दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित किया. अपनी वैक्सीन नीति पर यू टर्न मार लिया. इस अवसर पर दुमछल्ले मीडिया और फिल्मसिटी की बैरकों में घात लगाए एंकर एंकराओं ने जमकर सोहरगान किया. उनकी समझ में मोदीजी का पूरा भाषण आया या नहीं यह तो वो ही जानें लेकिन एक बात साफ है कि दुमछल्ले मीडिया ने इस पूरे भाषण की सिर्फ एक चीज समझ आई- मोदीजी सबको फ्री वैक्सीन देंगे.
खुदा माफ करें, मुफ्त की चीजें कभी इतनी हसीन न हुआ करती थीं, जितना मोदीजी के इस यू टर्न से हो गईं. ज्यादा नहीं साल डेढ़ साल पहले तक इन्हीं एंकर एंकराओं को लगता था कि लोगों को मुफ्त की चीजें बांटकर उन्हें मुफ्तखोर बनाया जा रहा है.
दूसरों के इशारे पर नाचने का यही नतीजा होता है, खासकर सियासत के इशारे पर नाचने का. दुमछल्ले मीडिया के एंकर एंकराओं को अहसास ही नहीं हुआ कि महज डेढ़ साल पहले उनकी जुबान फ्री को लेकर क्या-क्या गुल खिला चुकी है.
इस मसले को थोड़ा अलग तरीके से समझने की जरूरत है. जिसको फ्रीबीज़ कहकर गाली बनाने की कोशिश की जा रही थी वह इन एंकर एंकराओं की मानसिक गुलामी का नतीजा है. भारत एक वेलफेयर स्टेट है. हमारे संविधान का अड़तीसवां अनुच्छेद इसकी विस्तार से व्याख्या करते हुए कहता है कि राज्य लोगों की भलाई, उनके जीव नस्तर में सुधार के लिए काम करेगा. दिक्कत यह हुई की यह संविधान ७० साल पहले लिखा गया. तब कहां किसी को पता था कि सरकारें पूंजी की गुलाम हो जाएंगी. राज्य संविधान में तो कल्याणकारी बना रहेगा लेकिन सरकारें प्राइवेट हाथों में खेलने लगेंगी, और प्राइवेट का सारा जोर मुनाफे पर होता. अब मुनाफा और वेलफेयर दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते. ऐसे में इस बात की शिद्दत से जरूरत महसूस होने लगी कि राज्य कम से कम नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य अनाज, सड़क, बिजली और पानी आदि अपने गरीब और साधनविहीन नागरिकों को मुहैया करवाएं.
यह कोई भारत की बात नहीं है. ब्रिटेन का एनएचएस स्वास्थ्य व्यवस्था में मिसाल है. अमेरिका में ओबामा केयर की इसी तर्ज पर तारीफ हुई. दुनिया के तमाम अमीर देश अपने नागरिकों को इस तरह की सुविधाएं देते हैं. मनरेगा जैसी योजना इसी सोच से पूरे देश में लागू हुई थी. लेकिन अनपढ़ एंकरों ने इसे सिर्फ वोट और मुफ्तखोरी की नजर से देखा. किसी को कहां पता था कि कालांतर में जब मोदीजी प्रधानमंत्री बनेंगे, तब मीडिया उनका दुमछल्ला बन जाएगा. मीडिया आज़ाद रहे इसकी जिम्मेदारी अब आपको उठानी पड़ेगी. सरकारों और कारपोरेशन के हित मीडिया को दुमछल्ला ही बना सकते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब कीजिए और गर्व से कहिए मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें