‘एक देश बारह दुनिया' यानी एक ही देश के भीतर बारह तरह की दुनियाएं हैं जिन्हें शिरीष ने पत्रकारिता के अपने अनुभवों को एक पुस्तक की शक्ल देते हुए यह नाम दिया है.
वहीं, 'सुबह होने में अभी देर है' में राजस्थान के बाड़मेर जिले की तीन अलग-अलग महिलाओं की तीन अलग-अलग दुनियाओं से जुड़ी असल कहानियां हैं, जिसमें इस हकीकत की तरफ ध्यान दिलाया गया है कि कई जगहों पर अपने साथ हुए अनाचार या अन्याय के विरोध में कई महिलाओं ने गांव से थाने, थाने से अदालत तक का रास्ता तो तय कर लिया है लेकिन, आगे क्या वे अदालत के रास्ते पर चलकर गांव के रास्तों पर वापस चल सकेंगी, या ऐसी महिलाओं को थाने और अदालत जाने से रोकने वाला समाज उन्हें गांवों के रास्तों पर पहले की तरह चलने देता है?
इसी तरह, एक पत्रकार के रूप में दो अलग-अलग रिपोर्ताज को लेकर शिरीष मध्य-प्रदेश में नर्मदा की डूब और गुजरात के सूरत शहर की संगम टेकरी के बीच एक संबंध जोड़ते हैं. जब जबलपुर के बरगी बांध से विस्थापित परिवारों को चुटका परमाणु संयंत्र परियोजना के चलते फिर से उजड़ने की तैयारी हो रही होती है तब वहां पहुंचे शिरीष इस बारे में लिखते हैं कि कुछ घटनाएं यदि हमारे सामने न घटे तो उनका मर्म हम कभी न समझ सकें, महज एक किताबी आदमी बनकर न रह जाएं. 'बहु-विस्थापन' शब्द से वास्ता कुछ साल पहले सूरत में हुआ था. और अब तपती हुई एक और दोपहर जब चुटका गांव पहुंचा हूं तो जयंती बाई कहती हैं, "एक-एक लकड़ी और ईंट कैसे जोड़ी जाती है, यह सरकार को थोड़ी न पता है." जयंती बाई के तजुर्बे मुझे बहु-विस्थापन शब्द की भयावहता और दुख-ताप से रू-ब-रू करा रहे हैं.
इस पुस्तक में कुल बारह रिपोर्ताज पर आधारित दस्तावेज हैं. साल 2008 से 2017 तक बतौर एक पत्रकार शिरीष ने पत्रकारिता के दौरान देश के दुर्गम भूखंडों में होने वाले दमन-चक्र का लेखा-जोखा तैयार किया है. इस पुस्तक के बारे में सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक हर्ष मंदर लिखते हैं, “जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की जमीनी सच्चाई वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं तब इस पुस्तक का संबंध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है जिसमें लेखक ने विशेषकर गांवों की त्रासदी, अपेक्षा और उथल-पुथल की पड़ताल की है.”
पुस्तक में कुछेक जगहों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर पात्रों के नामों को ज्यों का त्यों रखा गया है. दरअसल, कई बार इन्हीं पात्रों से जुड़ी कहानियों के बारे में समाचारों में कुछ नहीं कहा जाता, जबकि उसे कहने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए लेखक ने अपनी प्रस्तावना में कहा है कि जिन लोगों की सच्ची कहानियों ने सालों तक उनके मन में बहुत अधिक जिज्ञासा पैदा की, उन्हें उन्होंने फिर नये सिरे से समझने और उन पर पूरी ईमानदारी से लिखने की कोशिश की है. इस तरह, इस पुस्तक की सच्ची कहानियों के असली पात्र एक अलग ही दुनिया से रु-ब-रु कराते हैं. देश का यह रूप 21वीं के मेट्रो-बुलेट ट्रैन वाले भारत से अलग है, जो झटके से हमें एक सदी पीछे धकेल देते हैं.
मध्य-प्रदेश में नरसिंहपुर जिले के एक छोटे-से गांव मदनपुर से निकलकर शिरीष ने 18 वर्ष में पहली बार भोपाल जैसे बड़े शहर को देखा था. नौकरियों के चलते शिरीष को कुछ राज्यों की राजधानियों में रहने का मौका मिला, इसके बावजूद उनके रिपोर्ताज देश के सुदूर पिछड़े गांवों से सीधे जुड़ते हैं.
कई नाम ऐसी जगहों से हैं जिनके नाम कभी सुने नहीं गए हैं. बतौर पत्रकार शिरीष ने देश के उपेक्षित लोगों की ऐसी आवाजों को यहां शामिल किया है जिन्हें अमूमन अनसुना और अनदेखा कर दिया जाता है. उन्होंने अपने रिपोर्ताज में भारत की कुलीन और देश की विशाल आबादी के बहुमत के बीच बढ़ती खाई और उदासीनता के टापुओं पर रोशनी डाली है. संभवत: इसलिए डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार आनंद पटवर्धन ने इस पुस्तक के बारे में बैक कवर पर टिप्पणी लिखी है: यह देश-देहात के मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित नया तथा जरूरी दस्तावेज है.”
पुस्तक: एक देश बारह दुनिया
प्रकाशक: राजपाल एंड सन्स
पृष्ठ: 206
मूल्य: 196 रुपए
(समीक्षक आशुतोष कुमार ठाकुर बैंगलोर में रहते हैं. पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं और कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं.)