न्यूज़लॉन्ड्री की एक सीरीज़ जो भारत के छोटे-बड़े मीडिया संस्थानों के स्वामित्व का लेखा-जोखा आपके सामने रखती है.
ओमिदयार नेटवर्क एक इंपैक्ट फंड है जिसने स्क्रोल और द केन में भी निवेश किया है. ओमिदयार के अनुसार, इस फंडिंग का उद्देश्य न्यूज़लॉन्ड्री को नवीन दृष्टिकोणों को खंगालने और भारत के मीडिया क्षेत्र में पारदर्शिता व पत्रकारिता के स्तर को बढ़ाने में मदद करना है. उसे उम्मीद है कि एक स्वतंत्र समाचार संस्था के लिए एक नया बिजनेस मॉडल खड़ा करने के न्यूज़लॉन्ड्री के सफर से मिलने वाली सीखें, दूसरी संस्थाओं के लिए इन्हें अपनाने, बेहतर करने और आगे बढ़ाने का एक रास्ता तैयार करेंगी.
मधु त्रेहान, जिन्होंने अब सेवानिवृत्ति ले ली है, ने अपना हिस्सा बाकी तीन हिस्सेदारों को वापस कर दिया है.
न्यूजलॉन्ड्री की संपादकीय पॉलिसी क्या है? सेखरी समझाते हैं, "जमीनी रिपोर्टें एक खोज भरी यात्रा की तरह होती हैं. सभी पत्रकार किसी ख़बर का पीछा करते हुए बाहर जाते हैं, तो वह जमीन पर मिलने वाले तथ्यों के अनुसार ही उसको खड़ा करता है. अगर किसी संस्था ने किसी ख़बर पर पहले ही एक नजरिया बना लिया हो तो फिर संवाददाता उस खबर का उत्सुकता से पीछा नहीं कर पाएंगे. इसके बजाय वे अपनी संस्था के द्वारा लिए गए 'दृष्टिकोण' को ही सत्यापित करने की कोशिश में लग जाएंगे."
क्या इसका अर्थ यह है कि न्यूज़लॉन्ड्री का किसी भी विषय पर संस्थागत मत ही नहीं है? इसके जवाब में वह कहते हैं कि मत है, लेकिन पॉलिसी या संपादकीय निर्णयों के मामलों को लेकर नहीं बल्कि "मानवीय मूल्यों" को लेकर है. और इन मानवीय मूल्यों को "न्यूजलॉन्ड्री अभी भी सहेज कर रखे है."
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यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 75 से अधिक पाठकों ने योगदान दिया है. यह गौरव केतकर, प्रदीप दंतुलुरी, शिप्रा मेहंदरू, यश सिन्हा, सोनाली सिंह, प्रयाश महापात्र, नवीन कुमार प्रभाकर, अभिषेक सिंह, संदीप केलवाड़ी, ऐश्वर्या महेश, तुषार मैथ्यू, सतीश पगारे और एनएल सेना के अन्य सदस्यों की बदौलत संभव हो पाया है.
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