केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट से: कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो

सर्वोच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन के लिए एक कार्यदल गठित कर, सरकार को उस जिम्मेदारी से अलग कर दिया है.

WrittenBy:कुमार प्रशांत
Date:
Article image

स्कूल-कॉलेज के युवा लंबे समय से घरों में कैद हैं. नौकरीपेशा लोग घरों से अपनी नौकरी कर रहे हैं. इन सबको 4-6 घंटे समाज में काम करना होगा. ये कोरोना बचाव की जरूरी बातों का प्रचार करेंगे, मास्क व सफाई के बारे में जागरूकता फैलाएंगे, मरीजों को चिकित्सा सुविधा तक पहुंचाएंगे, वैक्सीनेशन केंद्रों पर शांति-व्यवस्था बनाने का काम करेंगे. इनमें से अधिकांश कंप्यूटर व स्मार्टफोन चलाना जानते हैं. ये लोग उस कड़ी को जोड़ सकते हैं जो ग्रामीण भारत व मजदूरों-किसानों के पास पहुंचते-पहुंचते अधिकांशत: टूट जाती है. यह पूरा ढांचा द्रुत गति से खड़ा होना चाहिए और सरकारों को इस पर जितना जरूरी है, उतना धन खर्च करना चाहिए. सारी राष्ट्रीय संपदा नागरिकों की ही कमाई हुई है. उसे नागरिकों पर खर्च करने में कोताही का कोई कारण नहीं है.

अमेरिका व यूरोप बौद्धिक संपदा पर अपना अड़ियल रवैया ढीला कर रहे हैं, इस पर ताली बजाने वाले हम लोगों को खुद से पूछना चाहिए न कि हम अपने यहां क्या कर रहे हैं? हम अपने यहां वैक्सीन बना रही कंपनियों से इस पर अपना अधिकार छोड़ देने को क्यों नहीं कह रहे हैं? अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए और वैक्सीन बनाने की कमियां तुरंत हासिल कर, उसका उत्पादन हर संभव जगहों पर विकेंद्रित किया जाना चाहिए. कोरोना नियंत्रण केंद्रीय संचालन समिति बन जाएगी तो वह इन सारे कदमों का संयोजन करेगी. यह रुपये-दवाइयां-वेंटिलेटर-ऑक्सीजन आदि गिनने का नहीं, नागरिकों को गिनने का वक्त है. आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि भ्रष्टाचारियों को उनके सबसे निकट के बिजली के खंभे से लटका दिया जाएगा. वे वैसा कर नहीं सके लेकिन आज उससे कम करने से बात बनेगी नहीं.

एक आदेश से मनरेगा को मजबूत आर्थिक आधार दे कर व्यापक करने की जरूरत है जिसमें सड़कें, खेती आदि के काम से आगे जा कर सारे ग्रामीण जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने, बांधों की मरम्मत करने, गांवों तक बिजली पहुंचाने की व्यवस्था खड़ी करने, कोरोना केंद्रों तक लोगों को लाने ले जाने का काम शामिल करना चाहिए. मनरेगा को बैठे-ठाले का काम नहीं, पुनर्निर्माण का जन आंदोलन बनाना चाहिए.

शवों के अंतिम संस्कार को हमने कोरोना काल में कितना अमानवीय बना दिया है. स्कूल-कॉलेज के प्राध्यापकों को यह जिम्मेवारी दी जानी चाहिए ताकि हर किसी के विश्वास के अनुरूप उसे संसार से विदाई दी जा सके. इन सारे कामों में संक्रमण का खतरा है. इसलिए सावधानी से काम करना है लेकिन यह समझना भी है कि निष्क्रियता से इसका मुकाबला संभव नहीं है. यह तो घरों में घुस कर हमें मार ही रहा है. राजनीतिक दांव-पेंच से दूर इतने सारे मोर्चों पर एक साथ काम शुरू हो, सामाजिक व्यवस्थाएं अस्पतालों पर आ पड़ा असहनीय बोझ कम करें, युद्ध-स्तर पर वैक्सीन लगाई जाए तो कोरोना की विकरालता कम होने लगेगी. जानकार कह रहे हैं कि तीसरी लहर आने ही वाली है. आएगी तो हम उसका मुकाबला भी कर लेंगे क्योंकि तब हमारे पास एक मजबूत ढांचा खड़ा होगा. कोरोना हमारे भीतर कायरता नहीं, सक्रियता का बोध जगाए, तो जो असमय चले गए उन सबसे हम माफी मांगने लायक बनेंगे.

Also see
article imageप्रधानमंत्री वैक्सीनेशन नीति में पारदर्शिता लाएं
article imageन्यूज़ पोटली 16: उन्नाव में नदी किनारे तैरते मिले शव, ईद के मौके पर तालिबान और अफगानी सेना के बीच संघर्ष विराम

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like