महाराष्ट्र: कोविड-19 की दूसरी लहर से गांवों में रहने वाले परिवारों की बदहाली

महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में परिजनों की मृत्यु के बाद परिवार इस कश्मकश में हैं कि आगे घर कैसे चलेगा.

24 साल की मोहिनी वोबड़े के पति वैष्णव और सास की मई के महीने में कोविड के संक्रमण से मृत्यु हो गयी थी. उनकी सास चन्द्रकला 26 मई को गुज़र गयी थीं और उसके तीन दिन बाद उनके पति की भी मौत हो गयी. अब मोहिनी अपने दो बेटों पांच वर्षीय चैतन्य और ढ़ाई वर्षीय अदविक के उनके ससुराल हिंगनगांव में अकेली रह गयी हैं. मोहिनी के पति वैष्णव महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में अस्थायी कर्मचारी थे और उन्हीं की कमाई से सारा घर चलता था.

अपने घर में हुयी दो मौतों के चलते सहमी हुयी सी मोहिनी कहती हैं, "मेरी सास की जब मौत हुयी थी तो उसके बारे में मैंने अपने पति को नहीं बताया था. डर था कि उनकी तबीयत बिगड़ जायेगी, लेकिन तीन दिन बाद वो भी चल बसे. घर में एक रुपया नहीं बचा है. घर का राशन भी ख़त्म हो चुका था. सिर्फ एक किलो आटा, ढाई सौ ग्राम सींग दाना, एक किलो शक्कर, थोड़ा सा गुड़ और तेल बचा था. गांव वालों ने उनकी मृत्यु के बाद भी राशन खरीद कर दिया था और अब ख़त्म होने पर फिर से राशन खरीद कर दे गए हैं. बच्चों के लिए दूध तक पड़ोस वाले देते हैं. परिस्थिति बहुत खराब है. नौकरी करनी ही पड़ेगी अब. 11वीं पास मोहिनी को अब काम की तलाश है. उनके पति के इलाज में पांच लाख रूपये खर्च हो चुके हैं उसे लौटाने की ज़िम्मेदारी भी अब उन पर है."

मोहिनी की ही तरह शिंदे वस्ती में रहने वाली 35 वर्षीय उज्जवला मोरे अपने पति 40 वर्षीय परमेश्वर मोरे और सास सरूबाई मोरे, (लगभग 65 वर्ष) को खो चुकी हैं. शिक्षक परमेश्वर मोरे के घर के आगे अब ताला लगा है अप्रैल के महीने में उनकी और उनकी बुज़ुर्ग मां सरूबाई मोरे की कोरोना से मौत हो गयी थी. उनकी मृत्यु के बाद अब उनकी पत्नी उज्ज्वला मोरे, 11 साल का बेटा प्रथमेश और 16 साल की बेटी प्रणाली कोल्हापुर चले गए हैं. उज्जवला को पति और सास की मौत का सदमा लग गया है.

उनकी पड़ोसी और रिश्तेदार मंगल मोरे कहती हैं, "परमेश्वर भाऊ की मौत 24 अप्रैल को हो गयी थी और उसके दो दिन बाद उनकी मां की भी मृत्यु हो गयी थी. घर में कमाने वाले सिर्फ परमेश्वर भाऊ ही थे. उनकी पत्नी गृहणी हैं और बच्चे भी स्कूल में पढ़ते हैं. घर की सारी ज़िम्मेदारी अब उनकी पत्नी पर आ गयी है. इस हादसे ने उनको हिला कर रख दिया है, इसलिए उनकी मां उन्हें अपने साथ कोल्हापुर ले गयी हैं."

गौरतलब है कि इन्ही सभी परिवारों से जब हमने किसी भी तरह की सरकारी मदद के बारे में पूछा तो उनका जवाब ना में था.

इस बारे में जब न्यूज़लॉन्ड्री ने अहमदनगर के जिलाधिकारी राजेंद्र भोसले से जब ऐसे परिवारों की सरकार और प्रशासन द्वारा मदद नहीं किये जाने के बारे में सवाल किये तो वह कहते हैं, "हम ऐसे परिवारओं को राशन, उनके बच्चों की पढ़ाई आदि को लेकर मदद कर रहे हैं. अगर ऐसे कोई परिवार हैं जिनकी मदद नहीं हो पायी है तो हम उनकी मदद करने को पूरी तरह से तैयार हैं. अगर हमसे उन तक पहुंचने में चूक हुयी है तो आप हमें उनका नाम और पता बताइये. हम ज़रूर उन तक पहुंचेंगे."

अहमदनगर की समाज सेवी संस्था स्नेहालय जो ऐसे परिवारों की मदद करने की पहल कर रही हैं के लिए काम करने वाले अजीत कुलकर्णी कहते हैं, "जिन परिवारों ने अपने इकलौते कमाने वालों को खो दिया है हम ऐसे परिवारों के पास सरकार से पहले पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. इन परिवारों को इस वक़्त जल्द से जल्द मदद की ज़रुरत है. महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने ही अब तक ऐसे परिवारों की मदद के लिए कोई योजना नहीं बनाई है. इन लोगों को इस वक़्त राशन, वैद्यकीय सहायता, बच्चो की पढ़ाई के लिए तुरंत मदद की ज़रूरत है. अपने परिवार के कमाऊं लोगों को खो देने के बाद इन परिवारों का भविष्य रातोरात अनिश्चितता में चले गया है."

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