अलग-अलग कारणों से सरकार से नाराजगी के बावजूद ब्राह्मणों के सामने विकल्प का सवाल अहम है. हर जगह एक जैसी ही बात सुनने को मिलती है कि ब्राह्मण जाए भी तो किस पार्टी में?
2017 के चुनाव परिणाम देखें तो 56 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे. इसमें से बीजेपी के 46 विधायक, बसपा और सपा से तीन-तीन, कांग्रेस से एक ब्राह्मण विधायक विधानसभा पहुंचे. इसमें यदि ब्राह्मण जातियों का वोट प्रतिशत देखें तो भाजपा को करीब 80 फीसदी ब्राह्मण वोट मिला है. ब्राह्मण जातियों का एक पार्टी को इतनी बड़ी संख्या में वोट देना भाजपा के प्रति उसके भरोसे को दर्शाता है. यही वजह है कि महंगाई, रोजगार, कृषि बिल ब्राह्मणों को कोई समस्या का विषय नहीं लगता है और ये अंतत: वोट बीजेपी को ही करना चाहते हैं.
ब्राह्मण वोटर सामान्यत: मंदिर निर्माण, हिंदुत्व, अनुच्छेद 370 के जम्मू-कश्मीर से हटाए जाने, तीन तलाक, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों पर काफी उत्साहित नजर आते हैं. कई ऐसे ब्राहमण हैं जो बीजेपी सरकार की बहुत सी नीतियों, महंगाई, बेरोजगारी से काफी नाराज भी हैं, लेकिन वोट के सवाल पर मुद्दा बदल जाता है.
मुरादनगर विधानसभा के अवधेश त्यागी कहते हैं, "अगर चीजें महंगी हुई हैं तो इसमें सरकार की क्या गलती है? विदेश में तेल महंगे हुए हैं इसलिए ही तो सरकार महंगा तेल बेच रही है. सरकार फ्री में राशन और वैक्सीन दे रही है तो इसके पैसे कहीं से तो लिए ही न जाएंगे? इतने हाईवे बन रहे हैं तो सरकार कहीं से तो भरपाई करेगी ही.”
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसे ब्राह्मण किसान बहुतायत में है जिनकी खेती का रकबा 50 बीघे से ज्यादा नहीं है. दिल्ली में नौ महीने से चल रहे किसान आंदोलन का गाजीपुर मोर्चा राकेश टिकैत की अगुवाई में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का ही खड़ा किया हुआ है लेकिन इस क्षेत्र के ब्राह्मण किसानों की राय जाट किसानों से अलग है.
किसानों की दोगुनी आय के वादे पर अवधेश त्यागी कहते हैं, “कोई भी सरकार किसानों की आय दोगुनी नहीं कर सकती, इसमें इस सरकार की कोई गलती नहीं है.” गन्ने के बकाया पेमेंट पर हालांकि त्यागी सरकार की कुछ गलती मानते हैं, "हां, सरकार कृषि के मामले में थोड़ी कमजोर साबित हुई है, फिर चाहे तीनों कृषि बिल हों या गन्ने के रेट को बढ़ाने की बात हो, लेकिन हम फिर भी बीजेपी के साथ हैं."
अलग-अलग कारणों से सरकार से नाराजगी के बावजूद ब्राह्मणों के सामने विकल्प का सवाल अहम है. हर जगह एक जैसी ही बात सुनने को मिलती है कि ब्राह्मण जाए भी तो किस पार्टी में? वे कहते हैं, "मायावती सरकार में आती हैं तो जाटवों के लिए काम करने में लग जाती हैं. जब सपा आती है तो मुसलमानों और यादवों के अलावा उसे कोई और दिखायी ही नहीं देता है. हम बीजेपी में न जाएं तो कहां जाएं?"
बसपा के ब्राह्मण सम्मेलनों पर धर्मवीर शर्मा पूछते हैं, "जो बसपा कभी तिलक, तराजू और तलवार की बात करती थी आज उसके वो नारे कहां चले गए हैं? वो ब्राह्मण सम्मेलन क्यों करना चाहते हैं? आज जब चुनाव हैं तो वो ब्राह्मणों की खुशामद कर रहे हैं?"
(साभार- जनपथ)