यह आंदोलन सिर्फ एमएसपी और तीन कृषि कानूनों तक नहीं सिमटा है बल्कि अब वक्त आ गया है कि किसान मोर्चा ले, यह एक क्रांति बन चुका है.
सरकार तो योजनाओं के लिए भू-स्वामियों को किसान मानती है, आपकी नजर में इस देश में किसान कौन है?
राकेश टिकैत- सच्चाई यह है कि सरकार किसान को किसान ही नहीं मानती है. वह किसानों को छोटा-बड़ा और पता नहीं क्या-क्या बताती है. हमारी परिभाषा में पशु पालने वाला, सप्ताहिक बाजार में रेहड़ी-पठरी पर अनाज बिक्री करने वाले, खेत में काम करने वाले, नमक के लिए काम करने वाले मजदूर भी किसान हैं. जो किसान है उसे दर्जा मिलकर रहेगा. यह मजदूर आंदोलन है. गांव का आंदोलन है. हम ऐसे सभी लोगों के लिए यह आंदोलन कर रहे हैं.
आपकी नजर में 2021 में किसानों की क्या दशा है?
राकेश टिकैत- किसानों को 24 घंटे बिजली और खेती की अन्य सुविधाओं को हासिल करने के लिए मोर्चा लड़ना होगा. फिलहाल हम अभी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भारत में कम से कम किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तो मिलना ही चाहिए. सोचिए कि किसानों को एमएसपी की गारंटी लागू कराने के लिए नौ महीने से आंदोलन करना पड़ रहा है. सरकार किसान हितों के लिए काम नहीं कर रही है. यहां तक कि घोषणा पत्र में किसान हितों के लिए जो वादे किए गए थे, उन पर भी काम नहीं किया गया. जिस तरह से बाजार बढ़ा है उस तरह किसानों की आय और आमदनी नहीं बढ़ी है. किसानों का तो कत्लेआम हो रहा है. बाबा महेंद्र सही कहते थे तब गेहूं बेचकर किसान सोना खरीद लेता था. ऐसे में आज गेहूं की कीमतें किसानों को प्रति कुंतल 15 हजार रुपए मिलनी चाहिए लेकिन आज तो गेहूं की कीमतों से लागत नहीं निकल रही.
किसानों को खुले बाजार में छह रुपए किलो तक धान बेचना पड़ा है, इसका स्थगित कृषि कानूनों से क्या संबंध है?
राकेश टिकैत- यही तो है एमएसपी गारंटी कानून खत्म करने के पीछे की कहानी. सरकार मंडियों को खत्म करके किसानों को बर्बाद करना चाहती है. हम यही कह रहे हैं कि जब खरीदार और बिक्री करने वाले दोनों कॉर्पोरेट के लोग होंगे तो वही सबकुछ तय करेंगे, क्योंकि होल्डिंग की शक्ति उनके पास हैं. किसान से सस्ते भाव में फसल खरीदकर होल्ड करेंगे और वर्ष भर सस्ता-महंगा जैसा होगा बेचेते रहेंगे. यह किसानों की कमर तोड़ देगा. अभी फसलों की एमएसपी की दरें तय करने की जो प्रक्रिया है वह भी ठीक नहीं है. जो दरें फसलों पर थीं, वह उचित नहीं थीं. हालांकि पहले सरकार यह गारंटी दे फिर इन सवालों का भी हल निकाले.
आवारा पशुओं की समस्या से कृषि उत्पादक राज्य हलकान हैं, कौन जिम्मेदार है?
राकेश टिकैत- सरकार ही इसके लिए पूरी जिम्मेदार है. पशुपालन काफी महंगा हो गया है. किसान पशुओं को संभाल नहीं पा रहा. जीएम कॉटन का बिनौला (पशु आहार) जबसे आया तो तबसे पशुओं में बहुत बीमारियां आ गईं. पशु बांझपन के शिकार हो गए. किसान मजबूर होकर उन्हें बाहर छोड़ता है. सरकार को चाहिए कि वह गौशलाएं बनाए.
क्या यह एक समग्र आंदोलन है और इससे कृषि संकट का रास्ता निकलेगा?
राकेश टिकैत- यह आंदोलन तीन कृषि कानूनों को लेकर ही शुरू हुआ है. मेरा मानना है कि फसलों के जब सही रेट किसानों को मिलेंगे तभी देश के हालत सुधरेंगे. इस समय जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं और एक-एक करके संसाधनों को बेचा जा रहा है उसके खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही है. इसका एक दिन इन्हें (सरकार को) पता जरूर चलेगा. जब सरकार बातचीत के लिए एक कमेटी बनाएगी तो कृषि संकट के प्रमुख मुद्दों को भी उनके समक्ष रखा जाएगा. यह आंदोलन पूरी तरह अराजनैतिक था, है और रहेगा. इसका चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है. सरकारों को अपने गलत निर्णयों और नीतियों को वापस करना ही होगा. अब यह क्रांति बन चुका है, जो रुकेगा नहीं.
(डाउन टू अर्थ से साभार)