पेगासस जासूसी मामले में पंजाबी भाषी अख़बार, रोज़ाना पहरेदार के एडिटर-इन-चीफ जसपाल सिंह हेरां का नाम भी शामिल है. जानिए कौन हैं हेरां और वह साल 2017-19 के बीच क्या कर रहे थे?
कैसे हुई थी 'रोज़ाना पहरेदार' की शुरुआत
जसपाल सिंह हेरां ने लुधियाना से साल 2001 में रोज़ाना पहरेदार की शुरुआत की थी. उस समय यह साप्ताहिक पंजाबी भाषी समाचार पत्र था. साल 2006 में रोज़ाना पहरेदार रोज़ प्रकाशित होने लगा. रोज़ाना पहरेदार का हेड ऑफिस लुधियाना में स्थित है. फिलहाल समाचार पत्र रोज़ाना पहरेदार के मुख्य पाठक पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में रहते हैं. जसपाल सिंह हेरां ट्रिब्यून और इंडियन एक्सप्रेस जैसे बड़े अख़बारों के लिए काम कर चुके हैं.
उन्होंने हमसे बातचीत में रोज़ाना पहरेदार की स्थापना के पीछे की वजह बताते हुए कहा, "लुधियाना की एक यूनिवर्सिटी ने रॉयल स्टैग (एक व्हिस्की ब्रांड) का उद्धघाटन किया था. मैंने उस पर एक रिपोर्ट की थी. यह अजीत (अख़बार) में प्रकाशित हुई जो एक पंजाबी भाषा का दैनिक समाचार पत्र है. मुझे उस कहानी के लिए एक नोटिस भेजा गया. मैंने सोचा कि अगर मुझे सच बताना है, तो मेरे पास अपना खुद का अख़बार होना चाहिए."
पत्रकारों की निजी जिंदगी नहीं बची
जसपाल सिंह कहते हैं, “सरकार मीडिया की आवाज़ को कुचलना चाहती है. जैसा कि हम सुन-पढ़ रहे हैं, एनएसओ का यह सॉफ्टवेयर पेगासस फोन हैक कर लेता है. आपका निजी जीवन खत्म हो चुका है. आपके बेडरूम और बाथरूम की बातें सार्वजनिक हो रही हैं. सब पर निगरानी रखी जा रही है. हमने पंजाब जर्नलिस्ट यूनियन की तरफ से राष्ट्रपति को पत्र लिखा है. हमने डीसी को मांग पत्र भी सौंपा है. दूसरा, हम देखना चाहेंगे संसद इस मामले पर क्या निर्णय लेती है. तब तक हम इंतज़ार करेंगे. अगर सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती तो हम सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे."
फर्जी मुकदमें कराए गए दर्ज
न्यूज़लॉन्ड्री ने रोज़ाना पहरेदार के भटिंडा ज़िला संवाददाता और अख़बार की एडवाइजरी बॉडी के सदस्य अनिल वर्मा से भी बात की. वो पिछले 11 वर्षों से रोज़ाना पहरेदार से जुड़े हैं. वह कहते हैं, "जासूसी करने के पीछे दो वजहें हैं. रोज़ाना पहरेदार पंजाबी अख़बार है जो सिख मसलों और किसानी पर मुखर होकर लिखता है. दूसरा, हम बीजेपी और आरएसएस की पंजाब विरोधी गतिविधियों पर नज़र रखते हैं और उसके बारे में लिखते हैं. इसी कारण रोज़ाना पहरेदार केंद्र सरकार के निशाने पर है. चाहे बादल की सरकार हो या अमरिंदर सिंह की सरकार, दोनों ने हमारी पत्रकारिता को रोकने के लिए कई रुकावटें पैदा की हैं. इससे पहले भी बीजेपी और अकाली दल की सरकार थी. उस दौरान हम पर नाजायज मुकदमा दर्ज कराया गया. दफ्तर पर हमला किया गया. हमारे पत्रकारों पर हमला हुआ."
वह आगे कहते हैं, "आज भी हमारे पत्रकारों के येलो कार्ड (मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए) नहीं बनते हैं. अमरिंदर सरकार में हमारे पत्रकारों को येलो कार्ड मिलना बंद हो गया जिसके कारण हमारे पत्रकारों को हेल्थ इंश्योरेंस जैसी सुविधा नहीं मिलती. हमें लोक संपर्क विभाग से मिलने वाली कोई सहूलियतें नहीं मिलती. हमें यह कहकर इवेंट कवर करने नहीं दिया जाता कि हम सरकार के खिलाफ लिखते हैं."
हालांकि पंजाब में रोज़ाना पहरेदार के पाठकों का मानना है कि उन्हें कई बार अख़बार की विचारधारा पक्षपाती लगती है. मोगा के रहने वाले 25 वर्षीय मोहन सिंह कहते हैं, "जसपाल सिंह हेरां अपने बेबाक बोल के लिए पंजाब में जाने जाते हैं. वो अपने संपादकीय में खुलकर बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करते हैं लेकिन उनके अख़बार में प्रकाशित खबरों में एक पक्ष गायब रहता है."