले सात दशकों के दौरान हीटवेव और गंभीर हीटवेव में स्थानिक और अस्थायी रुझानों में आए बदलावों का अध्ययन किया है.

इस शोध में पश्चिम बंगाल और बिहार के गंगीय से पूर्वी क्षेत्र और भारत के उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य क्षेत्र में लू की घटनाओं के स्थानिक-सामयिक प्रवृत्ति में बदलाव देखा गया है. यही नहीं शोध में पिछले कुछ दशकों के दौरान लू की घटनाओं का दक्षिण की ओर विस्तार देखा गया है. साथ ही गंभीर हीटवेव की घटनाओं में भी स्थानिक वृद्धि दर्ज की गई है. शोध में हीटवेव और गंभीर हीटवेव की घटनाओं का ओडिशा और आंध्र प्रदेश में मृत्युदर के साथ गहरा संबद्ध भी पाया गया है, जो दर्शाता है कि हमारा स्वास्थ्य इन गंभीर हीटवेव के प्रति कितना अधिक संवेदनशील है.

बढ़ते तापमान के साथ देश में आम हो जाएगा लू का कहर

हाल ही में द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि भारत में भीषण गर्मी के कारण हर साल औसतन 83,700 लोगों की जान जाती है. हालांकि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, उससे गर्मीं के कारण होने वाली मौतों में भी वृद्धि हो रही है, जो स्पष्ट तौर पर यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में स्थिति और खराब हो सकती है.

जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में छपे अध्ययन में सम्भावना व्यक्त की गई है कि तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही भारत में लू का कहर आम हो जाएगा, जबकि तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से लोगों के इसकी चपेट में आने का जोखिम भी 2.7 गुणा बढ़ जाएगा.

ऐसे में उन क्षेत्रों की पहचान करना सबसे जरुरी है जहां इसका सबसे ज्यादा असर पड़ने की आशंका है. इन क्षेत्रों में तत्काल गर्मी को कम करने और उससे बचने के लिए प्रभावी उपाय और अनुकूलन रणनीतियों को प्राथमिकता देने की जरूरत के साथ ही इन क्षेत्रों के लिए प्रभावी हीट एक्शन प्लान भी विकसित करने की जरूरत है, जिससे इसके खतरे को कम से कम किया जा सके.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

Also see
article imageजलवायु परिवर्तन: भारत सहित दुनियाभर के 100 करोड़ से ज्यादा बच्चों पर मंडरा रहा गंभीर खतरा
article image2050 तक सर्दियों की अवधि घटेगी, तेज़ गर्मी, भारी बारिश और बाढ़ की घटनाएं बढ़ेंगी: आईपीसीसी रिपोर्ट

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like