रिपब्लिक टीवी में नए कॉन्ट्रैक्ट का टंटा- 'एजेंडा आप सेट करें और एफआईआर हम झेलें'

मई महीने के आखिरी सप्ताह में रिपब्लिक ग्रुप ने चैनल के कर्मचारियों को नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करने को कहा. इसके बाद कई कर्मचारियों ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और नौकरी छोड़ दी.

WrittenBy:बसंत कुमार
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‘‘रिपब्लिक में वैसे तो कभी भी काम के घंटे तय नहीं रहे. जब भी ज़रूरत पड़ी हमने समय से ज्यादा काम किया, लेकिन तब हम ऐसा करने को मजबूर नहीं थे. जब चैनल शुरू हो रहा था तो हम रात के दो बजे घर जाते थे और सुबह आठ बजे आ जाते थे. कई बार तो 24 घंटे बाद घर गए हैं. लेकिन तब ज़रूरत थी. इसे लिखित में देने का मतलब यह है कि हम ऐसा करने के लिए मजबूर हैं.’’ रिपब्लिक से शुरुआती समय से जुड़े एक कर्मचारी बताते हैं.

वे आगे कहते हैं, ‘‘मैं घर पर रहकर काम कर रहा था. ऐसे में उन्होंने मुझे डॉक्यूमेंट मेल किए कि आप हस्ताक्षर करके भेज दें. मैंने पढ़ने के बाद इस्तीफा दे दिया. मेरा नोटिस पीरियड 45 दिन है तो इस दौरान मैं कहीं ज्वाइन नहीं कर रहा. खत्म होने के बाद नई जगह ज्वाइन करूंगा.’’

‘‘सोशल मीडिया पर कुछ भी नहीं लिख सकते हैं’’

नए अनुबंध में सोशल मीडिया पॉलिसी को लेकर भी बेहद सख्त रवैया दिखा है. पुराने अनुबंध में लिखा है- ‘‘आप सोशल मीडिया पर कुछ भी लिखते हुए यह साफ कर दें कि यह आपका मत है इसका कंपनी से कोई लेना देना नहीं है. अगर आप सोशल मीडिया पर खुद को कंपनी के कर्मचारी के तौर पर दिखाते हैं तो आपका पोस्ट आपके पद और जिम्मेदारी को दर्शाना चाहिए. किसी भी स्थिति में आप कंपनी से जुड़ी जानकारी साझा नहीं कर सकते हैं. किसी भी तरह की अफवाह, झूठ या गोपनीय सूचना कंपनी की छवि खराब कर सकती है. ऐसा करने वालों पर क़ानूनी कार्रवाई होगी.’’

नए अनुबंध के मुताबिक कर्मचारी अपने सोशल मीडिया पर कुछ भी नहीं लिख सकते हैं. एक कर्मचारी सोशल मीडिया पॉलिसी को लेकर हमें बताते हैं, ‘‘मुझे 27 मई को अनुबंध की कॉपी दी गई और एक दिन बाद हस्ताक्षर करके देने के लिए कहा गया. इतना मोटा अनुबंध था, जिसे पढ़ने में ही हमें दो-तीन घंटा लगता. इसमें जो शर्तें थी उसके मुताबिक काम करना मुमकिन नहीं था. मेरा नोटिस पीरियड दो महीने का था, जिसे बढ़ाकर छह महीने करने का प्रावधान था. सोशल मीडिया पर थोड़ा बहुत खुल कर लिखते थे, उसे भी कंट्रोल करने की कोशिश की गई. इसलिए मैंने पुराने अनुबंध की शर्त पर ही नौकरी छोड़ना सही समझा.’’

