महाराष्ट्र के बीड जिले में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित झोलाछाप डॉक्टरों की भेंट चढ़ गए.
न्यूज़लॉन्ड्री ने कारी, नित्रुड, बड़ेवाड़ी में ऐसे दर्जन भर परिवारों से बात की जिनके परिवार के किसी न किसी सदस्य ने डॉ. विलास शेटे, डॉ. एचए वेताल, डॉ. विजय गणगे और डॉ. संतोष कुमार तोषनीवाल से इलाज करवाया था और बाद में उनकी मौत हो गयी.
नित्रुड ग्राम पंचायत में 22 लोगों की कोविड से मौत हो चुकी है. तकरीबन आठ हजार की आबादी वाले इस ग्राम पंचायत में कोविड के लक्षण वाले मरीजों का इस तरह से इलाज कर रहे डॉक्टरों को नोटिस जारी किया है. इस नोटिस में लिखा था कि कोविड की जांच (एंटीजन टेस्ट/ आरटीपीसीआर) किये बिना किसी भी मरीज की अपने मन से कोई इलाज ना करें और ना कोई जांच (रक्तजांच आदि) करें.
नित्रुड ग्रामपंचायत के सरपंच दत्ता डाके न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, "बुखार खांसी होने पर गांव के लोग निजी डॉक्टरों के पास जा रहे थे और इन डॉक्टरों ने गांव के लोगों पर अपने प्रयोग करने शुरू कर दिए. इन लोगों के प्रयोगों के चक्कर में लोगों की जाने चली गयीं. कोविड जैसे लक्षण दिखने के बावजूद भी इस तरह के डॉक्टर अपने मन से लोगों का कुछ भी इलाज कर रहे हैं. वो उन्हें कोविड की जांच करने के निर्देश नहीं देते हैं. हमारे गांव में जो 22 लोगों की मौत हुयी है वह सभी लोग ऐसे डॉक्टरों द्वारा बेवकूफ बनाये गए हैं. जैसे ही हमें समझ में आया हमने पंचायत की एक कमेटी बनायी और ऐसे सभी डॉक्टरों को नोटिस भेजा.
वह आगे कहते हैं, "यह जो देहातों में कोरोना फैला है वो इसी तरह के झोलाछाप डॉक्टरों की वजह से फैला है. सरकार को इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए."
हमने पाया कि डॉ. विनोद शेटे, डॉ. एचए वेताल, डॉ. विजय गणगे और डॉ. संतोष कुमार तोषनीवाल के क्लीनिक तेलगांव-माज़लगांव रोड पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर थे.
न्यूज़लॉन्ड्री ने उनके क्लिनिक पर जाकर इनमें से कुछ लोगों से बात की. डॉ. विनोद शेटे एक बीएएमएस डिग्री वाले आयुर्वेदाचार्य हैं. जनसेवा नाम से अपना क्लिनिक चलाते हैं. वह कहते हैं, "हम उसका इन्वेस्टीगेशन (जांच-पड़ताल) करते हैं, उसको एंटीबायोटिक, एंटी वायरल, स्टेरॉइड्स और कफ सिरप देते हैं. हम उनसे तीन दिन बाद आने के लिए बोलते हैं. अगर पेशेंट तीन दिन बाद सर्दी-खांसी वापस लेकर आता है तो हम उसके ब्लड की जांच (सी-आरपी - सी रिएक्टिव प्रोटीन) करते हैं. चेस्ट (छाती) की जांच करते हैं और अगर रिजल्ट आने के बाद उसमे कुछ कम-ज़्यादा होता है तब सीटी स्कैन करने को बोलते हैं और फिर कोविड की जांच करने को बोलते है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे पूछा कि उनके पास आये कोविड के लक्षण वाले मरीजों को पहले कोविड की जांच करने के लिए क्यों नहीं कहते, तो उन्होंने कहा, "पहली बार जब हमारे पास मरीज आता है तो हम उसको बोल नहीं सकते कि कोरोना की जांच कराओ. हम उसको बोलते हैं दो-तीन दिन दवाई खाओ. उससे अगर आराम नहीं लगता है तो फिर जांच करवाने को बोलते हैं.”
