मुजफ्फरनगर के महापंचायत में लाखों की संख्या में लोग पहुंचे, बार-बार मंच से यह भी कहा गया कि सरकार को वोट से चोट करना होगा.
रविवार की सुबह नौ बजे के करीब मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज में बने विशालकाय मंच के सामने हमारी मुलाकात हिसार से आईं अनुलता से हुई. अनुलता रैली स्थल पर सुबह पांच बजे ही पहुंच गई थीं. वे कहती हैं, ‘‘आज सरकार को किसानों की ताकत का पता चल गया. रास्ते में हमारी बसों को रोका जा रहा है. हम शांतिपूर्ण ढंग से बैठे हैं. लाठी मारकर ये सोचते हैं कि उठा देंगे, लेकिन किसान एक ऐसी कौम है जो गर्मी, सर्दी और बारिश सब सहन कर सकती है. आप ही देखिए कि लोग कितनी गर्मी में बैठे हुए हैं. जब तक तीनों काले कानून वापस नहीं हो जाते तब तक उठेंगे नहीं.’’
महापंचायत की शुरुआत 11 बजे से होनी थी, लेकिन नौ बजे ही पूरा ग्राउंड भर गया. जितने लोग ग्राउंड के अंदर थे उससे कहीं ज़्यादा ग्राउंड के बाहर. मंच के पीछे एक फ्लाईओवर है, उसपर सैकड़ों की संख्या में किसान, नेताओं की बात सुनने के लिए खड़े थे. लोगों में इस महापंचायत का उत्साह इस हद तक था कि जगह नहीं मिलने और तेज गर्मी होने की स्थिति में लोग पेड़ पर बैठकर और माथे पर हरे पत्ते रखकर अपने नेताओं को सुन रहे थे.
तेज धूप से बचने के लिए लोगों ने पत्तों से अपने माथें को ढका हुआ था
पेड़ पर बैठक किसान नेताओं की बात सुनते आसपास से आए लोग
न्यूजलॉन्ड्री की टीम जब सुबह पांच बजे मुजफ्फरनगर में प्रवेश कर रही थी, तो हर जगह संयुक्त किसान मोर्चा के साथ-साथ राष्ट्रीय लोक दल, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का पोस्ट लगा हुआ था. राजनीतिक दलों के पोस्टर पर यहां आए किसानों का स्वागत किया जा रहा था. जगह-जगह लंगर की व्यवस्था थी.
मुजफ्फरनगर के रहने वाले संजय त्यागी इस महापंचायत को लेकर कहते हैं, ‘‘मैं बाबा टिकैत की भूमि से हूं और भारतीय किसान यूनियन का पूर्व ब्लॉक प्रमुख रहा हूं. मेरी उम्र 46 साल की है और मैं 15-16 साल की उम्र से ही किसान आंदोलनों में सक्रिय रहा हूं. इस ग्राउंड में मैंने कितनी ही मीटिंग देख लीं, और कई महापंचायत देख लीं, लेकिन इतनी बड़ी पंचायत मैंने आजतक नहीं देखी.''
त्यागी आगे कहते हैं, ''ये लोग (सरकार) कहते थे कि मुट्ठी भर किसान हैं. खालिस्तानी हैं, पाकिस्तानी हैं, हम पर बहुत इल्जाम लगाए गए. हमारे संगठन को कुचलने के लिए कई आरोप लगाए गए. लेकिन आज इन्हें पता लग गया होगा कि क्या ये मुट्ठीभर किसान हैं. यहां ग्राउंड में सिर्फ एक हिस्से के किसान हैं. बाकी इतने ही तीन हिस्से बाहर हैं. पार्किंग की व्यवस्था जिले से बाहर रखी गई है.’’
किसान महापंचायत में कितनी भीड़ आई इसको लेकर सबके अलग-अलग अनुमान है. हालांकि ज़्यादातर का यही कहना है कि उन्होंने इतनी भीड़ किसी भी महापंचायत में नहीं देखी.
बागपत के गढ़ी गांव के रहने वाले 50 वर्षीय किसान राम मेहर सिंह ज़्यादा गर्मीं के कारण पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ता रहे थे. वह कहते हैं, ‘‘मोदी की रैली में भी इतने लोग कभी नहीं आए होंगे. किसान हो या नौजवान सब परेशान हैं. ना रोजगार मिल रहा और ना ही किसानों को लागत. सबकुछ बर्बाद हो रहा है, सब दुखी हैं, इसलिए यहां इतनी भीड़ आई है.’’
सुबह नौ बजे ही भर गया राजकीय इंटर कॉलेज का मैदान
राकेश टिकैत न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘यहां 15 से 20 लाख के बीच किसान आए हैं.’’
#KisanMahapanchayat: "भारत सरकार जो संस्थाएं बेच रही हैं उसको पूरे देश में लोगों को बताएंगे."
— Newslaundry Hindi (@nlhindi) September 5, 2021
किसान नेता #RakeshTikait से @Basantrajsonu ने की बातचीत.#farmersprotest #Muzaffarnagar pic.twitter.com/B5ZLO3vKcj
क्या जितनी भीड़ यहां आई उतनी भीड़ की उम्मीद किसान संगठनों ने की थी? इस सवाल पर योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘‘उससे तो ज़्यादा भीड़ आई है. जैसे कि आप देख रहे हैं कि ग्राउंड छोटा पड़ गया. सिर्फ ग्राउंड ही नहीं भरा पूरा मुजफ्फरनगर शहर भर गया है. संगठनों की जितनी क्षमता है उससे बहुत ज़्यादा है, जिसका मतलब है कि यहां सिर्फ संगठन वाले किसान नहीं हैं बल्कि सरकार से नाराज़ किसान खुद उठकर घर से चल दिए हैं.’’
इस किसान महापंचायत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के साथ-साथ यूपी के दूसरे हिस्सों से भी किसान पहुंचें थे. यहां उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और केरल से भी किसान आए थे.
‘मिशन उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड’
सुबह नौ बजे से किसान नेता मंच पर पहुंचे लगे थे. मंच पर किए जा रहे दावे के मुताबिक राकेश टिकैत नौ महीने बाद मुजफ्फरनगर आ रहे थे. वे दोपहर 12 बजे के करीब मंच पर पहुंचे तो उनका जोरदार स्वागत किया गया. मंच पर बैठे किसान नेताओं और ग्राउंड में बैठे किसान खड़े होकर टिकैत का स्वागत करते नजर आए.
मंच से केंद्र सरकार द्वारा बीते साल पास किए गए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के साथ-साथ एमएसपी कानून बनाने की भी मांग की गई. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को हटाने की बात भी कई किसान नेताओं ने की. इसके अलावा बार-बार किसान नेता मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का जिक्र कर रहे थे. किसान नेताओं की माने तो मुजफ्फरनगर महापंचायत से मिशन उत्तर प्रदेश की शुरुआत हो गई.
आखिर क्या है मिशन उत्तर प्रदेश? इस पर टिकैत कहते हैं, ‘‘जनता के बीच अपनी बात रखेंगे. जो-जो संस्थाएं भारत सरकार बेच रही है, उसके बारे में बताएंगे. फसलों के भाव नहीं बढ़ रहे हैं उसके बारे में बताएंगे.’’
क्या इसका उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से कोई संबंध है? क्योंकि मंच से भी सरकार को हटाने की बता की जा रही है. इसपर टिकैत कहते हैं, ‘‘हां, जब जनता चाहेगी तब सरकार उखड़ जाएगी.’’
यही सवाल हमने योगेंद्र यादव से भी किया. वह कहते हैं, ‘‘सरकारों को तो हम अपनी ताकत दिखाते ही हैं. हरियाणा की सरकार को भी हम अपनी ताकत दिखाते हैं, वहां तो चुनाव नहीं है. जो सरकार लोगों की बात न सुने उसे तो ताकत दिखानी पड़ती है. लेकिन ये जो मिशन है वो केवल चुनावी मिशन नहीं है.’’
