"अमेठी संग्राम- ऐतिहासिक जीत अनकही दास्तां" वह जरूरी किताब है जिसमें लेखक अनंत विजय एक पत्रकार और एक कार्यकर्ता के द्वंद्व में फंसे दिखते हैं.
अनंत लिखते हैं कि चुनाव के दौरान स्मृति को उनकी हत्या कर देने की धमकी मिली थी. लेकिन वह न तो घबराईं और न ही भयभीत हुईं. उन्होंने यह बात अपने पति से जरूर बताई थी. इसके बाद उनके पति जुबिन ईरानी घबरा गए और उन्होंने मुंबई के डॉक्टरों से संपर्क किया. यही नहीं उन्होंने जानना चाहा कि गोली लगने की परिस्थितियों में क्या किया जाना चाहिए? उन्होंने जानना चाहा कि इसके क्या उपाय हैं, कौन सा अस्पताल अच्छा है? आपातकालीन व्यवस्थाएं और सतर्कता क्या-क्या हो सकती है? और ऐसे हालात में वो क्या करेंगे?
उनके मित्रों ने उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल का नाम सुझाया. खास बात है कि जुबिन ने यह सब तैयारी बिना स्मृति को सूचना दिए ही कर डाली. इसके बाद पूरे चुनाव में जुबिन की गाड़ी और ड्राइवर अमेठी में ही स्मृति के साथ डटे रहे. उन्होंने यह तक तय कर लिया था कि गोली लगने की दशा में स्मृति ईरानी को अमेठी से लखनऊ, फिर दिल्ली और फिर वहां से मेदांता के गुरुग्राम कैसे पहुंचना है. हालांकि न ऐसा हुआ और न ही कभी इसकी जरूरत पड़ी.
किताब में यह भी बताता है कि स्मृति के आने से पहले अमेठी में सामान्य सुविधाएं तक नहीं थी, जबकि यह देश के एक बड़े राजनीतिक परिवार का चुनावी क्षेत्र था. अमेठी में न बिजली थी, न सड़क, न पानी, न ही शिक्षा और रोजगार. लेखक एक वाकए के बारे में बताते हैं, कि जब स्मृति पहली बार अमेठी की एक दलितों की बस्ती में गईं और पानी मांगा तो वहां की महिलाओं ने ये कहते हुए मना कर दिया कि मजाक मत करो. लेकिन बाद में जब स्मृति ने पानी पिया तो उन महिलाओं ने कहा कि यह पहली बार है जब किसी बाहरी ने हमारे यहां आकर पानी पीया है.
यहां कांग्रेस कैसे चुनाव जीतती आई, किताब उसकी भी पड़ताल करती है. अनंत के मुताबिक यहां बड़ा खेल लिफाफों के जरिए होता था. बड़े नेता आते थे और ठेकेदारों से मिलते थे, उन्हें कुछ देकर चले जाते थे. इसी तर्ज पर कांग्रेस यहां से चुनाव जीतती रही.
अनंत बताते हैं कि राहुल ने जितनी बार चौकीदार चोर है का नारा लगाया. कांग्रेस के उतने ही वोट कम हो जाते थे. राहुल गांधी 2014 का चुनाव जीतने के बाद भी अमेठी नहीं गए लेकिन स्मृति हारने के बाद भी वहां की हो गईं. इससे 2019 का नतीजा बदल गया.
किताब में कुछ बातों का बार-बार दोहराव भी है. राहुल गांधी के जरिए घुमा-घुमा कर गांधी परिवार को कोसा गया है. यह साफ दिखता है. लेखक का दावा है कि गांधी परिवार ने चुनाव लड़ने के लिए हमेशा पिछड़े क्षेत्रों को चुना. जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद को छोड़कर फूलपुर और इंदिरा गांधी ने प्रयागराज को छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ा, जबकि इंदिरा प्रयागराज में ही पैदा हुईं और उन्होंने अपना वैवाहिक जीवन भी वहीं बिताया. इसलिए इस परिवार को पिछड़े संसदीय क्षेत्र चुनने का लाभ मिला.
इतना ही नहीं किताब राजनीतिक मिलीभगत के दावे भी करती है. मसलन किताब कहती है कि कांग्रेस का साथ देने के लिए सपा और बसपा भी जिम्मेदार हैं. अमेठी में सपा-बसपा अपना उम्मीदवार सोनिया से तय करके उतारती थीं. ऐसा इसलिए होता था क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार उनकी तमाम गड़बड़ियों पर आंखें मूंदे रहे.
लेखक ने स्मृति ईरानी की वर्ष 2014 से 2019 तक की राजनीतिक यात्रा को बारीक ढंग से दर्ज किया है. किताब के आखिरी चैप्टर में अमेठी की सियासत को आंकड़ों में समेटा गया है. स्मृति की जीत में भाजपा नेताओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भी बड़ी भूमिका रही है. आरएसएस कार्यकर्ताओं ने बूथ-बूथ और ब्लॉक लेवल पर पहुंचकर स्मृति के लिए काम किया है. इस दौरान उन्होंने कांग्रेस की हर चाल की काट खोजी और वो कामयाब भी हुए. अंत में स्मृति ईरानी अमेठी से 55 हजार से अधिक मतों से जीतकर इतिहास में दर्ज हो गईं.