वह आगे कहते हैं, "मैं पिछले दो महीनो में लगभग चार से पांच हज़ार कोविड के लक्षण वाले मरीजों का इलाज कर चुका हूं और इनमें से लगभग 300 से 400 कोरोना पॉजिटिव मरीज भी आये होंगे, वह अच्छे भी हुए हैं.”
डॉ. विजय गणगे भी एक बीएएमएस डॉक्टर हैं. वो हमें बताते हैं, "अगर कोई कोविड के लक्षण वाला मरीज हमारे पास आता है तो हम उसे पहले वायरल बुखार का इलाज देते हैं. अगर दो से तीन दिन में हालत नहीं सुधरती है तो फिर हम मरीज का ब्लड टेस्ट करते हैं, उसे डॉक्सीसाइक्लिन की गोलियां देते हैं और सलाइन लगा देते हैं. उसके बाद भी अगर हालत नहीं ठीक होती है तो कोविड की जांच करने को बोलते हैं. पिछले दो महीने में मैंने लगभग एक हजार कोविड के लक्षण वाले मरीजों को ठीक किया है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने माउली नाम का क्लिनिक चलने वाले डॉ. एचए वेताल से भी बात की. पहले तो उन्होंने कहा कि वह कोविड के लक्षण वाले मरीजों का इलाज नहीं करते, लेकिन थोड़ी देर बातचीत करने के बाद वह खुलते हुए बोले, "ऐसा है कि जिनके पास पैसे नहीं होते वो कोविड के इलाज के लिए 80 हज़ार रूपये कहां से लाएंगे. लेकिन हम उनको 10 हज़ार में ठीक कर देते हैं. हम सलाइन चढ़ा देते हैं, दवाई देते हैं, अगर कुछ दिनों बाद असर नहीं होता है तो सीटी स्कैन करने को बोलते हैं, और अगर पॉजिटिव नतीजा आता है तो कोविड में दी जाने वाली गोलियां देते हैं."
इन सभी डॉक्टर्स ने बातचीत के दौरान बताया कि वह कोविड के लक्षण के मरीजों का पहले खुद ही इलाज करते हैं और बाद में जब हालत ठीक नहीं होती है तो कोविड की जांच करने को बोलते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने डॉ. संतोष तोषनीवाल से भी उनके क्लिनिक जाकर बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया.
बीड के ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले एक संगठन जागर प्रतिष्ठान के अध्यक्ष अशोक तांगड़े कहते हैं, "बीड के देहातों में बड़ी तादाद में बीएचएमएस, बीएएमएस डॉक्टर अपने छोटे-छोटे अस्पताल खोलकर बैठे हुए हैं. उन्होंने जिस पद्धति की शिक्षा ली है, उसी के अनुसार मरीजों को दवा देना चाहिए. मगर आम तौर पर यह देखा जाता है कि ये डॉक्टर बिना डिग्री के ही एलोपैथी की प्रॅक्टिस करते है. कोविड के समय देहात के लोग बीमार होने के बाद सबसे पहले उनके पास जाते हैं. ये डॉक्टर तीन चार दिन तक उनका इलाज करते हैं फिर कोविड की जांच करने को कहते हैं. अक्सर तब तक हालात काबू के बाहर निकल जाते हैं.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में बीड के जिलाधिकारी रविंद्र जगताप से भी बात की. वह कहते हैं, “हमने एक टीम बनायी है जो ग्रामीण इलाकों में ऐसे डॉक्टरों के कामों की शिकायत मिलने पर जांच करती है. हमने पहले भी ऐसे कुछ अस्पतालों को सील करवाया है. हम इस बात की जांच कर उन डॉक्टर्स पर कठोर कार्रवाई करेंगे.”