डीमोनेटाइजेशन टू मोनेटाइजेशन, सियासत से पत्रकारिता तक यू-टर्न की लहर

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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2016 में देश के पास इफरात में पैसा था. तब मोदीजी ने इस इफरात पैसे को ठिकाने लगाने के लिए नोटबंदी यानी डिमोनेटाइजेशन का ऐलान कर दिया था. पांच साल बाद अब मोदीजी ने बड़ी मात्रा में सरकारी संपत्तियों के नगदीकरण का ऐलान किया है, यानी मोनेटाइजेशन. जब पैसा था तब डिमोनेटाइजेशन अब शायद हाथ खाली है तब मोनेटाइजेशन कर रहे हैं. इस तरह से छह लाख करोड़ रूपए उगाहने की योजना है.

पांच सालों में देश को कहां से कहां पहुंचाया जा चुका है, इसका निर्णय आप स्वयं कर लें. मॉनेटाइजेशन प्रोजेक्ट के तहत सरकार सड़कों, रेलवे, हवाईअड्डों, स्टेडियम, ऑप्टिकल फाइबर, टेलीकॉम समेत तमाम क्षेत्रों की सार्वजनिक संपत्तियां निजी कंपनियों के हाथ सौंप देगी. ये वो संपत्तियां है जो हमारे-आपके पैसे से बनी हैं. गौर करिए कि इस तरह की सार्वजनिक संपत्तियों के निर्माण में बहुत भारी-भरकम पैसा लगता है. इसलिए इनका निर्माण सरकारें करती है. निजी कंपनियां इनके निर्माण में हाथ नहीं डालती. लेकिन जब इन संपत्तियों के संचालन के जरिए उनसे मुनाफा कमाने का समय आएगा तब उसे निजी कंपनियों को सौंप दिया जाएगा.

समस्या की जड़ ये है कि सरकार अपने कर्मचारियों से ठीक से काम नहीं ले पा रही. मोदीजी स्किल इंडिया के तमाम दावों के बावजूद सरकारी बाबुओं की स्किल नहीं सुधार पा रहे. दिलचस्प है कि ये वही बाबू हैं जिनके ऊपर इन संपत्तियों के कुशल संचालन की जिम्मेदारी थी, वही लोग अब सरकार को ये सलाह दे रहे हैं कि इन्हें निजी क्षेत्र को सौंपकर इनका मनोटाइजेशन कर लिया जाय. है न मजेदार स्थिति.

ये सबकुछ तब हो रहा है जब देश के पास कथित तौर पर सबसे सक्षम एडमिनिस्ट्रेटर है. इस तरह हमारे और आपके पैसे से बनी संपत्तियों का इस्तेमाल अब निजी कंपनियां हमसे और आपसे मोटा मुनाफा कमाने के लिए करेंगी. खैर सरकार कह रही है कि वह इन सार्वजनिक संपत्तियों का मालिकाना हक़ अपने हाथ में रखेगी. निजी कंपनियां तो सिर्फ इसका संचालन करेंगी. लेकिन सरकारें समय-समय पर अपना बयान अपनी राजनीतिक सुविधा के हिसाब से बदल लेती हैं. आज से बीस साल पहले किसने कल्पना की थी कि सरकारी पटरियों पर निजी प्रबंधन वाली रेलें दौड़ेंगी. एक साथ छह-छह हवाई अड्डे अडानी को सौंप दिए जाएंगे. देश के टेलीकॉम बाजार में बीएसएनएल और एमटीएनएल को मरने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा और रिलायंस की जियो के एकाधिकार का रास्ता खोल दिया जाएगा. तो आज जिन सार्वजनिक संपत्तियों के संचालन का अधिकार निजी कंपनियों को दिया जा रहा है, बीस साल बाद उनका मालिकाना हक़ भी सरकार उन्हें दे सकती हैं, यकीन मानिए उस वक्त भी उन्हें कोई झिझक नहीं होगी.

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