"We can't say what the government will do now but we hope they will listen to our demands."@Basantrajsonu speaks with
— newslaundry (@newslaundry) September 5, 2021
Yogendra Yadav about the #KisanMahaPanchayat and the way ahead. #FarmerProtests #MahaPanchayat pic.twitter.com/yucyTQW5WQ
मध्य प्रदेश के किसान नेता शिवकुमार शर्मा ‘कक्का जी’ ने लोगों को आगाह करते हुए बताया, "यह बात बेहद गंभीरता से सुनिए क्योंकि इसका मुकाबला आपको करना पड़ेगा. बीते दिनों मैं न्यूज़ 24 न्यूज़ चैनल की एक डिबेट में था. उस डिबेट में आरएसएस का किसान संगठन भारतीय किसान संघ के लोग भी मौजूद थे. वहां हमें पता चला कि भारतीय किसान संघ ने सरकार को आंदोलन की धमकी दी है. सरकार उनकी छोटी-मोटी मांग को मान लेगी और पूरे देश में फिर भ्रम फैलाया जाएगा कि देखो हमने किसानों की बात मान ली है. और ये जो किसान दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे हैं ये जिद्द कर रहे हैं, ये अड़े हुए हैं."
आगे कक्का जी कहते हैं कि इसके अलावा आरएसएस उत्तर प्रदेश में दो बड़े-बड़े किसान सम्मेलन करने वाला है. जिसमें यह भ्रम फैलाया जाएगा. तो हमें उनके इस षड्यंत्र का माकूल जवाब देना है.
यहां बार-बार हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने की बात की जा रही थी. दरअसल किसानों का मानना है कि साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों का बीजेपी को काफी फायदा हुआ और उसे मुद्दा बनाकर वो सरकार बनाने में सफल हुए.
इस पर राकेश टिकैत कहते हैं, ‘‘ये दंगा करवाने वाले लोग हैं. इन्हें यहां की जनता बर्दाश्त नहीं करने वाली है. पहले भी नारे लगते थे जब टिकैत साहब थे, अल्लाह हू अकबर (भीड़ हर हर महादेव के नारे लगाती है). अल्लाह हू अकबर और हर-हर महादेव के नारे इसी धरती से लगते थे. ये नारे हमेशा लगते रहेंगे. दंगा यहां पर नहीं होगा. ये तोड़ने का काम करेंगे और हम जोड़ने का काम करेंगे.’’
क्या इस महापंचायत का असर चुनाव पर दिखेगा?
मंच से और मंच के नीचे मौजूद कई लोगों ने ‘सरकार की जड़ों में तेल डालेंगे’ मुहावरे का प्रयोग करते नजर आए. इस मुहावरे का प्रयोग उत्तर प्रदेश से बीजेपी की सरकार को हटाने के लिए किया जा रहा था.
राकेश टिकैत ने भी मंच से वोट की चोट देने की बात करते हुए मौजूद लोगों से नारे लगवाए कि 'पूर्ण रूप से फसलों के दाम नहीं तो वोट नहीं.'
ऐसे में सवाल उठता है कि इस महापंचायत का आने वाले उत्तर प्रदेश के चुनावों पर असर होगा. यह सवाल हमने संजय त्यागी से किया तो वे कहते हैं, ‘‘पूरा असर होगा जी पूरा. हमने हमेशा बीजेपी को वोट दिया. हम त्यागी समाज से हैं और त्यागियों ने कभी बीजेपी का साथ नहीं छोड़ा लेकिन इस बार इनसे मन खट्टा हो गया है. क्योंकि ये झूठे वादे करते हैं. हमारे युवा सड़कों पर धक्का खा रहे हैं. यह क्षेत्र गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है लेकिन इन्होंने अपनी सरकार में गन्ने के मूल्य में दो रुपए की वृद्धि नहीं की. इन्होंने मायावती और अखिलेश के राज को अच्छा कहवा दिया. त्यागी समाज कभी भी बीजेपी से हटा नहीं लेकिन इस बार हट गया.’’
.#KisanMahaPanchayat का चुनाव पर क्या असर होगा?
— Basant Kumar (@Basantrajsonu) September 5, 2021
मुजफ्फरनगर के संजय त्यागी क्या कहते हैं सुनिए. pic.twitter.com/obwQSVtsex
52 वर्षीय वेदपाल से जब हमने यही सवाल दोहराया तो वे कहते हैं, ‘‘सौ प्रतिशत नुकसान होगा क्योंकि इन्होंने किसी की बात नहीं सुनी. ना नौजवानों की, ना किसानों और ना मज़दूरों की. ये किसी की बात नहीं सुन रहे हैं. प्रदेश के अंदर तानाशाही शासन चल रहा है. किसान बर्बाद हो गए और नौ महीने से दिल्ली में पड़े हैं, लेकिन कोई सुन नहीं रहा है. राजा किस लिए होता है प्रजा की आवाज़ सुनने के लिए ही न होता है.’’
