जलवायु संकट: "मौसम में आए बदलाव ने करीब 6 अरब लोगों को जोखिम में डाला"

यदि किसी का जन्म फरवरी 1986 में हुआ है, तो उसने वास्तव में कभी भी सामान्य तापमान वाले महीने का अनुभव ही नहीं किया.

Article image

2020 में, याकूतिया क्षेत्र में जंगल की आग के कारण 2018 में मेक्सिको के ईंधन खपत के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हुआ. यह आर्कटिक जंगल की आग के कारण 2019 के कार्बन उत्सर्जन से 35 प्रतिशत अधिक था. उम्मीद है कि इस साल 2020 का रिकॉर्ड भी टूट जाएगा.

इस साल मई में संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की कार्यवाही में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर “पर्माफ्रोस्ट कार्बन फीडबैक थ्रेटेन ग्लोबल क्लाइमेट गोल्स” में चेतावनी दी गयी है कि, "तेज गति से हो रही आर्कटिक वार्मिंग ने उत्तरी जंगल की आग को तेज कर दिया है और कार्बनयुक्त पर्माफ्रॉस्ट को पिघला रहा है. पर्माफ्रॉस्ट थॉ और आर्कटिक जंगल की आग से हो रहे कार्बन उत्सर्जन, जिसका वैश्विक उत्सर्जन बजट में हिसाब नहीं है, ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को बहुत कम कर देगा, जो इंसान 1.5 डिग्री सेल्सियस या दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रहने के लिए उत्सर्जित कर सकते हैं."

2021 में चरम मौसम की घटनाओं से एशिया सबसे बुरी तरह प्रभावित महाद्वीप बना रहा. जून के बाद से, अभूतपूर्व वर्षा से पहले गंभीर बाढ़ की घटनाएं देखने को मिलीं. चीन के हेनान प्रांत ने 17 जुलाई के बाद से केवल पांच दिनों के भीतर अपने वार्षिक वर्षा से अधिक वर्षा दर्ज की.

प्रांत की राजधानी शहर झेंग्झौ पानी में डूबा हुआ था और इसकी वार्षिक वर्षा का आधा हिस्सा 20 जुलाई को केवल छह घंटों में जमा हो गया था. चीनी मीडिया ने झेंग्झौ के मौसम अधिकारियों के हवाले से कहा कि शहर की बारिश "एक हजार साल में एक बार" जैसी घटना थी. कुछ मीडिया रिपोर्टों ने इसे "हर 5000 साल में एक बार" जैसी घटना के रूप में इसे बताया है.

भारत में मानसून 13 जुलाई तक रुका हुआ था. जब यह सक्रिय हुआ, तो यह असामान्य रूप से उच्च वर्षा वाली घटनाओं का एक समूह था. भारतीय मौसम विभाग, गोवा के वैज्ञानिक राहुल एम ने बताया कि राज्य में 10-23 जुलाई, 2021 तक औसत से 122 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई. राज्य में औसत वर्षा 471 मिमी के मुकाबले 1047.3 मिलीमीटर दर्ज की गई, जो इस दौरान बारिश की गतिविधि में वृद्धि के कारण दर्ज की गई थी. 23 से 24 जुलाई के बीच, उत्तर और दक्षिण गोवा के जिलों में 24 घंटों में 23 इंच तक बारिश हुई.

मूसलाधार बारिश के कारण भूस्खलन हुआ और राज्य के निचले इलाकों में पानी भर गया. महाराष्ट्र का रत्नागिरी जिला में भीषण बाढ़ आई, जिसने 200 से अधिक लोगों की जान ले ली. जुलाई में इसने सबसे अधिक वर्षा का 40 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया. आईएमडी और फ्लडलिस्ट वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक, 1 जुलाई से 22 जुलाई के बीच जिले में 1781 मिलीमीटर बारिश हुई है. जिले के लिए औसत जुलाई वर्षा 972.5 मिमी है. 23 जुलाई को कोल्हापुर जिले में 232.8 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य बारिश से लगभग 10 गुना अधिक थी.

उसी दिन, सतारा जिले में भी सामान्य से सात गुना ज्यादा बारिश हुई. आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, इनमें से सबसे खराब बाढ़ मुंबई की थी क्योंकि शहर और उसके उपनगरीय इलाकों में 18 जुलाई को क्रमश: 180.4 मिमी और 234.9 मिमी बारिश हुई थी. ये आंकड़े दो क्षेत्रों के लिए सामान्य दिन में हुई बारिश से क्रमश: छह और सात गुना अधिक थे.

इस साल जून-जुलाई की घटनाएं न केवल एक चेतावनी थीं बल्कि नई वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए एक भारी झटका भी थीं. जलवायु की चरम घटनाएं अब युद्ध और जैविक घटनाओं से अधिक संख्या में आ रही हैं और अधिक आर्थिक नुकसान का कारण बनती हैं.

1960 और 2018 के बीच, प्राकृतिक आपदाओं की संख्या, युद्धों की तुलना में 25 गुना और 2008 जैसी वित्तीय संकट की तुलना में 12 गुना अधिक थी. विश्व बैंक की "ग्लोबल प्रोडक्टिविटी: ट्रेंड्स, ड्राइवर्स एंड पॉलिसीज" अध्ययन के अनुसार, प्राकृतिक आपदा, चक्रवात और चरम मौसम की घटनाएं दुनिया की अर्थव्यवस्था और श्रम उत्पादकता को नुकसान पहुंचाने वाले कारक के रूप में अधिक तेजी से उभर कर सामने आ रहे हैं. इस अवधि में, सभी प्राकृतिक आपदाओं का 70 प्रतिशत हिस्सा जलवायु संबंधी था और वे कोविड-19 जैसी जैविक आपदा की तुलना में ज्यादा बार (दोगुनी) घटित हुई हैं.

इस अवधि के दौरान, जलवायु आपदाओं ने श्रम उत्पादकता में सालाना 0.5 प्रतिशत की कमी ला दी, जो श्रम उत्पादकता पर युद्ध के प्रभाव का लगभग पांचवां हिस्सा था. लेकिन जलवायु से संबंधित आपदाओं की संख्या इतनी अधिक थी कि कुल मिलाकर श्रम उत्पादकता का अधिक नुकसान हुआ.

डब्ल्यूएमओ द्वारा शीघ्र प्रकाशित होने वाली एक रिपोर्ट ("एटलस ऑफ़ मोर्टालिटी एंड इकॉनोमिक लॉसेज फ्रॉम वेदर, क्लाइमेट एंड वेदर एक्सट्रीम्स (1970-2019)”) से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर पिछले 50 सालों के दौरान, सभी आपदाओं का 50 फीसदी, सभी मौतों का 45 फीसदी और सभी आर्थिक नुकसानों का 74 फीसदी कारण मौसम, जलवायु और पानी से संबंधित (तकनीकी खतरों समेत) खतरे रहे.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

***

न्यूज़लॉन्ड्री के स्वतंत्रता दिवस ऑफ़र्स के लिए यहां क्लिक करें.

Also see
article imageहिमाचल प्रदेश: जलवायु परिवर्तन के असर को कम नहीं किया तो और बढ़ेंगी प्राकृतिक आपदाएं
article imageजलवायु परिवर्तन: हम जितनी देर करेंगे, हालात उतने ही अधिक बिगड़ने वाले हैं

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like