कोविड-19 के चलते विधवा महिलाओं पर ऐसी मार पड़ी है कि इनकी स्थिति बद से बदतर हो चुकी है.
वहीं ताड़सोन्ना गांव की 20 साल की प्रगति मिसाल पिछले साल अपने पति जयदेव के साथ माज़लगांव में नवंबर के महीने में गन्ना काटने गयी थीं. उन्होंने एक लाख रूपये की मुकादम से उचल ली थी. लेकिन 15 दिन बाद खेत में गन्ना काटते हुए उनके पति बेहोश हो गए थे. उनको अस्पताल ले जाया गया लेकिन उनकी मृत्यु हो गयी. मुकादम अब उनसे पैसे लौटाने के लिए कह रहा है.
प्रगति कहती हैं, "वो पैसे मेरे ससुर के पास गए थे लेकिन मुकादम मुझसे पैसे मांग रहा है. वह मेरे पिता पर पैसे लौटाने का दबाव बना रहा है. हफ्ता भर पहले मुकादम घर आया था वो मेरे पिता से कह रहा था कि वो अपनी आधा एकड़ ज़मीन बेच कर पैसे लौटाएं. ज़मीन तो हम नहीं बेचेंगे लेकिन अब मुझे, मेरे मां-बाप को, बहन को सबको गन्ना काटने जाना होगा."
प्रगति अब अपने मां-बाप के पास रहती हैं. उनके दो छोटे बच्चे हैं. वह कहती हैं, "मैं अपने पिता पर बोझ नहीं बनाना चाहती हूं. लॉकडाउन में हमारे पास बिलकुल भी पैसे नहीं थे. मजदूरी मिल नहीं रही है इसलिए 20 हजार रुपए की उधारी ली है घर चलाने के लिए. वो पैसे भी कुछ समय बाद ख़त्म हो जाएंगे. अगर तब भी काम नहीं मिला तो पता नहीं क्या होगा."
प्रगति के पिता बालू नामदेव कहते हैं, "महाराष्ट्र की सरकार सिर्फ अमीरों के लिए है, इनको गरीबों से कोई मतलब नहीं. इनको लगता है गेहूं चावल देकर गरीबों के प्रति इनकी ज़िम्मेदारी पूरी हो गयी. हम लोग पहले से ही गरीब हैं इस कोरोना के चलते हमारे घर और तबाह हो रहे हैं. सरकार इतनी निक्कमी है कि पिछले महीने चावल और गेहूं मुफ्त में बांटने का ऐलान किया था लेकिन अभी तक लोगों को मुफ्त राशन नहीं मिल रहा है."
बीड में एकल गन्ना काटने वाली महिलाओं के लिए काम करने वाले महिला अधिकार किसान मंच की मनीषा टोकले कहती हैं, "पिछले साल के मुकाबले इस साल प्रदेश सरकार बिलकुल भी संवेदनशील नहीं है. उन्हें पता ही नहीं है लोग कैसे जी रहे हैं, कैसे रह रहे हैं. प्रदेश सरकर ने कहा था कि मई और जून में वो गांवों में मुफ्त में राशन बाटेंगे, उन्होंने कुछ गांव में बांटा है लेकिन बहुत से गांव में नहीं बांटा. मुकादम कोविड में पेशगी नहीं दे रहे हैं वो कहते हैं अगर कोविड के चलते कोई मर गया तो वो पैसा किससे वसूल करेंगे. वो एकल महिलाएं पर फ़ोन करके उनके घर जाकर पैसे लौटाने का दबाव बना रहे हैं. पिछले साल सरकारी कंट्रोल वाले अगर राशन नहीं बांट रहे थे तो सरकार उन पर कार्यवाई कर रही थी लेकिन इस साल कुछ भी नहीं कर रही है. गांवों में परेशानी और घोर गरीबी में रह रहे हैं. परिवारों की सरकारी मुलाज़िमों के ज़रिये लिस्ट बनानी चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए. तलाठी, ग्राम सेवक, कृषि सेवक, आंगनवाड़ी सेविका, आशा वर्कर, पुलिस पाटिल आदि सरकारी मुलाज़िमों की बैठक लेकर उन्हें लोगों की मदद करने के लिए कहना चाहिए. यह इमरजेंसी का वक़्त है और इमरजेंसी में सरकार की ज़िम्मेदारी होती है कि वो अपने लोगों का ख्याल रखे."
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में बीड के पालक मंत्री और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर धनंजय मुंढे से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से अभी कोई जवाब मिला नहीं है. उनका जवाब मिलते ही इस कहानी में जोड़ दिया जाएगा.
वहीं न्यूज़लॉन्ड्री ने राज्य सरकार द्वारा स्थापित गोपीनाथ मुंढे ऊसतोड़ कामगार महामण्डल के अध्यक्ष केशव आंधळे से बात की तो वो कहते हैं, "मैं खुद इस मामले को देखूंगा कि उनको खाने पीने की क्या दिक्कतें हैं साथ ही साथ जो मुकादम उनको तंग कर रहे हैं उन पर भी उचित कार्रवाई करूंगा."