केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जून, 2020 तक ही देश में 75 हजार वेंटिलेटर की जरूरत बताई थी लेकिन करीब एक साल बीत चुके हैं और देश के सरकारी अस्पतालों में महज 50 फीसदी वेंटिलेटर ही लग पाए हैं.
75 हजार वेंटिलेटर बीते वर्ष के अनुमान में अब तक 50 फीसदी
कोविड की तीसरी लहर आने को है और अस्पताल अब भी वेंटिलेटर जैसी अहम जरूरत के लिए जूझ रहे हैं. ऐसा खासतौर से उन राज्यों में है जहां ग्रामीण आबादी सबसे ज्यादा है. इनमें बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश प्रमुखता से शामिल हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अप्रैल, 2020 में 60,948 वेंटिलेटर्स का ऑर्डर दिया था. इनमें 58850 वेंटिलेटर मेक इन इंडिया के तहत बनने थे. अब तक सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर इंस्टाल किए जाने का आंकड़ा करीब 50 फीसदी तक ही पहुंच पाया है.
क्या है वेंटिलेटर और क्यों है जरूरी ?
कई पाइपों से घिरे हुए एक मॉनिटर युक्त मेडिकल बेड पर मरीज को अचेत लेटे देखा होगा आपने. ऐसे मरीज जो फेफड़ों के संक्रमण (एक्यूट रिस्परेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम- एआरडीए) के चलते न सांस ले सकते हैं और न ही बाहर निकाल सकते हैं, उनके लिए इनवेसिव वेंटिलेटर आखिरी रास्ता होता है.
इनवेसिव वेंटिलेटर वह है जिसमें फेफड़ों के बीचो-बीच एक नली मुंह के रास्ते पहुंचा दी जाती है. इस प्रक्रिया को मेडिकल की भाषा में इंटूबेशन कहते हैं. दो पाइप होती हैं. यह पाइपें मरीज के रक्त से कॉर्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकालने (एक्सहेल) और शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने (इनहेल) का काम करती है. एक मॉनीटर पर हवा का दबाव (एयर प्रेशर) और ऑक्सीजन की मात्रा का ग्राफ चलता रहता है. ऐसे गंभीर मरीज के आस-पास डॉक्टर और दक्ष व्यक्ति का होना बेहद जरूरी है. ताकि वह मरीज को वक्त वक्त पर सही दबाव वाली हवा और ऑक्सीजन की मात्रा का निर्धारण कर सके.
ऐसी स्थिति में मरीज बोलने में असमर्थ होता है. एक यह भी कारण है कि गांव-देहात में ऐसे अस्पताल और आईसीयू अभी कल्पना से परे हैं. जहां ऐसे वेंटिलेटर लगाए जा सकें. इन दिनों ज्यादातर अस्पतालों में इनवेसिव वेंटिलेटर की देख-रेख और उन्हें चलाने की परेशानी सामने आ रही है.
सोशल मीडिया पर अस्पतालों में गंभीर मरीज जो कि ऐसे वेंटिलेटर पर हैं उनकी वीडियो फुटेज लाइव करने की मांग तीमारदारों के जरिए हो रही है, ऐसा इसलिए है क्योंकि कई परिजनों का आरोप है कि अस्पतालों में वेंटिलेटर की देखभाल ठीक तरीके से नहीं की जा रही और जिसके कारण मरीज की मृत्यु हो रही है.
द लैंसेट जर्नल के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का मानना है कि कोविड मरीजों के फेफड़ों में संक्रमण का इलाज यथासंभव कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सीपीएपी) अथवा नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन के जरिए किया जाना चाहिए.
वेंटिलेटर का विकल्प
हाई फ्लो नसल कैनुला (एचएफएनसी) भी वेंटिलेटर का विकल्प हो सकते हैं. पटना एम्स के अधिकारी लगातार ज्यादा से ज्यादा एचएफएनसी की खरीद पर जोर दे रहे हैं. 17 मई, 2021 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश सरकार को एचएफएनसी के लिए कहा है.
यह नॉन इनवेसिव हाई फ्लो ऑक्सीजन थैरेपी होती है जिसके जरिए फेस मास्क कवर करके फेफड़े के संक्रमित मरीजों को अत्यधिक बहाव वाला ऑक्सीजन दिया जाता है. डॉक्टर्स का कहना है कि इस डिवाइस से भी स्थिति को सुधारा जा सकता है.