फिरोजाबाद का सुदामा नगर, डेंगू जैसे लगने वाले बुखार से सबसे ज्यादा पीड़ित इलाका है. यह इलाका स्वच्छता में लापरवाही और आनन-फानन में उस पर पर्दा डालने का जीता-जागता उदाहरण है.
बुखार, दस्त, रक्तस्त्राव
सुदामा नगर में जिन पांच परिवारों से हमने मुलाकात की उन सभी में बुखार, सरदर्द और दस्त के लक्षण एक से थे. मोहित जिसकी मृत्यु 20 अगस्त को हुई थी के मसूड़ों से भी खून आ रहा था, जोकि डेंगू से हालत बिगड़ने पर पैदा होने वाला एक लक्षण है.
उसके पिता बबलू जो जूते पॉलिश करने का काम करते हैं, ने बताया, "वह 19 अगस्त को राखी बेचकर आने के थोड़ी देर बाद बीमार पड़ा. राजकीय मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर ने हमें बताया कि उसे डेंगू था."
आधी रात के करीब जब मोहित की हालत बिगड़ने लगी तो अस्पताल ने बबलू को 40 किलोमीटर दूर आगरा के एक अस्पताल में ले जाने को कहा, लेकिन 16 वर्षीय मोहित रास्ते में एंबुलेंस में ही गुज़र गया. बबलू कहते हैं, "मेरी पत्नी सीमा और बेटी करीना भी 10 दिन से बीमार हैं और उन्हें भी ऐसे ही लक्षण हैं. मैं दिन के करीब 200 रुपए कमाता हूं लेकिन मैंने अपने बेटे के स्वास्थ्य पर 10,000 रुपए खर्च कर दिए. मैं उन्हें अस्पताल कैसे ले जाऊं?"
बबलू के घर के बाहर एक खुला नाला जो मक्खियों और मच्छरों से भरा पड़ा है, 50 वर्षीय रेशमा के घर की तरफ जाता है जहां पर कम से कम सात लोगों को बुखार ने जकड़ा हुआ है जिनमें छह बच्चे और एक वयस्क हैं. एक दूसरा नाला जो पहले वाले से करीब 10 गुना बड़ा और वहां से 10 मीटर की दूरी पर ही है, यह नाला सुदामा नगर से लगकर एक किलोमीटर तक बहता है.
आठ वर्षीय विराट और 10 वर्षीय तान्या नाले के पास ही खाट पर लेटे थे. रेशमा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "यह मेरे पोता पोती हैं. लड़का चार दिन से बीमार पड़ा है और लड़की आठ दिन से. मैं पिछले हफ्ते पास के क्लीनिक से दवाई लाई थी लेकिन बुखार फिर चढ़ गया. मेरे पास इन्हें मेडिकल कॉलेज ले जाने के पैसे नहीं हैं."
पुष्पेंद्र बबलू के जैसे नहीं हैं, वह नहीं जानते कि उनके बेटे कृष्णा को क्या हुआ है. लक्षण एक से ही थे, फिर छह वर्षीय कृष्णा की गुदा से खून गया लेकिन सरकारी अस्पताल और स्थानीय नर्सिंग होम के डॉक्टर किसी एक बीमारी की पहचान नहीं कर पाए.
पुष्पेंद्र याद करते हुए बताते हैं, "सरकार के एसएन अस्पताल में मुझे मेरे बेटे के लिए रात के तीन बजे प्लेटलेट लाने के लिए कहा गया. उस समय मुझे प्लेटलेट उपलब्ध कराने में दिक्कत हुई और मुझे ऐसा करने में चार घंटे लग गए. सुबह सात बजे जैसे ही मैंने एक ब्लड बैंक से प्लेटलेट ली, डॉक्टर ने मुझे फोन किया और बताया कि कृष्णा मर चुका था."
जो एक दिहाड़ी मजदूर है और एक गैराज में काम करते हैं. महीने के 5,000 रुपए कमाते हैं. उन्होंने केवल नर्सिंग होम में ही अपनी मासिक आय से तीन गुना ज्यादा खर्चा कर दिया. 30 अगस्त को मुख्यमंत्री आदित्यनाथ उनके घर आए, "कृष्णा के साथ जो हुआ उस पर उन्होंने मुझसे दो मिनट बात की. फिर वह बिना कोई आश्वासन या मदद के वहां से चले गए."
"यहां कोई स्वच्छता नहीं"
सुदामा नगर के वासी शिकायत करते हैं कि निगम वाले उनके इलाके का ध्यान शायद ही कभी रखते हैं. रेशमा की पड़ोसी पूजा कहती हैं कि सफाई कर्मचारी चार दिन में एक बार आते हैं. उन्होंने बताया, "वह सड़क पर झाड़ू लगाते हैं लेकिन नालियों पर कोई काम नहीं होता. वह एक-दो दिन तक सड़ती रहती हैं, फिर अगर हमारी किस्मत चमकी तो वह उस गंदगी को ले जाते हैं वरना वह सब फिर से नालियों में बह जाता है."