वह आगे कहते हैं, ‘‘इस्तीफे के बाद भी उन्होंने काफी परेशान किया. स्थिति यहां तक पहुंच गई कि मुझे कहना पड़ा कि क़ानूनी रास्ता अपनाने के लिए मजबूर मत कीजिए. काफी जद्दोजहद के बाद उन्होंने मेरा हिसाब किया. दरअसल पुराने अनुबंध में नियम संख्या 6 (ए) में लिखा है कि कर्मचारी खुद नौकरी छोड़ते हैं या कंपनी हटाती है तो दोनों ही स्थिति में 60 दिन का नोटिस पीरियड सर्व करना होगा. अगर कंपनी तत्काल हटाती है तो उसे दो महीने की बेसिक सैलरी देनी होगी और अगर हम नोटिस सर्व नहीं करते तो हमें देना होगा. इसी आधार पर मैंने अपना इस्तीफा दे दिया. अभी तक मेरा रिलीविंग लेटर नहीं दिया गया. लेकिन मैं किसी और जगह ज्वाइन कर चुका हूं.’’

क्यों आया नया अनुबंध?

रिपब्लिक मैनेजमेंट को अचानक से अनुबंध में बदलाव की क्या ज़रूरत पड़ी? ये सवाल कई कर्मचारियों ने भी मैनेजमेंट से पूछा लेकिन उन्हें कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला. हालांकि कई कर्मचारी एक ख़ास वजह की तरफ ध्यान दिलाते हैं. उनका मानना है कि अचानक से लाए गए इस अनुबंध की वजह टाइम्स नाउ का हिंदी चैनल है.

अर्णब के करीबी रहे एक सीनियर कर्मचारी जो अब नौकरी छोड़ चुके हैं, न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘इस अनुबंध को लाने की सबसे बड़ी वजह थी कि टाइम्स नाउ अपना नया चैनल ‘नवभारत’ ला रहा था. रिपब्लिक भी टाइम्स नाउ को तोड़कर ही खड़ा हुआ है. ऐसे में इन्हें डर था कि टाइम्स समूह इनके कर्मचारियों को तोड़ेगा और टाइम्स ऐसा कर भी रहा है. वो पांच-छह लोगों को अप्रोच कर चुके थे. हालांकि इस अनुबंध को लाने का बहुत फायदा नहीं हुआ क्योंकि मेरी जानकारी में रिपब्लिक के पीसीआर का एक लड़का टाइम्स नाउ गया इसके अलावा कोई नहीं गया है. कोई ज़ी न्यूज़, टीवी 9 और कोई इंडिया टुडे ग्रुप चला गया. हालांकि इससे यह हुआ कि इनके प्राइम टाइम की टीम खत्म हो गई जो टीआरपी के लिए जानी जाती थी.’’

हमने उनसे पूछा कि नया अनुबंध क़ानूनन कितना वैध था, तो वे कहते हैं, ‘‘यह बहुत गलत था. यह अनुबंध बिलकुल वैसे ही था कि जैसे आप नाव में बैठा लिए और बीच नदी में जाकर कह रहे हैं कि किराया अपडेट करेंगे. मैं तो नाव में अपने जेब में पैसे देख कर चढ़ा था. आप किराया बढ़ाएंगे तो क्या पता मेरे पास उतने पैसे ही ना हो. इससे उस ब्रांड की बदनामी हुई है.’’

इतने अनैतिक प्रावधानों के बावजूद तमाम ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने नए अनुबंध पर दस्तख़त कर दिए. इसकी अहम वजह यह रही कि न चाहते हुए भी उन्हें ऐसा करना पड़ा क्योंकि उनके पास तत्काल कोई विकल्प मौजूद नहीं था.

बहुत से ऐसे कर्मचारी जो अभी रिपब्लिक में काम कर रहे हैं, उन्होंने इस विषय पर बोलने से इनकार कर दिया.

रिपब्लिक का क्या कहना है?

इस पूरे मामले पर हमने रिपब्लिक टीवी के प्रमुख अर्णब गोस्वामी और दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों को कुछ सवालों की फेहरिस्त भेजी है, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है.

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