महिलाएं कैसे तालिबान का पहला और आसान शिकार बनीं?

तालिबानी शासन का पिछला दौर महिलाओं के लिए भयानक रहा था. 1996 से 2001 के बीच अफगानी महिलाएं पढ़ाई और काम नहीं कर सकती थीं.

Article image

यदि वर्ष के प्रथम छह महीनों को आधार बनाया जाए तो 2021 के पहले छह महीनों में अफगानिस्तान में हताहत महिलाओं और बच्चों की संख्या 2009 के बाद से किसी वर्ष हेतु अधिकतम संख्या है. यूएन रिफ्यूजी एजेंसी के अनुसार 2021 में अब तक लगभग 3 लाख 30 हजार अफगानी युद्ध के कारण विस्थापित हुए हैं और चौंकाने वाली बात यह है कि पलायन करने वालों में 80 प्रतिशत महिलाएं हैं जिनके साथ उनके अबोध और मासूम शिशु भी हैं. कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ यूएन स्पेशल प्रोसीजर्स की प्रमुख अनीता रामाशास्त्री के अनुसार इस तरह की बहुत सारी महिलाएं छुपी हुई हैं. तालिबानी उन्हें घर-घर तलाश कर रहे हैं. इस बात की जायज आशंका है कि इस तलाश की परिणति प्रतिशोधात्मक कार्रवाई में होगी.

अफगान महिलाओं की एक पूरी पीढ़ी स्वतंत्र वातावरण में पली बढ़ी है. उसे तालिबान के अत्याचारों का अनुभव नहीं है. यह महिलाएं चिकित्सक, शिक्षक, अधिवक्ता, स्थानीय प्रशासक और कानून निर्माताओं की भूमिका निभाती रही हैं. इनके लिए तालिबानी शासन एक अप्रत्याशित आघात की भांति है. जब वे देखती हैं कि तालिबानी अपने लड़ाकों की यौन परितुष्टि के लिए 12 से 45 वर्ष की आयु की महिलाओं की सूची बना रहे हैं, अचानक महिलाओं को खास तरह की पोशाक पहनने के लिए बाध्य किया जा रहा है, बिना पुरुष संरक्षक के उनके अकेले निकलने पर पाबंदी लगायी जा रही है और उन्हें नेतृत्वकारी स्थिति से हटाकर छोटी और महत्वहीन भूमिकाएं दी जा रही हैं तो उन्हें ऐसा लगता है कि जो कुछ थोड़ी बहुत स्वतंत्रता उन्होंने हासिल की है वह न केवल छीनी जा रही है बल्कि इस स्वतंत्रता के अब तक किए उपभोग का दंड उनकी प्रतीक्षा कर रहा है.

टोलो न्यूज़ द्वारा ट्विटर पर पोस्ट किये गए एक वीडियो में काबुल के शोमाल सराय इलाके में शरण लेने वाली दर्जनों महिलाओं को चीख-चीख कर अपनी दुख भरी दास्तान कहते देखा जा सकता है. इनके परिजनों की हत्या कर दी गयी है और इनके घरों को नष्ट कर दिया गया है. अफगानी महिला पत्रकार शाहीन मोहम्मदी के अनुसार अपने अधिकारों की मांग करती महिलाओं पर तालिबानी बर्बरता कर रहे हैं.

यद्यपि 17 अगस्त 2021 को तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा, ”शरीया कानून के मुताबिक हम महिलाओं को काम की इजाजत देंगे. महिलाएं समाज का एक महत्वपूर्ण अंग हैं और हम उनका सम्मान करते हैं. जीवन के सभी क्षेत्रों में जहां भी उनकी आवश्यकता होगी उनकी सक्रिय उपस्थिति होगी.” किंतु तालिबान जिस शरीया कानून का पालन करता है वह विश्व के अन्य मुस्लिम देशों को भी स्वीकार्य नहीं है और इसमें महिलाओं के लिए जो कुछ है वह केवल अनुशासनात्मक और दंडात्मक है. कठोर प्रतिबंध और इनका पालन करने में असफल रहने पर क्रूर एवं अमानवीय दंड इसका मूल भाव है.