पुष्पेंद्र ने हमें बताया कि जब उन्होंने और उनके पड़ोसियों ने सफाई करने वाले लोगों से इस बारे में कहा तो उन्हें दुत्कार दिया गया. पुष्पेंद्र कहते हैं, "नालियों को लेकर वह बोले तो उन्हें मैं खुद ही साफ कर लूं. लॉकडाउन के दौरान यह जगह सैनिटाइज करी जाती थी लेकिन अब वह भी बंद हो गया है."
वीर के दादा बीरेंद्र कहते हैं, "यहां कोई साफ सफाई नहीं है. हमें हर महीने 30 रुपए निगम कर्मचारियों को देने के लिए मजबूर किया जाता है भले ही कुछ न करें. अगर हम न दें तो वह हम पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाने की धमकी देते हैं."
डेंगू को रोकने का एक प्रमाणिक तरीका इलाकों में फाॅगिंग करना है, जिसके बारे में यहां के निवासी कुछ नहीं जानते. 42 वर्षीय प्रकाश शर्मा जिनका भतीजा लकी 31 अगस्त को डेंगू की वजह से गुजर गया, कहते हैं, "मैंने यहां कभी डेंगू निरोधी फाॅगिंग होते हुए नहीं देखी. नाले-नालियां हफ्ते में एक बार साफ होते हैं, लेकिन वे कचरा पीछे ही छोड़ जाते हैं जिससे इलाके और ज्यादा गंदे होते हैं."
निवासियों के लिए एक और चिंता का विषय खाली पड़े प्लॉट हैं जो कूड़े, गोबर और नाली की गंदगी से भरे पड़े हैं. दूर से यह प्लॉट हरी ज़मीन के टुकड़े जैसे दिखाई पड़ते हैं, लेकिन पास से देखने पर वह सड़ते हुए पानी में जमी हुई काई नज़र आती है.
न्यूजलॉन्ड्री ने सुदामा नगर में ऐसे कम से कम 5 प्लॉटों की पहचान की.
'एकमात्र सफाई योगी के दौरे से पहले हुई'
स्थानीय नौकरशाहों के इशारे पर बीरेंद्र ने 30 अगस्त को आदित्यनाथ के आने की तैयारी की थी, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं आए. बीरेंद्र कहते हैं, "मुझे लगता है कि पुष्पेंद्र के घर से मेरे घर की तरफ आने वाली सड़क एक कूड़े से भरे प्लॉट के पास से गुजरती है इसलिए आना नहीं हुआ."
उनके घर के बिल्कुल पीछे वाला प्लॉट अब एक सफेद रंग के पदार्थ से ढका हुआ है. यहीं के एक स्थानीय व्यक्ति, अजय प्रकाश कहते हैं, "नगर निगम के अधिकारियों ने यह इलाके मुख्यमंत्री के आने से कुछ घंटों पहले अच्छे से साफ करा दिए. ये यहां पर हुआ आज तक का इकलौता सफाई अभियान है. ये गायों और कुत्तों तक को ले गए. लेकिन तब भी उनके पास इतना समय नहीं था कि प्लॉट साफ हो जाएं, तो उन्होंने उसे मिट्टी और चूने से ढक दिया."
मंगलवार के दिन यहां हुई बारिश के बाद, आशा के अनुरूप चुना बह गया. जिससे पानी के छोटे-छोटे गड्ढों के नीचे इकट्ठा हुई गंदगी सामने आ गई. बीरेंद्र हताश होकर कहते हैं, "वे आज सफाई करने नहीं आए."
एक बार होने वाली इस सफाई के दौरान फिरोजाबाद नगर निगम ने, बीरेंद्र के घर के बाहर के खुले नाले के ऊपर सीमेंट का पक्का रास्ता भी बना दिया क्योंकि सीएम आदित्यनाथ को उसे पार करके आना था.
मुख्यमंत्री के दौरे के बाद, मेडिकल कॉलेज ने सुदामा नगर के बीमार निवासियों को कस्बे के सरकारी अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस भेजी. 55 वर्षीय विष्णु देव शर्मा, जो पूरी तरह से स्वस्थ हैं को ऐसे ही गाड़ी के अंदर खींचकर अस्पताल ले जाया गया. शर्मा ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "एक नर्स ने मुझे सर्दी और बुखार की कुछ दवाइयां दीं, फिर जाने के लिए कह दिया. मुझे ऑटो से घर वापस आने के लिए पैसा खर्च करना पड़ा."
अपने पोते की मृत्यु का शोक मना रहे बीरेंद्र के पास बाद में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लोग आए थे. लेकिन उससे उन्हें कोई सांत्वना नहीं मिली, वे कहते हैं: "सरकार बेकार है और गरीबों के लिए तो उसका कोई अस्तित्व ही नहीं. कोई हमारी बात नहीं सुनता. चुनाव आएंगे, तो हम वोट नहीं डालेंगे, चाहे कोई भी आ जाए."