पिछले कुछ महीनों से दिल्ली के शास्त्री भवन के सामने कुछ शिक्षक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इन सभी ने आईआईटी-एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की है.
29 वर्षीय अनुराग त्रिपाठी ने आईआईटी- दिल्ली से एमटेक की पढ़ाई पूरी की है. उसके बाद से वो टेकिप-3 के अंदर बीआईटी झांसी में बतौर सहायक प्रोफेसर पढ़ा रहे हैं. वह कहते हैं, "केंद्र बार- बार राज्य सरकारों को नोटिस भेज रहा है. लेकिन राज्य सरकारें कान बंद करके बैठी हैं. पूरा कॉलेज हमारे सहारे चलता है. अगर हम ही चले गए तो केवल डायरेक्टर बचेंगे. फिर वे लोग घंटे के हिसाब से पढ़ाने वाले शिक्षक लेकर आएंगे जो सस्ते में पढ़ाते हैं. टेकिप-3 में बने रहने के लिए हर साल हमारा परफॉरमेंस अप्प्रैसल होता है. यहां बैठे अधिकतर शिक्षकों को तीन बार यह अप्प्रैसल मिल चुका है. लेकिन नौकरी नहीं मिली."
अनुराग आगे बताते हैं, "इस परियोजना के खत्म होने के समय केंद्र ने नेशनल स्टीयरिंग समिति का गठन किया. सभी ने एक सुर में कहा कि इन सभी सहायक प्रोफेसरों को शिक्षा व्यवस्था में कायम रखना जरूरी है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस परियोजना के तहत हमने ग्रामीण भारत में तकनीकी शिक्षा प्रणाली को सुधारने में अहम कदम उठाए हैं. हमारे चले जाने से यह सभी बदलाव बंद हो जाएंगे."
झारखंड के 32 वर्षीय रुबेल गुहराय यूसीईटी-वीबीयू हजारीबाद में पढ़ते हैं. उन्हें तीन साल (2%, 3% और 3%) अप्प्रैसल मिला है. वह कहते हैं. "पूरे भारत के अलग- अलग केंद्रीय कॉलेजों में छह हजार पद खाली हैं. हम लोग केवल 1200-1500 लोग हैं. फिर भी सरकार हमें शिक्षा प्रणाली में अब तक शामिल नहीं कर पा रही है. टेकिप-3 परियोजना में नियुक्त सभी शिक्षक आईआईटी और एनआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ाई पूरी करके आए हैं. केंद्र सरकार ने हम पर इतना पैसा लगाया. हमारी ट्रेनिंग कराई. आत्मनिर्भर भारत की बात की जाती है. लेकिन इन सबका क्या फायदा? अंत में हमें दरकिनार कर दिया. सारा पैसा भी बेकार चला गया और हमारे साथ-साथ हमारे विद्यार्थियों का भविष्य भी अंधेरे में डाल दिया."
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ने वाले भी सड़क पर प्रदर्शन करने को मजबूर हैं तो देश की शिक्षा प्रणाली का भविष्य कैसा होगा.
न्यूज़लॉन्ड्री ने एमएचआरडी से संपर्क करने की कोशिश की हालांकि उनसे संपर्क नहीं हो पाया.
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