किसान नेताओं में चुनाव लड़ने को लेकर दो मत, आंदोलन में पड़ सकती है दरार

गुरनाम सिंह चढूनी किसान यूनियन को आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में उतरने की बात कर रहे हैं. जिसके चलते उन्हें संयुक्त किसान मोर्चा ने एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया.

Article image

किसानों के लिए चुनाव में भाग लेना कोई बड़ी बात नहीं

इस मामले में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत से हमने बात की और चुनाव को लेकर उनकी राय जानने की कोशिश की. टिकैत कहते हैं, "किसान अगर चुनाव लड़ते हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है. हर किसी को चुनाव में खड़े होने की आज़ादी है. राजनीति में किसानों का भी हक़ है. फिलहाल संयुक्त मोर्चा जो निर्णय लेगा सभी जत्थेबंदियों को वो स्वीकार है. यदि संयुक्त मोर्चा चुनाव लड़ने के लिए कहता है तो चुनाव भी लड़ लेंगे. लेकिन इस समय केवल आंदोलन की जीत ज़्यादा ज़रूरी है. आंदोलन के बाद भी संयुक्त मोर्चा बना रहेगा क्योंकि कई छोटे संगठन भी इस से जुड़ गए हैं. पांच सितम्बर को मुज़्ज़फरनगर में महापंचायत का आयोजन किया जाएगा जिसमें आंदोलन के आगे की नीति तय करने के साथ ही चुनाव में किसानों की भूमिका पर भी विमर्श होगा, कि हम किसे समर्थन देंगे या खुद चुनाव लड़ेंगे. किसान कब तक सड़क पर बैठा रह सकता है. उसके बाद यहीं तरीका है कि किसान राजनीति में प्रवेश करे."

सरकार के रवैये पर निर्भर है चुनाव का निर्णय

बीकेयू दोआबा के महासचिव सतनाम सिंह साहनी का कहना है कि समर्थकों की तरफ से चुनाव लड़ने का दबाव हमेशा बना रहता है. वह कहते हैं, "आंदोलन का हल निकलने के बाद चुनाव की संभावना पर विचार किया जा सकता है. संयुक्त मोर्चा में भाग ले रहे सभी संगठनों की अपनी- अपनी विचारधारा है. लेकिन सभी तीनों कानूनों को वापस कराने के लिए एक हुए हैं. सब सरकार पर निर्भर करता है. किसानों का एक होकर रहना भी ज़रूरी है क्योंकि हर सरकार कॉर्पोरेट के इशारों पर चलती है. पंजाब के लोग और जनता चाहती है कि किसान चुनाव लड़ें. आंदोलन कर रहे किसान नेताओं पर चुनाव लड़ने का दबाव है. लेकिन फिलहाल जत्थेबंदियों का फैसला है कि चुनाव की बात न की जाए. अभी चुनाव के लिए सोचने का मतलब है आंदोलन की एकता को तोडना. किसान चुनाव लड़ेंगे या नहीं यह आंदोलन के नतीजे पर निर्भर करेगा. संभावनाओं के द्वार खुले हैं. अगर सरकार नहीं मानती तो हो सकता है चुनाव भी लड़ें."

जम्हूरी किसान सभा पंजाब के महासचिव कुलवंत सिंह संधू कहते हैं, “आंदोलन पहले नंबर पर है फिर राजनीति. हमारी बहुत सी जत्थेबंदियां राजनीती में जाती हैं. चुनाव लड़ती हैं. इसमें से कई चुनाव का बहिष्कार भी करने वाले हैं. कई राजनीतिक दलों से जुड़े हैं. इस आंदोलन में हर किस्म के लोग शामिल हैं. अगर आंदोलन सफल हो जाता है तो चुनाव लड़ने का सोच सकते हैं. फिलहाल आंदोलन हमारी प्राथमिकता है. अगर हम आंदोलन जीत जाए, उसके बाद चुनाव लड़ने के लिए संयुक्त मोर्चे से मंज़ूरी लेने की ज़रूरत नहीं है."

