दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस हफ्ते की टिप्पणी थोड़ा संक्षेप में है, क्योंकि न्यूज़लॉन्ड्री और टीम वर्क आर्ट्स का सालाना इवेंट द मीडिया रंबल इस हफ्ते 22 से 25 सितंबर तक ऑनलाइन चलेगा.
हमारे तमाम प्रोड्यूसर और वीडियो एडिटर मीडिया रंबल में व्यस्त होंगे. संयोग से बीते हफ्ते एक बड़ी तारीख पड़ी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर को पड़ा. शायद पहली बार किसी दरबारी ने सलाह दी कि इस बार जन्मदिन 21 दिन तक मनाना चाहिए. सलाह देने वाला शायद ज्योतिष प्रेमी था. उसने ग्रहों की दशा और उपग्रहों की दुर्दशा के हिसाब से गणना करके बताया कि इस बार अगर 21 दिन तक प्रधानमंत्री का जन्मदिन मना लिया जाए तो अगले 21 सालों तक देश की सत्ता में बने रहने का शगुन है. फिर क्या सरकार, क्या अखबार, क्या पार्टी और क्या मीडिया. बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवानों की संख्या भी कम न थी.
प्रधानमंत्री जी को हमारी ओर से भी सुखद, सफल और दीर्घायु होने की शुभकामना.
हम यहां दीवाने अब्दुल्लाओं की बात नहीं करेंगे, हम बात करेंगे अपने देश के कर्मठ, निर्भीक और रीढ़विहीन खबरिया चैनलों की. अपने याद भर में हमने ऐसा जन्म किसी का नहीं देखा. इस मौके पर भारत के टेलीविज़न मीडिया ने भारत के एक लोकतांत्रिक देश होने की मर्यादा, लाज-शरम सब उतार फेंकी.
भारत के खबरिया चैनलों ने जो किया उसे एकमात्र चुनौती उत्तर कोरिया के स्टेट मीडिया से मिल सकती है. लेकिन हमारे हुड़कचुल्लुओं ने उत्तर कोरिया वाले अपने भाई बंधुओं को भी मीलों पीछे छोड़ दिया. तो इस बार की संक्षिप्त टिप्पणी उत्तर कोरिया बन चुके भारत के खबरिया चैनलों पर.