क्या प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने अपने पूर्व कैशियर के गबन पर डाला पर्दा?

प्रेस क्लब के कैशियर हां कहते हैं, जनरल सेक्रेटरी ना कहते हैं. कौन सच बोल रहा है और कौन 'राजनीति कर रहा है'?

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'अघोषित संपत्ति'

सेन ने अपनी ईमेल में यह आरोप भी लगाया है कि पीसीआई की बैलेंस शीट से 5 लाख रुपए गायब थे. उन्होंने यह भी कहा कि संघ ने अपनी अचल संपत्ति का रजिस्टर नहीं बनाकर रखा था जो कि कुल मिलाकर लगभग 8 करोड़ रुपए बनता है. सेन ने लिखा, "एक वैधानिक ऑडिटर को कंपनी की अचल संपत्ति को ऑडिट करने के लिए उसके अचल संपत्ति रजिस्टर पर ही निर्भर होना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि पीसीआई के ऑडिटर ने उसे एक क्वालिफाइड ऑडिट रिपोर्ट दी थी. किसी कंपनी की क्वालिफाइड ऑडिट रिपोर्ट उसकी वित्तीय स्टेटमेंट में विसंगतियों को दिखाती है, जिन्हें सामान्यतः इस परिवेश में क्वालिफिकेशन कहा जाता है.

ऑडिटर की रिपोर्ट कथित तौर पर यह कहती थी कि पीसीआई की अचल संपत्तियों का भौतिक यानी आमने-सामने सत्यापन नहीं किया गया था और सालों से अचल संपत्ति रजिस्टर नहीं बनाया गया था. सेन ने लिखा, "यह बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि इस बात के बड़े कम प्रमाण हैं कि प्रेस क्लब की अचल संपत्तियां जैसी रिपोर्ट की गई वैसी ही हैं."

हालांकि कुमार इन आरोपों को भी खारिज कर देते हैं. उनका कहना है कि पीसीआई की संपत्तियां उसकी सालाना वित्तीय स्टेटमेंट्स में "सही प्रकार से मूल्यांकित और उल्लेखित" हैं, जो कंपनियों के रजिस्ट्रार के पास जमा हैं और उसकी वेबसाइट पर सभी के लिए उपलब्ध थे.

ट्रेज़रार पर निशाना साधते हुए उन्होंने दावा किया, "सुधि रंजन सेन 2012 से पीसीआई की प्रबंधन कमेटी के सदस्य हैं लेकिन उन्होंने उसके सामने या किसी और कानूनी संस्था के सामने कभी भी अचल संपत्ति का मुद्दा नहीं उठाया. वे पूर्व में, कमेटी के द्वारा पीसीआई की अचल संपत्तियों का उल्लेख करते हुए पुरानी वित्तीय स्टेटमेंट को मानने के प्रस्तावों का हिस्सा रहे हैं. हमारे मत में उन्होंने यह झूठा मुद्दा आपके सामने इसलिए उठाया है, जिससे आपको यह झूठा विश्वास हो की पीसीआई में कुछ तो गड़बड़ चल रही है."

न्यूजलॉन्ड्री ने सेन से उनकी टिप्पणी लेने के लिए कई प्रयास किए लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. हमने उनको कुछ सवाल भेजे हैं, उनकी तरफ से जवाब आने पर इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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