आपातकाल के समय अख़बारों को छपने से पहले सरकार की अनुमति लेनी पड़ती थी.
वह आगे कहते हैं, ‘‘दिलचस्प यह है कि भास्कर ने जब इस छापे के पीछे की वजह बताते हुए अपनी पुरानी ख़बरों का हवाला देते हुए शुरू में लिखा कि यह ख़बर छापा मारने वाले अफसरों को उनके निर्देश के मुताबिक दिख ली गई है तो कुछ अचरज हुआ. आख़िर अधिकारी आयकर का ब्योरा लेने निकले हैं या अख़बार की प्रकृति तय करने. दरअसल इससे भी उनके इरादे खुलते हैं. भास्कर ने यह सूचना भी सार्वजनिक कर उनकी मंशा ही उजागर कर दी. क्योंकि ख़बर में किसी सेंसर के संकेत नहीं हैं. वैसे हममें यह पेशेवर साहस होना चाहिए कि ऐसे किसी दबाव को ख़ारिज कर सकें.’’
वहीं पत्रकार और समाजशास्त्री अभय कुमार दुबे कहते हैं, ‘‘अगर इनकम टैक्स वालों ने ऐसा किया है तो यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर की चीज है. वे छापा डाल सकते हैं. बैंक खातों की जांच कर सकते हैं. आमदनी कहां से हो रही है. टैक्स दिया या नहीं दिया. इन विषयों के बारे में हस्तक्षेप करने का उनको अधिकार है. लेकिन इसके अलावा तो उनको अधिकार नहीं.’’
दुबे आगे कहते हैं, ‘‘यह साफ तौर पर सेंसर करना है. अब इनकम टैक्स दफ्तर सेंसर अफसर की भूमिका निभा रहे हैं. सेंसर लागू होने के बाद सेंसर के दफ्तर में खबर दिखानी पड़ती है. यह बहुत निंदनीय है. इसकी जितनी निंदा की जाए उतना कम है.’’
न्यूज़लॉन्ड्री ने दैनिक भास्कर के नेशनल एडिटर एलबी पंत से भी बात की. उन्होंने बताया, ‘‘खबर प्रकाशित करने से पहले उसे दिखाने के लिए कहना तो गलत है ही, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है. दरअसल हमारे भोपाल कार्यालय में कुछ देर के लिए ऐसा हुआ था पर अब हम अपने हिसाब से खबरें प्रकाशित कर रहे हैं.’’