दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और विवादों पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस बार टिप्पणी में मध्य अमेरिकी देश होंडुरास की कहानी. बनाना रिपब्लिक, आप सबने यह नाम शायद सुना होगा. ठेठ में समझना हो तो ऐसे समझ लीजिए कि बाहर से खूबसूरत, एकदम कड़क दिखने वाला एक केला. लेकिन थोड़ा सा मसल दीजिए तो पिलपिला हो जाता है. यानि एक पिलपिला लोकतंत्र.यह शब्द दुनिया के उन देशों को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल होता है जहां लोकतंत्र या तो नहीं है या फिर दिखावे का है. सत्ता और संसाधन कुछेक व्यापारियों, सेनाओं के हाथ बंधुआ हैं.बनाना रिपब्लिक के तार होंडुरास से जुड़े हैं
19वीं सदी के अंत तक एक अमेरिकी कंपनी ने होंडुरास के भारी-भरकम जमीनों को अपने कब्जे में लेकर वहां केले की खेती करना शुरू कर दिया. इसका नाम था युनाइटेड फ्रूट कंपनी. अमेरिका के ठंडे प्रदेशों के मुकाबले होंडुरास की आबोहवा और सस्ता मानवश्रम केले की खेती के लिए बेहद मुफीद था.
यह केला युनाइटेड फ्रूट कंपनी अमेरिका और दुनिया के दीगर हिस्सों में बेचती थी. केले के इस धंधे ने एक ऐसे संगठित तंत्र को जन्म दिया जिसमें अमेरिकी सरकार और युनाइटेड फ्रूट कंपनी मिलकर होंडुरास में सरकार और सेना को मनचाहे तरीके से संचालित करने लगे. मकसद सिर्फ इतना था होंडुरास के उस भारी-भरकम जमीन के हिस्से पर अपना कब्जा बना रहे जहां केले की खेती करके युनाइटेड फ्रूट कंपनी मोटा मुनाफा कमा रही थी. सरकार बनाने-बिगाड़ने का यह फार्मूला बाद में अमेरिका ने तमाम लैटिन अमेरिकी देशों में भी इस्तेमाल किया.
सौ-डेढ़ सौ साल पहले होंडुरास में जमीनों पर कब्जे के जरिए बनाना रिपब्लिक की शुरुआत हुई थी, बात वहां से अब बहुत आगे बढ़ चुकी है. अब सिर्फ ज़मीन ही सरकारों का संसाधन नहीं है. कोयला खदान, नदियां, पहाड़ के अलावा टूजी स्पेक्ट्रम, फोरजी स्पेक्ट्रम जैसे तमाम संसाधन हैं जिन्हें सरकारें बांटती हैं.
बनाना रिपब्लिक की तमाम बुराइयों में सबसे अहम बात यह है कि इन देशों में लोकतांत्रिक संस्थाएं यानी इंस्टीट्यूशन्स कभी भी मजबूत नहीं हो सके. अदालतें कभी लोगों का विश्वास नहीं जीत पायी, चुनाव कभी निष्पक्ष नहीं हो सके.लोकतंत्र में चेक एंड बैलेंस के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं का मजबूत होना बहुत जरूरी है. इस लिहाज से भारत भाग्यशाली है. 70 साल के इस परिपक्व लोकतंत्र में तमाम ऐसी लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं जिनपर हम नाज कर सकते हैं. इस देश ने सफलतापूर्वक 17 चुनाव करवाए हैं.
इस हफ्ते बनाना रिपब्लिक की कहानी के साथ खबरिया चैनलों के अंडरवर्ल्ड से कुछ और दिलचस्प कहानियां.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
ContributeGeneral elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?