दिलचस्प यह है कि एक ओर जहां हर साल सरकार खाद्यान्न का रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन का जश्न मान रही है. वहीं, दूसरी ओर किसानों की संख्या कम हो रही है और कृषि श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है. आंकड़े बताते हैं कि भारत के 52 प्रतिशत जिलों में किसानों से अधिक संख्या कृषि श्रमिकों की है. बिहार, केरल और पदुचेरी के सभी जिलों में किसानों से ज्यादा कृषि श्रमिकों की संख्या है. उत्तर प्रदेश में 65.8 मिलियन (6.58 करोड़) आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन कृषि श्रमिकों की संख्या 51 फीसदी और किसानों की संख्या 49 फीसदी है.
सरकार का दावा है कि वह 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देगी, लेकिन लगभग एक साल बचा है, अब तक सरकार यह नहीं बता रही है कि अब तक किसानों की आमदनी कितनी हुई है. जबकि किसानों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में खेती की लागत इतनी बढ़ गई है कि आमदनी दोगुनी होना तो दूर, कम हो गई है. गैर कृषि कार्यों में भी किसानों को फायदा होता नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि जानकार मानते हैं कि आमदनी घटने के कारण किसानों का खेती से मोह भंग होता जा रहा है. ऐसे में कॉरपोरेट की नजर अब कृषि क्षेत्र पर है और कृषि कानूनों में इस तरह की व्यवस्था की गई है, जिससे इस क्षेत्र में कॉरपोरेट का वर्चस्व बढ़ता जाएगा.
(साभार- डाउन टू अर्थ)