अपने-अपने हैबिटैट में जूझती दो मादाओं की कहानी है शेरनी

इस फिल्म में एक मादा टाइगर अपने आवास की खोज में है. जंगल में रहने वाले लोगों से उसका टकराव होता है इस क्रम में उसे आदमखोर घोषित कर दिया जाता है.

WrittenBy:दिनेश चौधरी
Date:
Article image

अब निशान शेरनी के पंजों के बजाय भालू के हैं तो बात का रुख और हो सकता है. इस मुद्दे पर राजनीति होती है. महिला अधिकारी का उद्देश्य है मादा टाइगर को और उसके दो बच्चों को बचाना. उसका ये सीधा सादा सा उद्देश्य जो उसकी ड्यूटी भी है उसमें आने वाली अड़चनों को जब आप जानना चाहें तो फिल्म देखें. ये सच है कि भले ही आज लोकतन्त्र है लेकिन इसका भी इस्तेमाल किया जाता है.

सत्ता के साथ जिसका गठजोड़ है वो सुकून में है लेकिन जो ईमानदारी से अपना काम करना चाह रहा है वो भले ही परेशान है लेकिन उसकी अपनी ड्यूटी निभाने की जो तसल्ली है वो अपने आप में निश्चित रूप से आशावाद का संचार करती है.

एक शिकारी जो केवल अपने शिकार के नम्बर बढ़ाना चाहता है उसके तर्क आपको उसके अहंकार को बताते हैं. गांव वाले सहसंबंध में विश्वास करते हैं. इसके भी चिह्न आपको फिल्म देख कर मिल ही जाते हैं.

मादा टाइगर जो भले ही उस क्षेत्र में आ गई हो जहां गांव वाले हैं लेकिन वो अपने प्राकृतिक आवास की तरफ बढ़ रही है. बीच में कॉपर की खान को खोद कर उसके लिए मुसीबत भी आदमी ने खड़ी की है. अपने विकास के चक्कर में आदमी ने प्रकृति का नाश कर दिया. सरकार और प्रशासन इस आदमी की सबसे बड़ी प्रतिनिधि है.

एक महिला अधिकारी अपने घर में समाज में नौकरी में जैसे जूझ रही है वैसे ही एक मादा टाइगर भी जंगल में जूझ रही है. दोनों को अपना मुकाम कैसे मिलता है इसके लिए आप फिल्म देखें. फिल्म अमेजन प्राइम पर है और 18 जून 2021 को रिलीज हुई है. पर्यावरण संरक्षण और वाइल्ड लाइफ में इंसान के दखल ने आदमी और इंसान दोनों को मुसीबत में डाल दिया है.

फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करेगी यदि आप हर जीव के अस्तित्व में विश्वास करते हैं. न्यूटन बनाने वाले अमित मसुरकर इसके निर्देशक हैं. विद्या बालन, विजयराज जहां एक पक्ष के रूप में आपको अपने विचलन को समझने की दृष्टि देते हैं वहीं बृजेंद्र काला और शरत सक्सेना को देखना आपको झुंझलाए रखता है. इतना ही मुश्किल है सच की ओर होना जितना काला और सक्सेना को इस फिल्म में देखना.

Also see
article imageफिल्म लॉन्ड्री: किस्सा ख्वानी बाज़ार में गूंजेंगे दिलीप कुमार और राज कपूर के किस्से
article image"अच्छा हुआ कि मेरी पहली दोनों फिल्में रिजेक्ट हो गईं वरना मैं कभी ‘लगान’ नहीं बना पाता"

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like