नोटिस में लिखा है कि नोटिस जारी होने से तीन दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करें अन्यथा माना जाएगा की आप को इस मामले पर कुछ नहीं कहना है और मेरिट के आधार पर आगे कार्रवाई की जाएगी.
निकोबार टाइम्स ने 16 और 17 जून को ऑनलाइन ई पेपर प्रकाशित किया था, क्या इसको लेकर नोटिस जारी किया होगा? इस सवाल पर वह कहते हैं, “हमने वेबसाइट पर प्रकाशित हुई खबरों को ही सिर्फ एक पीडीएफ के रुप में प्रकाशित किया था, वो भी सिर्फ दो दिन. कोई अखबार प्रकाशित नहीं किया. दूरस्थ इलाकों में जहां इंटरनेट सही से नहीं चलता उन इलाकों के लिए पीडीएफ के रूप में खबरें पहुंचाने के उद्देश्य से किया था. लेकिन स्थानीय पत्रकार संघ के अध्यक्ष ने फोन कर ई पेपर पर आपत्ति जताई जिसके बाद हमने ई पेपर बंद कर दिया.”
निकोबार टाइम्स को पीआरबी एक्ट के तहत भेजे गए नोटिस पर मीडिया मामलों के वकील और भरुचा एंड पार्टनर से जुड़े कौशिक मोइत्रा कहते हैं, “पीआरबी अधिनियम 1867 प्रकाशित और प्रसारित होने वाले पत्र और पत्रिकाओं के लिए है यह डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म को नियंत्रित नहीं करता है. इसलिए इस नोटिस का कोई आधार नहीं है.”
कौशिक ई-पेपर को लेकर कहते हैं, “हमारे देश में ई पेपर की जो समझ है वह यह है कि अगर कोई अखबार प्रकाशित होता है और वह उसी को ही ऑनलाइन छापता है तो उसे ई पेपर कहा जाता है. लेकिन निकोबार टाइम्स तो एक डिजिटल मीडिया संस्थान है. जिसका कोई अखबार नहीं छपता. इसलिए इसका पीआरबी एक्ट से कोई लेना देना नहीं है.”
“इस तरह के नोटिस का कोई कानूनी आधार नहीं है. ऐसा प्रतित हो रहा हैं जैसे कोई बदले की कार्रवाई के तहत यह नोटिस भेजा गया है.”
नोटिस पर हमने साउथ अंडमान जिले के एडीएम हरि कालीकट से बातचीत की कोशिश की थी लेकिन कोई जवाब नहीं आया. हमने उन्हें सवाल मेल किया है, जवाब आने पर खबर में अपडेट कर दिया जाएगा.
क्या हैं पीआरबी एक्ट 1867
करीब 150 साल पुराना प्रेस एंड रजिस्ट्रेनश ऑफ बुक्स एक्ट, (पीआरबी) के तहत देश में प्रिंटिंग प्रेस और देश में प्रकाशित होने वाले अखबारों का नियमन होता है. जरूरत के अनुसार इसमें समय-समय पर संशोधन किए गए. लेकिन अंग्रेजों के जमाने से इस कानून में व्यापक बदलाव के लिए 16 दिंसबर 2011 में एक बिल पेश किया था.
इस बिल में सबसे महत्वपूर्ण था कि पीआरबी का नाम बदल कर द प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स एंड पब्लिकेशन बिल 2011 किया जाना था. इस बिल को 2012 में स्टैंडिग कमेटी को भेजा गया. फिर साल 2013 में एक बार फिर से इस बिल को पेश किया गया जिसमें थोड़ा बहुत संशोधन किया गया. लेकिन यह बिल कभी कानून नहीं बन पाया.
पीआरबी एक्ट 1867, का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘1857 के विद्रोह’ में प्रेस की भूमिका पर अंकुश लगाने का था.