वेदपाल आगे कहते हैं, ‘‘2014 में जब इनकी (बीजेपी) सरकार में आए तो डाई का 600 रुपए कट्टा था आज 1200 रुपए कट्टा है. यूरिया 200 रुपए का 50 किलो था आज 45 किलो का कट्टा 260 रुपए का मिल रहा है. गैस भी दोगुने दर पर मिल रही है. इन्होंने हमारी आमदनी डबल करने की जगह आधी कर दी है.’’
"Either the government accepts our demands or the BJP government in UP will fall."@Basantrajsonu spoke to farmers about the impact of the #MahaPanchayat on the #UttarPradeshElections2022.#KisanMahaPanchayat #FarmerProtests pic.twitter.com/ug1sB9w2Kl
— newslaundry (@newslaundry) September 5, 2021
प्रदर्शन स्थल के आसपास इंटरनेट की रफ्तार कम होने की वजह से हम वहां से थोड़ी दूर एक गली में खड़े थे तभी हमारी मुलाकात 28 वर्षीय सुधीर शर्मा से हुई. शर्मा एसएससी की तैयारी कर रहे छात्रों को पढ़ाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘मेरे घर से राकेश टिकैत का घर सात-आठ किलोमीटर हैं. इसलिए मैं भी पंचायत में गया था, लेकिन वोट तो मैं बीजेपी को दूंगा. मैं क्या यहां आए ज़्यादातर लोग बीजेपी को ही वोट करेंगे. इसकी वजह है, प्रदेश से खत्म हुआ गुंडाराज. आज यहां लोग चैन से बैठे हुए हैं वरना हर रोज चोरी होती थी. जितने चोर थे वे या तो जेल में हैं या रेहड़ी पटरी पर फल की दुकान लगाने लगे हैं.’’
किसानों की ताकत देख क्या सरकार बातचीत का रास्ता खोलेगी?
दिल्ली के टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर जब बीते साल नंवबर महीने में पंजाब और हरियाणा के किसान पहुंचे तो उनका कहना था कि वे छह महीने तक आंदोलन करने की तैयारी के साथ आए हैं. हालांकि आंदोलन अब भी जारी है. सरकार और किसान संगठन के नेताओं के बीच इसको लेकर आखिरी बातचीत 22 जनवरी को हुई थी. उसके बाद सरकार और किसान संगठनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.
महापंचायत में किसानों ने अपनी जो ताकत दिखाई उसके बाद क्या सरकार बात करेगी. इस सवाल पर शामली जिले से आए युवा किसान संजय पवार कहते हैं, ‘‘सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि इस आंदोलन में अब तक 500 से ज़्यादा किसान शहीद हो गए. अभी हाल ही में करनाल में लाठी चार्ज से एक किसान की मौत हुई है. जब हम चाहते नहीं तो सरकार यह कानून क्यों दे रही है. आपको नहीं लगता कि सरकार की कोई बड़ी मंशा है. दरअसल सरकार किसानों को बर्बाद कर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाना चाहती है. हम भी प्रदर्शन कर रहे हैं. इस भीड़ को देखने के बाद सरकार को बातचीत का रास्ता तो खोलना चाहिए ताकि कोई हल निकले.’’
मंच पर मौजूद किसान नेता
संजय की तरह महापंचायत में आए दूसरे किसान भी सरकार को जिद्द छोड़ तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की बात करते हैं. जब हमने राकेश टिकैत से यही सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘कोई असर होगा, यह तो सरकार को पता होगा. हम कहेंगे कि सरकार हमारे मामले को हल करे.’’
पिछले आठ महीने से कोई बात नहीं हो रही है? इसपर टिकैत कहते हैं, ‘‘आंदोलन तो हो रहा है. आंदोलन पूरे देश में होगा. हम पूरे देश में पंचायत करेंगे.’’
मंच से संयुक्त किसान यूनियन के नेता दर्शनपाल ने घोषणा की कि आने वाले 27 सितंबर को भारत बंद रखा जाएगा.
न्यूज़लॉन्ड्री हिन्दी के साप्ताहिक संपादकीय, चुनिंदा बेहतरीन रिपोर्ट्स, टिप्पणियां और मीडिया की स्वस्थ आलोचनाएं.