द न्यूयॉर्क टाइम्स, हिंदी को चलते फिरते मत इस्तेमाल कीजिए

द न्यूयॉर्क टाइम्स में पहली बार छपी एक हिंदी रिपोर्ट की समीक्षा.

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जुलाई 2020 में डॉ. भार्गव ने एजेंसी के वैज्ञानिकों के लिए दो निर्देश जारी किए जिन्हें उनके आंतरिक आलोचकों ने राजनीति से प्रेरित माना.

उनके पहले निर्देश में, कई संस्थानों के वैज्ञानिकों को केवल छह हफ्ते में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एक कोरोनावायरस वैक्सीन को मंजूरी दिलवाने के लिए मदद करने का आह्वान किया गया. 2 जुलाई के एक ज्ञापन के मुताबिक डॉ. भार्गव ने कहा कि एजेंसी का लक्ष्य भारत के स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त तक वैक्सीन को मंजूरी देना है. इस त्रापन की समीक्षा न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी की है. इस दिन प्रधानमंत्री मोदी अक्सर देश के आत्मनिर्भर होने को बढ़ावा देते हैं. इस ज्ञापन में साफ लिखा था, "कृपया ध्यान दें कि नाफरमानी को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा.”

इस मांग ने एजेंसी के वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया. दूसरे देशों में नियामक संस्थाएं अभी वैक्सीन की मंजूरी से महीनों दूर थीं. यह समय सारणी सार्वजनिक होने के बाद एजेंसी के शीर्ष अधिकारी इससे पीछे हट गए. (भारतीय अधिकारियों ने वैक्सीन को मंजूरी महीनों बाद जनवरी में दी.)

भारत में दूसरी कोविड लहर के दौरान श्मशान घाट

जुलाई 2020 के अंत में जारी किए गए डॉ. भार्गव के दूसरे निर्देश में वैज्ञानिकों को उन आंकड़ों को जारी न करने के लिए मजबूर किया गया जो वायरस के अभी भी 10 शहरों में फैलने की तरफ इशारा करते थे. यह जानकारी अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों और ई-मेल से पुष्ट हुई.

यह डाटा आईसीएमआर के सीरोलॉजिकल अध्ययनों से आया था, जिसमें खून के नमूनों में एंटीबॉडी की मौजूदगी के आधार पर बीमारी की निशानदेही की गई थी. डाटा में रोकथाम के प्रयासों के बावजूद, दिल्ली और मुंबई सहित कुछ अन्य इलाकों में संक्रमण की दर अधिक दिख रही थी. न्यूयॉर्क टाइम्स के द्वारा जांच की गई 25 जुलाई की एक ईमेल में डॉ. भार्गव ने वैज्ञानिकों को बताया कि डाटा प्रकाशित करने के लिए "मुझे मंजूरी नहीं मिली है."

डॉ. भार्गव लिखते हैं, "आप लोग एक अजूबी दुनिया में बैठे हैं और स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ रहे. मैं सही में बहुत निराश हूं."

अध्ययन पर काम करने वाले एक चिकित्सक नमन शाह ने कहा कि, डाटा पर रोक ने विज्ञान और लोकतंत्र के खिलाफ काम किया.

वो कहते हैं, "यह ऐसी सरकार है जिसकी सोच और इतिहास स्पष्ट रहा है कि हर संस्थान पर कब्जा करके उसे राजनीतिक संघर्ष का अखाड़ा बनाया जाए और सत्ता के लिए उसका इस्तेमाल किया जाए."

जो डाटा आईसीएमआर ने जारी किया, उसने अधिकारियों को देश और दुनिया के सामने यह कुतर्क पेश करने में मदद की, कि कोरोना वायरस भारत में उतनी तेज़ी से नहीं फैल रहा जितना कि अमेरिका, ब्राज़ील, ब्रिटेन और फ्रांस में फैल रहा है.

फिर सितंबर में एजेंसी द्वारा स्वीकृत एक अध्ययन ने यह गलत इशारा दिया कि महामारी का सबसे बुरा कालखंड समाप्त हो गया है.

भारत में सुपरमॉडल के नाम से ज्ञात इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि फरवरी 2021 के मध्य तक भारत में महामारी खत्म हो जाएगी. उसने 2020 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लगाए गए लॉकडाउन का हवाला दिया. अध्ययन ने कहा कि देश शायद हर्ड इम्यूनिटी की स्थिति तक पहुंच गया है, क्योंकि 35 करोड़ (350 मिलियन) से अधिक लोग या तो संक्रमित हो चुके थे या उनमें एंटीबॉडी विकसित हो गई थीं. इस अध्ययन की जानकारी रखने वाले डॉ. अग्रवाल और अन्य लोगों ने कहा कि एजेंसी ने अध्ययन की मंजूरी को फास्ट-ट्रैक किया.

प्रधानमंत्री मोदी देश को संबोधित करते हुए

एजेंसी के अंदर काम करने वाले और बाहर के वैज्ञानिकों ने अध्ययन की समीक्षा कर उसे तार-तार कर दिया. अन्य कोई भी देश हर्ड इम्युनिटी के आस-पास तक नहीं थे. बड़ी संख्या में भारत में लोग अभी संक्रमित भी नहीं हुए थे. अध्ययन को लिखने वाले लेखकों में से कोई भी एपिडेमियोलॉजिस्ट अर्थात महामारी विशेषज्ञ नहीं था. कुछ वैज्ञानिकों ने कहा की ऐसा प्रतीत होता है कि मॉडल को निष्कर्ष पर फिट करने के लिए इसके डिजाइन में हेराफेरी की गई.

सोमदत्ता सिन्हा एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक हैं जो संक्रामक रोग मॉडलों का अध्ययन करते हैं. उन्होंने इस अध्ययन के खंडन में लिखा, "उनके पास वो मापदंड थे जिन्हें मापा नहीं जा सकता और जब भी कर्व मेल नहीं खाते थे, तो उन्होंने उस मापदंड को बदल दिया. मेरा मतलब है कि हम इस तरह से मॉडलिंग नहीं करते. यह लोगों को गुमराह करना है."

एजेंसी में पहले से काम करने वाले चिकित्सक डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि उन्होंने अक्टूबर में अपनी चिंताओं को डॉक्टर भार्गव के सामने रखा था. उन्होंने तब कहा, “इसका उनसे कोई लेना देना नहीं है." वे बताते हैं, “इसके बाद डॉ. भार्गव ने अध्ययन पर चिंता जताने वाले एक और वैज्ञानिक को बुलाया और उन दोनों को फटकार लगाई.”

'सुपरमॉडल' को बनाने वाली समिति के अध्यक्ष एम विद्यासागर ने इस विषय पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया. मई में जब देश दूसरी लहर की चपेट में था, भारत के विज्ञान अधिकारियों ने कहा कि पैनल का गणित पर आधारित मॉडल "केवल सीमित निश्चितता के साथ आगे की भविष्यवाणी कर सकता है, जब तक वायरस की गतिशीलता और फैलने की क्षमता समय के साथ बहुत ज्यादा नहीं बदलती है."

जनवरी 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन ने दूसरी लहर की भविष्यवाणी की थी. नेचर जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन ने कहा कि इस तरह का प्रकोप "किसी अन्य प्रकार की रोकथाम के बिना" फिर से फैल सकता है. अध्ययन ने और अधिक टेस्टिंग की मांग की. इस मामले से परिचित लोगों ने बताया कि, इस अध्ययन के लेखकों में से एक आईसीएमआर में कार्यरत थे लेकिन संस्था के नेतृत्व ने उन्हें उनके एजेंसी से संबंध को हटा देने के लिए मजबूर किया.

दूसरी लहर के दौरान कोविड मरीज

दूसरी लहर अप्रैल में आई. मरीजों की बड़ी संख्या अस्पतालों की क्षमता के पार होने पर, भारत के स्वास्थ्य अधिकारियों ने उन उपचारों तक की सिफारिश की जिन्हें सरकार के अपने वैज्ञानिकों ने बेअसर पाया था.

ऐसे उपचारों में से एक था रक्त प्लाज़्मा. डॉ. अग्रवाल और उनके सहयोगी महीनों पहले इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि रक्त प्लाज्मा किसी भी प्रकार से कोविड-19 के मरीजों के लिए लाभकारी नहीं होता है. मई में एजेंसी ने इस सलाह को देना बंद कर दिया.

सरकार अभी भी एक-दूसरे उपचार, भारत में निर्मित मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की सिफारिश करती है, जबकि इस दवा के कोविड-19 में अप्रभावी होने के बड़ी मात्रा में वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं. हताश व असहाय परिवारों ने दूसरी लहर के दौरान इन दोनों चीजों को किसी भी तरह पाने के लिए हाथ पांव मारे, जिससे इनकी कालाबाजारी हुई और कीमतें आसमान छूने लगीं.

एजेंसी के वर्तमान और पूर्व वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने अपनी आवाज इसलिए नहीं उठाई क्योंकि जो उपचार चल रहे थे उनका एक राजनीतिक पक्ष भी था. मसलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने पिछले साल उनके 70वें जन्मदिन पर प्लाज्मा दान शिविरों का आयोजन किया था. भारत सरकार ने भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन को एक सामरिक उपकरण की तरह, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंप‌ और ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेयर एम बोल्सोनारो के साथ प्रभाव बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया था. ट्रंप और बोलसोनारो, दोनों ने पिछले वर्ष नई दिल्ली पर इस दवा की निर्यात सीमा बढ़ाने के लिए दबाव डाला था.

डॉ. अग्रवाल कहते हैं, "यदि आप जीवन भर कहीं काम करना चाहते हैं, तो आप लोगों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं. आप हर चीज को लेकर टकराव से बचते हैं."

डॉ. अग्रवाल ने अक्टूबर में इस्तीफा दे दिया और उसके बाद न्यू मैक्सिको स्थित गैलप में काम किया. फिलहाल वो बाॅल्टीमोर में एक चिकित्सक हैं और कहते हैं कि एजेंसी के साथ उनके अनुभव ने उन्हें भारत छोड़ने के लिए प्रेरित किया.

उन्होंने कहा, "आप अपने काम पर ही सवाल उठाना शुरू कर देते हैं. और फिर आपका उससे मोहभंग हो जाता है."

एमिली श्मॉल के योगदान के साथ.

(करन दीप सिंह नई दिल्ली स्थित पत्रकार हैं. इससे पहले वो द वॉल स्ट्रीट जर्नल के लिए काम कर चुके हैं. वहां ये उस टीम के सदस्य थे जिसका चयन 2020 के पुलित्ज़र पुरस्कार की इंवेस्टिेशन रिपोर्टिंग के फाइनलिस्ट में हुआ था. साथ ही इसे नेशनल एमी अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था. @Karan_Singhs)

सभी तस्वीरें न्यूयॉर्क टाइम्स के अंग्रेजी लेख से ली गई हैं.

***

अनुवाद शार्दूल कात्यायन ने किया है.

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