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एनएल चर्चा 182: जातिगत जनगणना, आरक्षण और इंदौर में चूड़ीवाले की बेरहम पिटाई

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

     

एनएल चर्चा के 182वें अंक में ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर मद्रास हाईकोर्ट की रोक, जातिगत जनगणना को लेकर गर्म राजनीति, नेशनल मोनेटाइज़ेशन पाइपलाइन की घोषणा, इंदौर में चूड़ीवाले के साथ हुई हिंसा, उमर खालिद की गिरफ़्तारी की परिस्थितियों, मुज़फ्फरनगर दंगों के 77 केसों की वापसी और महाराष्ट्र में नारायण राणे की गिरफ्तारी हमारी चर्चा का विषय रहे.

इस बार चर्चा में बतौर मेहमान सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार शामिल हुए. साथ में न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन ने भी चर्चा में हिस्सा लिया. संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

इंदौर के घटनाक्रम पर अतुल सवाल पूछते हैं, "इंदौर में जिस प्रकार से चूड़ीवाले के साथ मारपीट की गई, यह बहुत सारे सवाल खड़े करता है. देशभर में जो सांप्रदायिक नफरत का माहौल बन रहा है और उस पर जो पुलिस का जो पक्षपातपूर्ण रवैया है, इस तरह की घटनाओं में क्या आगे होना चाहिए और इस तरह की घटनाओं से कैसे बचा जा सकता है?”

संजय कहते हैं, "ऐसी घटनाएं बताती हैं कि समाज में अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों का एक दूसरे के प्रति रवैया क्या है. उससे ज़्यादा गंभीर मसला यह है कि जिनको कानूनी दायरे में रहकर हम काम करने की अपेक्षा करते हैं यानि पुलिसवाले, उन्हें किसी को दोषी मानने, उसे हिरासत में लेने या गिरफ्तार करने से पहले उसे कानूनी नज़रिये से देखना चाहिए. यह दुःख की बात है कि उन्होंने भी क़ानून की ऐनक उतार दी है और धार्मिक भेदभाव का चश्मा पहन लिया है. यह समाज के लिए एक गंभीर समस्या है जिसे हमें समझने की आवश्यकता है और इसे सुलझाने का प्रयास करना चाहिए.”

वह आगे कहते है, “पुलिसवालों ने जो किया, मैं बहुत अचंभित नहीं हूं क्योंकि पिछले दिनों हमने सीएसडीएस में पुलिसवालों पर अध्ययन किया. इसके अंतर्गत तीन साल तक अलग अलग तरह के शोध हुए जिसमें हमने हर तरह की बातें पूछी. एक सर्वे में हमने यह भी सवाल किया कि पुलिसवालों का उनके काम के प्रति रवैया, उन्हें किस तरह के पॉलिटिकल प्रेशर में काम करना पड़ता है. उनसे व्यवहार संबंधी सवाल भी पूछे. उस सर्वे में यह सामने आया कि आज पुलिस वालों में जो पूर्वाग्रह हैं वो बहुत गंभीर हैं. कहीं पर कोई घटना हुई और कहा गया कि उसमें शामिल ज़्यादातर लोग दंगा करने वाले लोग मुसलमान थे, पुलिस बिना जांच किए यह बात मानने को तैयार हो जाती है क्योंकि वह पूर्वाग्रह से ग्रसित है कि खास समुदाय के लोग तो ऐसे ही होते हैं, उनकी सोच ऐसी होती है.”

अतुल, आनंद से सवाल करते हैं, “इस तरह की घटनाओं से सामने आता है कि पुलिस में खुद कितने दुराग्रह पैदा हो गए हैं. दूसरा उन्होंने रूलबुक के हिसाब से काम छोड़कर सत्ताधारी दलों के हिसाब से काम करना शुरू कर दिया है, जिसकी वजह से पुलिस के ऊपर बार बार सवाल उठते हैं. आपका क्या आकलन है कि इस तरह की घटनाओं को लेकर?”

आनंद कहते हैं, "इस विषय पर संजयजी ने जो कहा, उससे में काफी हद तक सहमत हूं. पुलिस के पूर्वाग्रह में समुदाय विशेष के साथ-साथ स्थान विशेष को लेकर भी पूर्वाग्रह होते हैं. भारत में जो शक्ति संचय है वह अलग अलग स्थानों में बंटा हुआ है यह धर्म के रूप में भी हो सकता है, जाति के रूप में भी हो सकता है. पुलिस की भी यही धारणा बन गई है. किसी भी समूह के लोग पूरी तरह सही या ग़लत नहीं होते, हमारी पुलिस यह समझे बिना ही समूह विशेष का सामान्यीकरण कर देती है.”

आनंद आगे कहते हैं, "पुलिस का यहां एकमात्र सहारा रूलबुक होना चाहिए. पब्लिक ओपिनियन के प्रेशर में काम नहीं करना चाहिए.”

इस विषय के अलावा अन्य विषयों पर भी विस्तार से बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए पूरे पॉडकास्ट को जरूर सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.

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1:00- 2:45- जरुरी सूचना

2:45- 8:25- हेडलाइन

8:25- 20:50 - इंदौर में हुई घटना

20:50- 49:00 - जातिगत जनगणना और आरक्षण

49:00 - क्या पढ़ें क्या देखें

पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.

संजय कुमार

जातिगत जनगणना होनी चाहिए

आनंद वर्धन

संजय कुमार की किताब पोस्ट-मंडल पॉलिटिक्स इन बिहार

अरुण सिन्हा की किताब बैटल फॉर बिहार

अतुल चौरसिया

नेशनल मोनेटाइज़ेशन पाइपलाइन पर शेखर गुप्ता का शो

इंदौर की घटना पर प्रतीक गोयल की रिपोर्ट

***

हर सप्ताह के सलाह और सुझाव

चर्चा लेटर

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प्रोड्यूसर- लिपि वत्स और आदित्य वारियर

एडिटिंग - उमराव सिंह

ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह/तस्नीम फातिमा

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