एक कार्टून को लेकर इस वक्त भारत में जो हायतौबा मची है, इस लेख में उस घटनाक्रम के पीछे के चरित्रों, उनकी दुनिया, ज़िंदगी और सच्चाइयों को ढूंढने की कोशिश है. बहुत सारा सच है, थोड़ा अंदाज़ा भी लगाया गया है.
आईने में दीखता चेहरा
यह कार्टून जिस आदमी को बहुत बुरा लगा, उस आदमी ने बहुत सारे चेहरे बदले हैं. स्टाइल बदला है. बहुत ग्रूमिंग करवाई है, कपड़े बदले हैं. सितारों के साथ सेल्फ़ी खिंचवाई है. कैमरे उसे और वह सिर्फ़ कैमरे को देखता रहा है. लगा होगा कि कार्टूनिस्ट को भी वही करना चाहिए, जो देश के ज़्यादातर प्राइमटाइम एंकर करते हैं. कार्टून देखकर लोगों की हंसी सुनाई पड़ रही है, जिसका शोर बढ़ता जा रहा है. उसी इको चैम्बर में, जो बनाया तो सिर्फ उनका गौरव गान ही देखने और सुनने के लिये ही गया था. पर अब वह सब देखने-सुनने को मिल रहा है, जिसके लिए वे तैयार नहीं थे. कैमरे और टेलीप्राम्पटर का सच कार्टून के सच के सामने छोटा और बेमानी होने लगा. ज़्यादातर लोग दिन में एक बार तो आईने में शक्ल देख ही लेते हैं. कई लोग बहुत बार भी देखते हैं. जहां-जहां उनके पोस्टर लगे थे, वहां-वहां लोग उनके चेहरे की जगह कार्टून देखने लगे.
एक कार्टून को लेकर पूरा देश अपनी भयानक तकलीफ़ों के बावजूद हंसने लगा. इधर सरकार हर तरफ़ अपनी धौंस दिखाकर ये उम्मीद कर रही है कि मामला दब जाएगा. सब लोग उनके बोलने से पहले ही हंसने लगते हैं- कुछ मज़े और मज़ाक़ में, कुछ खिसिया कर. जिन लोगों ने बड़ी उम्मीद के साथ वोट दिया था, वो भी. चीयरलीडर थककर घर लौट रहे हैं. जिस सोशल मीडिया पर सवार होकर उसने देश और दुनिया के सबसे ताकतवर ख़लीफ़ा के रूप में जगह बनाई है, वही सोशल मीडिया बाकी लोगों को समझ आ रहा है. उनके मित्र डोलन भाई (उर्फ़ डोनल्ड ट्रम्प) की मिसाल सामने है, जिसे सोशल मीडिया ने खड़ा किया और उसी ने रौंद भी डाला.
कुछ साल पहले वह कितने टशन के साथ पूरे देश पर हंस रहा था, ‘घर में शादी है.. पैसे नहीं हैं.. हाहाहा.’ नोटबंदी का कार्टूनिस्ट कौन था, जब पूरे देश का कार्टून बना दिया गया था? तेल के दामों का कार्टूनिस्ट कौन है? कोविड की तमाम दुर्व्यवस्थाओं का कार्टूनिस्ट कौन है? प्रति व्यक्ति जीडीपी गिराने का? नौकरियां जाने का? बच्चों के अंधकारमय भविष्य का? देश के किसानों, अल्पसंख्यकों, नौजवानों को यातना देने का सोचा-समझा क्रूर मज़ाक़ कौन कर रहा है?
ये मज़ाक़ थोड़े कम क्रूर और धूर्त लगते, अगर अंट-शंट वादे करके कुर्सी न हासिल की गई होती. ये दुनिया और इतिहास की सबसे विलक्षण सरकार है जिसके वादों के सामने सब कुछ कार्टूनमय नज़र आता है. इसका श्रेय न नौकरशाही को मिलेगा, न पार्टी को, न कैबिनेट को, न मीडिया घरानों को, न उद्योगपतियों को. ये श्रेय उसी को मिलेगा, जिसने हर बात का श्रेय बेशर्मी से ख़ुद को दिया है.
पर हमें उनसे ख़तरा नहीं है. मेरी सरकार को अब विचार से ख़तरा है, अभिव्यक्ति से ख़तरा है, सवाल से ख़तरा है, श्लेष और वक्रोक्ति अलंकारों से ख़तरा है, कटाक्ष, हास्य और व्यंग्य से ख़तरा है, टिप्पणी से ख़तरा है, शांति और हक़ की बात करती औरतों, आदिवासी, दलितों और नौजवानों से ख़तरा है. उसे उसके झूठ पकड़ने वालों से ख़तरा है. आईना दिखाने वालों से ख़तरा है. अगर आपको लोकतंत्र में एक कार्टूनिस्ट से ख़तरा है तो फिर आपको हर नागरिक के आज़ाद और लोकतांत्रिक होने से ख़तरा है. आपकी सरकार को आपसे ही ख़तरा है.
ये ख़तरा एक ही आदमी को महसूस हो रहा है. अक्षम, असफल, कमजोर, अप्रभावी साबित होने के बाद कैसा लग रहा होगा अपने बंद कमरों में. अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है. कैसा लगता होगा, इतनी सारी लाशें बिछ गईं क्योंकि आपने समय रहते कदम नहीं उठाए. कितना दर्दनाक होता होगा उस आदमी के लिए, जो हमारी शिक्षा, स्वास्थ्य, शांति, आजीविका, अर्थव्यवस्था, क़ानून, सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हो और कोई भी काम ठीक से न कर पाया हो. जब वह अपने पुराने वादे देखता होगा तो कितनी ग्लानि से भर जाता होगा. जब पूरा लाव-लश्कर किसी पेट्रोल पम्प से गुजरता होगा तो वहांं अपनी शक्ल देखना कितने अपराधबोध से भर देता होगा. जब भी सरकारी विभाग अपने आंकड़े साझा करते होंगे, तो उन्हें देखकर किसका कलेजा मुंह को नहीं आ जाता होगा और उसके बाद उन पर लीपा-पोती करवाने का हुक्म देते दिल पर पत्थर तो रखना ही पड़ता होगा. खाने का कौर कैसे निगला जाता होगा ऐसे में, ये सोचना भी अकल्पनीय है. एक रिकॉर्डेड सम्बोधन में कैमरे के सामने एक अटके हुए आधे आंसू से इस भयावह विषाद और ग्लानि का अंदाज़ा लगाना काफ़ी मुश्किल है.
ऐसे में क्या आश्चर्य कि आपको अपनी शक्ल बार-बार उस कैरीकेचर से मिलती दिखलाई दे, जो एक कार्टून का पात्र है. कि आप उसे बार-बार हाथ फेर मिटाना चाहें पर वह बार-बार फिर से वही हो जाए जिससे आप बचना चाह रहे हैं. उन सारी बातों की याद दिलाता हुआ, जो आपने हांकी तो थीं, पर कर नहीं पाये.