महिलाओं के लिए सबसे भयानक परिस्थिति यौन दासता की होगी. लड़ाकों को तालिबान के प्रति आकर्षित करने के लिए उन्हें महिलाएं भेंट की जाती रही हैं, हालांकि इसे शादी का नाम दिया जाता है लेकिन यह है प्रच्छन्न यौन दासता ही. तालिबानियों द्वारा महिलाओं का यौन शोषण जिनेवा कन्वेंशन के अनुच्छेद 27 का खुला उल्लंघन है. वर्ष 2008 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रस्ताव 1820 के माध्यम से बलात्कार और अन्य प्रकार की यौन हिंसा को युद्ध अपराध तथा मानवता के विरुद्ध कृत्य का दर्जा दिया गया है किंतु शायद कबीलाई मानसिकता से संचालित तालिबान के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बहुत अधिक मायने नहीं रखता.

ह्यूमन राइट्स वाच की एसोसिएट एशिया डायरेक्टर पैट्रिशिया गॉसमैन अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की अपील करते हुए कहती हैं कि एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वीमेन कानून को सख्ती से लागू कराने के लिए विश्व के सभी देशों को अफगानिस्तान की सरकार पर दबाव बनाना चाहिए. अफगानिस्तान से विदेशी सेनाओं के हटने का एक परिणाम यह भी होगा कि अफगानिस्तान को मिलने वाली सहायता में कमी आएगी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की रुचि इस मुल्क के प्रति घटेगी. इसका सर्वाधिक प्रभाव महिलाओं पर पड़ेगा क्योंकि उनकी आवाज़ को मिलने वाला अंतरराष्ट्रीय समर्थन अब उपलब्ध नहीं होगा.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की प्रमुख मिशेल बचेलेट ने अगस्त 2021 में परिषद के आपात अधिवेशन को संबोधित करते हुए नए तालिबानी शासकों को चेतावनी भरे लहजे में कहा कि महिलाओं और लड़कियों के साथ किया जाने वाला व्यवहार वह आधारभूत लक्ष्मण रेखा है जिसका उल्लंघन करने पर तालिबानियों को गंभीर दुष्परिणाम भुगतने होंगे, लेकिन यह कठोर भाषा आचरण में परिवर्तित होती नहीं दिखती. अफगानिस्तान इंडिपेंडेंट ह्यूमन राइट्स कमीशन की प्रमुख शहरजाद अकबर के अनुसार अफगानिस्तान अपने सबसे बुरे दौर में है और उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहायता की जैसी जरूरत अब है वैसी पहले कभी न थी. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के मसौदा प्रस्ताव को हास्यास्पद बताया.

एशिया सोसाइटी का 2019 का एक सर्वेक्षण यह बताता है कि 85.1 प्रतिशत अफगानी ऐसे हैं जिन्हें तालिबानियों से कोई सहानुभूति नहीं है. इसके बावजूद तालिबान सत्ता पर काबिज हो चुके हैं. अफगानिस्तान गृह युद्ध की ओर बढ़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंताजनक रूप से अफगानिस्तान की आधी आबादी की करुण पुकार को अनुसना कर रहा है. चंद औपचारिक चेतावनियों और प्रस्तावों के अतिरिक्त कुछ ठोस होता नहीं दिखता. दुनिया के ताकतवर देशों के लिए अपने कूटनीतिक लक्ष्य अधिक महत्वपूर्ण हैं. उनका ध्यान इस बात पर अधिक है कि विस्फोटक, विनाशक और अराजक तालिबान को अपने फायदे के लिए किस तरह इस्तेमाल किया जाए. विश्व व्यवस्था का पितृसत्तात्मक चरित्र खुलकर सामने आ रहा है.

अफगानिस्तान के मौजूदा हालात उन लोगों के लिए एक सबक हैं जो धर्म को सत्ता संचालन का आधार बनाना चाहते हैं. परिस्थितियां ऐसी बन रही हैं कि धार्मिक कट्टरता को परास्त कर समानतामूलक लोकतांत्रिक समाज की स्थापना के लिए भावी निर्णायक संघर्ष का नेतृत्व शायद अब महिलाओं को ही संभालना पड़ेगा. महिलाओं की अपनी मुक्ति शायद पितृसत्तात्मक शोषण तंत्र का शिकार होने वाले करोड़ों लोगों की आज़ादी का मार्ग भी प्रशस्त कर सके.

लेखक छत्तीसगढ़ के रायगढ़ स्थित स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.

(साभार- जनपथ)

Also see
article imageयह हमारे इतिहास का बेहद कायर और क्रूर दौर है
article imageतालिबान से क्यों डरती हैं भारत में रह रहीं अफगानिस्तान की महिलायें?

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like