बांग्लादेश की 16.3 करोड़ की आबादी में से करीब 41 फीसदी लोग समुद्र तल से 10 मीटर या उससे कम ऊंचाई पर रहते हैं. वहीं 28 फीसदी आबादी तटों पर रहती है.
यह शोध 2020 में किए एक अन्य शोध को ही आगे बढ़ाता है जिसमें समुद्र के बढ़ते जलस्तर के चलते बांग्लादेश में आबादी के पलायन की जांच की गई थी. जिसमें सूचना के कुछ विशिष्ट सिद्धांतों की मदद से स्थानीय स्तर पर इसे समझने का प्रयास किया गया था.
इन्हीं आंकड़ों के आधार पर पहले के प्रवासन सम्बन्धी मॉडल ने भविष्यवाणी की थी कि बांग्लादेश के केंद्रीय क्षेत्र, जिसमें उसकी राजधानी ढाका भी शामिल है, में प्रवासियों की आबादी काफी बढ़ जाएगी. इस नए अध्ययन में इस बात को स्वीकार किया गया है पर उसके अनुसार प्रवास के चलते जो लोगों की भारी आबादी ढाका में आएगी उसके कारण लोग राजधानी को छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगें, जिससे वहां की जनसंख्या में गिरावट आ जाएगी.
इस नए शोध से जुड़े शोधकर्ताओं का मानना है कि इस नए गणितीय मॉडल का प्रयोग किसी भी देश में किसी भी आपदा जैसे सूखा, भूकंप या जंगल की आग और उसके कारण होने वाले प्रवासन का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है. उनके अनुसार यह अपेक्षाकृत सरल है और कम आंकड़ों के आधार पर विश्वसनीय भविष्यवाणियां कर सकता है.
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता मौरिजियो पोर्फिरी के अनुसार यह गणितीय मॉडल पर्यावरण सम्बन्धी आपदाओं के चलते होने वाले प्रवासन का बेहतर अनुमान लगाने में मदद कर सकता है. जिसकी मदद से हम भविष्य के लिए प्रवासन से जुड़े पैटर्न को लेकर हमारी तैयारियों को बेहतर बना सकते हैं. साथ ही यह उससे जुड़ी नीतियां के निर्माण में भी यह हमारी मदद कर सकता है.
कुछ ऐसी ही राय अन्य शोधकर्ता डी लेलिस की भी है जिनके अनुसार इस मॉडल से प्राप्त जानकारी सरकार को योजना बनाने में मदद कर सकती है. साथ ही जिन क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ने की आशंका है वहां संसाधनों को आवंटित करके इस तरह की आपदाओं से बचने के लिए प्रभावी रूप से तैयार की जा सकती है. साथ ही यह व्यवस्था की जा सकती है कि इस तरह के प्रवास से निपटने के लिए शहर पूरी तरह से तैयार रह सकें. उनके अनुसार चाहे पर्यावरण से जुड़ी आपदाएं हो या राजनीतिक तनाव, प्रवास किसी भी कारण से हो सकते हैं, पर जरुरी यह है कि अंत में विज्ञान की मदद से इससे जुड़े सही निर्णय लिए जाएं.
(डाउन टू अर्थ से साभार)