कहानी ज़ारमेशिया की और अर्णब गोस्वामी की तिलिस्मी वापसी

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

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पेगासस और जासूसी की खबरों और डंकापति की रोज़ाना किचकिच से परेशान होकर धृतराष्ट्र ने इस हफ्ते संजय को कोई नई कहानी सुनाने का आदेश दिया. संजय की मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. वो खुद डंकापति के कारनामों से चट चुके थे. संजय ने धृतराष्ट्र को ज़ारमेशिया के राजा ज़ारमुंद की कहानी सुनाई. धृतराष्ट्र ने पहली बार यह नाम सुना था इसलिए उनकी उत्सुकता बढ़ गई.

संजय ने कहानी शुरू की- हिंद महासागर के किनारे बसा है जारमेशिया. वहां की जनता बहुत सुखी थी. पुराने राजा प्रजा वत्सल थे, काफी लोकतांत्रिक माहौल बना रखा था. प्रजा अपनी शिकायतें सीधे राजा से कर सकती थी. लेकिन जारमुंद के राजा बनने के बाद हालात बदल गए. चाणक्य की नीतियों में जारमुंद की गहरी आस्था थी. चाणक्य की एक नीति का ज़ारमुंद शब्दश: पालन करता था, उस नीति के मूलभाव से उसे कोई लेनादेना नहीं था. कहने का मतलब कर्मकांड पूरा, आध्यात्म शून्य. बिल्कुल महाजनो येन गत: सह पंथ: की तर्ज पर वह जिस रास्ते साहूकार महाजन गया उसे ही मुक्ति का मार्ग समझ बैठा था.

चाणक्य ने कहा कि वह राजा कभी सफल नहीं हो सकता जिसकी अपने प्रजा पर निगाह न हो. जारमुंद ने इस नीति पर गंभीरता से अमल करते हुए अपनी एक एक प्रजा की निगेहबानी शुरू कर दी. वह खुद को चौकीदार कहलाना पसंद करता था, लेकिन सूट वह आठ लाख के पहनता था. जारमेशिया की पूरी कहानी सुनने के लिए आपको टिप्पणी का यह एपिसोड देखना चाहिए.

इस हफ्ते धृतराष्ट्र संजय संवाद के साथ ही जेल से लौटने के बाद शांत पड़ गए अर्णब गोस्वामी पर भी हमने नज़र फेरी. बीते दिनों अर्णब बाबू ने जासूसी के आरोपों से सरकार बहादुर को बचाने के लिए डिजिटल न्यूज़ साइट्स पर ही अपनी भड़ास निकाल दी. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री जैसे सब्सक्रिप्शन पर आधारित वेबसाइटों के रेवेन्यू मॉडल पर सवाल खड़ा किया. विज्ञापन के पैसे से सरकार की तेल मालिश में लगे अर्णब गोस्वामी ने सब्सक्राइबर्स के सहारे पारदर्शी तरीके से चलने वाले डिजिटल मीडिया पर सवाल खड़ा किया. महज पांच साल पहले तक महज एक चैनल की नौकरी करने वाले अर्णब गोस्वामी के हाथ वो कौन सी जादू की छड़ी लगी है जिसके जरिए वो पांच साल के भीतर 1000 करोड़ की कंपनी के मालिक बन गए. इस रेवेन्यु मॉडल के बारे में अर्णब गोस्वामी बताएं तो जनता और पत्रकारिता दोनों का कल्याण हो. आपको इस पर जरूर सोचना चाहिए. वरना पत्रकारिता सिर्फ सरकारों की सेवा का जरिया बन कर रह जाएगी. न्यूज़लॉन्ड्री इस सरकारी चारण व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास है. आप हमारा सहारा बनिए, आपके तीन सौ या हजार रुपए एक आजाद मीडिया की बुनियाद बन सकते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब कीजिए और गर्व से कहिए मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.

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