मानसून सेशन पर है किसानों का फोकस

ऑल इंडिया किसान सभा (पंजाब) के महासचिव मेजर सिंह पूनावाला कहते हैं, "चढूनी जी ने कई बार संयुक्त मोर्चे के आगे चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा. हम यहां तीन कानूनों को रद्द कराने और एमएसपी पर कानून बनाने के लिए बैठे हैं. सरकार ने हम पर कई बार आरोप लगाया है कि हम किसान नहीं राजनीतिक लोग हैं. हमारे लिए कानून रद्द कराना ज़रूरी है न की चुनाव लड़ने जाना. सरकार कानून रद्द कर दे उसके बाद चुनाव की संभावनाओं पर विचार किया जाएगा. किसी एक के कहने से कुछ नहीं होता. संयुक्त मोर्चा क्या फैसला करता है सब इसपर निर्भर करेगा. मोर्चे में सब अपने अलग- अलग विचार रखते हैं फिर फैसला लिया जाता है. फिलहाल हमारा फोकस मानसून सेशन पर है जिसके लिए हम प्रोग्राम तैयार कर रहे हैं. संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे. रोज़ 200 लोग जाएंगे और संसद के बाहर बैठेंगे. संयुक्त मोर्चे की अगली मीटिंग में रूपरेखा बनाई जाएगी."

भाजपा के खिलाफ प्रचार रहेगा जारी

इस मुद्दे पर बीकेयू (उग्राहां) के अध्यक्ष जोगिन्दर सिंह उग्राहां ने भी न्यूज़लॉन्ड्री से बात की. वह कहते हैं, "संयुक्त मोर्चे में ऐसे कई जत्थेबंदियां शामिल हैं जिनके अपने विभिन्न विचार हैं. चढूनी जी का अपना विचार हो सकता है लेकिन संयुक्त मोर्चे का ऐसा कोई प्लान नहीं है. चलते आंदोलन में यदि कोई मोर्चा छोड़कर जाने की बात करता है तो उससे बात की जाएगी कि वो ऐसा न करे. तीनों कानून वापस हो जाएं उसके बाद जो मर्ज़ी करें. इस बीच कोई अगर चुनाव की बात करता है इसका मतलब आंदोलन को 'फेल ' करने की बात है. 2022 आने में अभी समय है. अभी उसके लिए सोचना सही नहीं है. हम जगह- जगह जाकर लोगों को बताएंगे कि किसान 10 महीने से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन भाजपा उनकी बात नहीं सुन रही. उनका जितना भी राजनीतिक नुक़सान हो सकता है वो हम कोशिश करेंगे. भाजपा के खिलाफ प्रचार जारी रहेगा."

यूपी और पंजाब चुनाव के लिए अलग नीति बनाएंगे किसान

डॉ. दर्शनपाल न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “किसान भाजपा के खिलाफ प्रचार जारी रखेंगे. हालांकि यूपी, उत्तराखंड और पंजाब चुनावों के लिए तरीका बदला जाएगा. बंगाल चुनाव में हमारी भूमिका प्रत्यक्ष नहीं थी. लेकिन इस बार यूपी और पंजाब के चुनाव में किसान सीधे तौर पर हिस्सा ले रहे हैं. यहां हम स्टेकहोल्डर (हितभागी) हैं. इस बार हमें अलग तरह से सोचना होगा. मानसून सत्र के बाद ही उस पर विचार करेंगे."

वहीं मेजर सिंह पूनावाला ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहा, "हमने बंगाल में इतना ही बोला कि आज किसानों की हालत के लिए भाजपा ज़िम्मेदार है. बंगाल की जनता से अपील की कि भाजपा को वोट न दे. पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के लिए भी रणनीति बनाएंगे. हम मानते हैं कि कांग्रेस और अकाली दल ने भी किसानों के साथ इंसाफ नहीं किया. अकाली दल ने संसद में कानून का साथ दिया था. जब किसानों ने सड़क पर आकर राजनीतिक तौर पर उसका विरोध किया तब अकाली दल ने अपनी दिशा मोड़ ली. हम किसी पार्टी से खुश या नखुश नहीं हैं. तीन क़ानून वापस हो जाएं और एमएसपी पर कानून बन जाए. उसके बाद भी किसानों की आत्महत्या और ज़मीन से जुडी कई और समस्याएं हैं. जिनके लिए संघर्ष जारी रहेगा.”

Also see
article imageजिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव: बागपत में जो हुआ वह कभी नहीं हुआ!
article imageकृषि: उत्पादन बढ़ा, किसान घटे

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like