फिल्म लॉन्ड्री: फ़िल्मों और दर्शकों की कश्मकश में सिनेमाघरों की असमंजस

फिल्म कारोबार के लिहाज से 2020 हिंदी सिनेमा के इतिहास में घातक मंदी के साल के रूप में याद किया जाएगा.

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ट्रेड विशेषज्ञों की यही राय है कि महाराष्ट्र के सिनेमाघरों के खुलने के बाद ही बड़ी हिंदी फिल्मों की रिलीज की संभावना बन सकती है. निर्माताओं को भरोसा होगा, हालांकि महाराष्ट्र के कुछ शहरों में संक्रमण दर कम होने पर सिनेमाघरों के खोलने की अनुमति जरूर मिली है. फिर भी सभी को मुंबई के सिनेमाघरों के खुलने की प्रतीक्षा है. अभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे किसी दबाव में सिनेमाघर खोलने का आदेश जारी करने की भूल नहीं करना चाहते. मुंबई में अभी तक संक्रमण दर 5 प्रतिशत बना हुआ है और यह चिंताजनक स्थिति है. इसके अलावा तीसरी लहर की आशंका ने प्रशासन को सचेत और सावधान कर रखा है. मुंबई के ट्रेड जानकारों के अनुसार अगस्त के दूसरे या तीसरे हफ्ते में मुंबई के सिनेमाघरों के खुलने की उम्मीद की जा रही है. मुख्यमंत्री पर दबाव बढ़ रहा है कि दूसरे राज्यों ने तो खोल दिया.

वास्तव में आम दर्शकों के मनोरंजन की बेसिक जरूरत ओटीटी से पूरी हो जा रही है, इसलिए सिनेमाघरों को खोलने का दबाव नागरिकों (दर्शकों) की तरफ से नहीं हो रहा है. ओटीटी पर अगस्त महीने में ही सिद्धार्थ मल्होत्रा की ‘शेरशाह’, अजय देवगन की ‘भुज’ और मनोज बाजपेयी की ‘डायल 100’ के अलावा अन्य कुछ फिल्में हिंदी फिल्मों की रिलीज तय है.

फिल्मों के साथ वेब सीरीज और डॉक्यूमेंट्री भी नियमित आते रहते हैं. महामारी की तालाबंदी के इस दौर में दर्शकों को देश की दूसरी भाषाओं और विदेशी फिल्मों का चस्का लग गया है. सारी फिल्में ओटीटी के प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं और दर्शक सबटाइटल की ‘एक इंच की बाधा; से उबर चुके हैं. फिल्म देखने के प्रति वे साक्षर और सिद्ध हुए हैं. ओटीटी प्लेटफॉर्म भी अब अंग्रेजी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में सबटाइटल या डबिंग कर दर्शकों को रिझा रहे हैं. अभी यह भी गिनती करनी है कि तालाबंदी के इस दौर में कितने सिंगल स्क्रीन बंद हो गए हैं.

और अंत में…

फिल्म के कारोबार के इस अनिश्चय के बीच हिंदी प्रदेशों के दर्शकों को अपने इस दावे का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए कि ‘हिंदी फिल्में हिंदी प्रदेशों के दम’ पर चलती हैं. यह दावा खोखला है. इसकी सच्चाई सामने आ गयी है. एक तो हिंदी प्रदेशों में सिनेमाघरों की संख्या दूसरे राज्यों की तुलना में लगातार कम होती गई है और दूसरे हिंदी प्रदेशों के दर्शक थिएटर जाने के बजाय दूसरे माध्यमों से मुफ्त या किफायत में फिल्में देखने के आदी हो गए हैं.

सामान्य दिनों में भी फिल्म कारोबार में हिंदी प्रदेशों की हिस्सेदारी न्यूनतम रहती है. इन दिनों तो बेंगलुरु हिंदी फिल्मों के कारोबार के नए केंद्र के रूप में उभर रहा है.

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