परिचर्चा का मुख्य विषय हिंदी, नई वाली हिंदी को लेकर हो रही आलोचना.
बातचीत के मुख्य विषय 'नई वाली हिंदी पर हो रही राजनीति और आलोचना' पर बंसत कुमार नवभारतटाइम्स में छपे एक लेख का जिक्र करते हैं, जिसका शीर्षक है 'जाने अनजाने हिंदी को बांट रही नई वाली हिंदी'. इस पर पूछते हैं कि नई वाली हिंदी क्या है? और ये पुरानी वाली से अलग कैसे है?
इस पर दिव्य प्रकाश कहते हैं, "नई वाली हिंदी एक विश्वास है."
नीलोत्पल नई वाली हिंदी को लेकर कहते हैं, "हमारी आलोचना करने वाले ज्यादातर लोग बिना पढ़े, बिना चिंतन-मनन किए पूरे एक वर्ग का मूल्यांकन कर देते हैं. हम अपने समय को, अपने नजरिए से, अपने वक्त में बैठकर, नए प्रयोगों के साथ, नए बिम्ब के साथ जो प्रस्तुत कर रहे हैं, उसे ही हम नई वाली हिंदी कहते हैं."
डॉ. चन्द्र इस पर कहते हैं, "मैं नीलोत्पल वाली हिंदी पसंद नहीं करता. इसकी वजह ये है असगर वजाहत कहते हैं कि, इसे विदेश के लोगों को पढ़ने-समझने में आसानी होती है, मतलब कि दूसरों की आसानी के लिए हम अपनी भाषा के स्वरूप को क्यों बिगाड़ें."
बदलती भाषा को लेकर प्रोफेसर यादव का मतलब हिंदी में लगातार अंग्रेजी के प्रयोग से है.
वंदना राग कहती हैं, "जैसे-जैसे हिंदी का विकास होता गया वैसे-वैसे उसमें परिवर्तन लाजमी था. आलोचना करने से पहले हमें नई हिंदी पढ़नी होगी. हमें देखना होगा कि हम किस चीज की आलोचना कर रहे हैं लोकप्रियता की, भाषा की या कहन-कथन की कर रहे हैं."
लोकप्रियता की आलोचना के सवाल पर दिव्य प्रकाश कहते हैं, "अगर आपको एक अच्छा क्रिकेटर, साहित्यकार या पत्रकार बनना है तो इसमें सालों लग जाते हैं. लेकिन आज के समय आलोचक बनने में बस एक डेटा चाहिए."