ज्यादातर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड छिपाते हैं जरूरी जानकारियां, नहीं बरतते पारदर्शिता

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने कई मानकों पर देश के 29 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और छह प्रदूषण नियंत्रण कमेटियों का मूल्यांकन किया है.

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ज्यादातर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड छिपाते हैं जरूरी जानकारियां, नहीं बरतते पारदर्शिता
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सीईएमएस आंकड़े देने में कोताही

प्रूदषण नियंत्रण बोर्ड का एक अहम दायित्व होता है प्रदूषण से संबंधित ताजातरीन आंकड़े और इन आंकड़ों के आधार पर ट्रेंड का मूल्यांकन कर सार्वजनिक पटल पर रखना, ताकि लोगों में जागरूकता फैले. इस मामले में भी कई बोर्ड की भूमिका निराशाजनक है. अध्ययन में पता चला है कि 35 से केवल 19 बोर्ड/कमेटियां ही लगातार एमिशन मॉनीटरिंग सिस्टम (सीईएमएस) के आंकड़े प्रदर्शित कर रही हैं, लेकिन इनमें भी केवल पांच बोर्ड/कमेटियों ने ही पुराने आंकड़े सार्वजनिक किये हैं. दिलचस्प ये है कि सुप्रीम कोर्ट का इसको लेकर स्पष्ट आदेश है कि ये आंकड़े सार्वजनिक करना वैधानिक दायित्व है.

ठोस व्यर्थ पदार्थों को लेकर जानकारियां देने में भी ज्यादातर बोर्ड कोताही बरत रहे हैं. अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अनिवार्य रूप से पारदर्शी होना चाहिए क्योंकि इनके द्वारा सार्वजनिक किये गये आंकड़े प्रदूषण से निबटने के लिए नीति बनाने में मदद करते हैं.

“बोर्ड को ज्यादा से ज्यादा पारदर्शी होने की जरूरत”

“अध्ययन में हमने ये भी देखा कि अलग-अलग राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कमेटियों में आंकड़े सार्वजनिक करने को लेकर किसी तरह की समानता नहीं है. यहां तक कि वेबसाइट के फॉर्मेट में भी समानता नहीं है, जिससे सूचनाओं तक पहुंचने में मुश्किल होती है,” श्रेया वर्मा ने कहा.

निवित कहते हैं, “राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मामले में पारदर्शिता में सुधार बहुत जरूरी है. सार्वजनिक पटल पर आंकड़े रखना और कार्रवाई संबंधित जानकारी साझा करने से ये नीति निर्माताओं को प्रदूषण प्रबंधन की बहस को आगे ले जाने में मदद करती है. इससे लोगों में भी ये भरोसा बढ़ता है कि ये बोर्ड व कमेटियां सक्षम हैं, इसलिए ये जरूरी है कि इन्हें अधिक से अधिक पारदर्शी बनने पर फोकस किया जाना चाहिए और ऐसा आंकड़ों को सार्वजनिक कर व लोगों की भागीदारी से किया जा सकता है.”

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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