ऑक्सीजन, अस्पतालों में बिस्तर और दवाइयों की मांग करने वालों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ, नाराज नागरिकों ने अपने सांसद के लिए "गुमशुदा" वाले पोस्टर बांट दिए हैं.
नागरिक अपनी मदद खुद करने के लिए मजबूर
भोपाल के नाराज नागरिकों ने अब अपने जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी ठहराने के लिए अभियान शुरू कर दिए हैं.
28 वर्षीय मोहसिन खान ने नेताओं के पोस्टरों और उनसे संपर्क करने की जानकारी के साथ "घंटी बजाओ, भोपाल बचाओ" अभियान शुरू किया है, जिसमें वह नागरिकों से उन्हें फोन कर "उनको नींद से जगाने" को कह रहे हैं. इन नेताओं में प्रज्ञा सिंह ठाकुर और भोपाल से कई विधायक जैसे विश्वास सारंग, आरिफ मसूद, रामेश्वर शर्मा, कृष्णा गौड़ और आरिफ अकील शामिल हैं.
मोहसिन कहते हैं, "हमने यह अभियान इसलिए शुरू किया क्योंकि लोगों को मूलभूत चीजों की भी बहुत ज़्यादा ज़रूरत थी और उनकी मदद करने वाला कोई नहीं था. उन्हें ऑक्सीजन अस्पतालों में बिस्तर दवाइयां इत्यादि नहीं मिल पा रहे. अस्पताल में भर्ती होने से लेकर श्मशान में अंतिम संस्कार या कब्रिस्तान तक संघर्ष करना पड़ रहा है. लोग असहाय हैं और उनकी सहायता करने वाला कोई नहीं है."
मसूद बताते हैं कि कुछ विधायक आगे आए हैं, जैसे कि भाजपा के रामेश्वर शर्मा और विश्वास सारंग तथा कांग्रेस के आरिफ मसूद. लेकिन उनका कहना है, "प्रज्ञा ठाकुर कहीं दिखाई नहीं पड़तीं. वह सोशल मीडिया तक पर नैतिक तौर पर भी सहायता नहीं कर रहीं. वह केवल केंद्र और राज्य सरकारों के संदेश साझा कर रही हैं और उसके साथ त्योहारों की शुभकामनाएं दे रही हैं."
मसूद खान ने यह भी कहा कि पिछले साल कोविड-19 की पहली लहर में भी प्रज्ञा सिंह ठाकुर गायब रही थीं. तब भी उनके लापता होने के पोस्टर बंट गए थे और उनके दल ने कहा था कि उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में "कैंसर और आंखों के इलाज" के लिए भर्ती कराया गया है.
भोपाल की एक डॉक्टर 24 वर्षीय अनुप्रिया सोनी ने कहा कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने अपने "दायित्वों को तिलांजलि" दे दी है.
अनुप्रिया कहती हैं, "लोग त्रस्त हैं और मर रहे हैं. पूरी तरह कोहराम मचा हुआ है लेकिन वह सक्रिय नहीं हैं. वह केंद्र में हमारी प्रतिनिधि हैं और वहां से शहर के लिए स्वास्थ्य संसाधन लाना उनसे अपेक्षित है. वह अपनी सांसद निधि का उपयोग ऑक्सीजन और बाकी स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के लिए कर सकती हैं."
अनुप्रिया ने यह भी कहा कि कोई नहीं जानता प्रज्ञा सिंह ठाकुर कहां हैं. वे पूछती हैं, "क्या वह केवल 'जय श्री राम' का नारा लगाने के लिए हैं? लोग बहुत नाराज हैं और पूछ रहे हैं कि वह कहां हैं. वह लोग जिनके कुछ संबंध हैं, काम करा पा रहे हैं लेकिन आम आदमी का क्या जिसके बड़ी जगहों में दोस्त नहीं हैं? सामाजिक कार्यकर्ता और स्वयंसेवी मदद कर रहे हैं लेकिन उनके संसाधन सीमित हैं. वह एक सांसद हैं जिसके पास काफी संसाधन मौजूद हैं, वे उनका प्रयोग लोगों की मदद करने में क्यों नहीं करतीं?"
22 वर्षीय श्रेया वर्मा ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि उन्हें अपने पिता के इलाज के लिए रेमडेसिवीर का इंतजाम करने में 100 फोन कॉल और 4 दिन लगे. श्रेया कहती हैं, "ऐसी संकट की घड़ी में प्रज्ञा ठाकुर कहीं तस्वीर में हैं ही नहीं. सरकार तक की प्रतिक्रिया बहुत धीमी है, इतनी धीमी कि जांच के नतीजे आने के बाद कोविड के मरीजों की मदद के लिए मुख्यमंत्री हेल्पलाइन से एक हफ्ते बाद फोन आता है."
श्रेया के पिता के बाद उनकी मां भी कोविड-19 पॉजिटिव पाई गई थीं. उनकी मां के मामले में, राज्य की हेल्पलाइन से मदद मांगने पर जवाब 9 दिन बाद आया.
भोपाल के बहुत से नागरिकों के पास इस प्रकार की कहानियां हैं. 27 वर्षीय राजू कामले बताते हैं कि एक स्थानीय अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध ना होने की वजह से उनका 14 वर्षीय भतीजा गुज़र गया. उन्होंने कहा, "लोग मर रहे हैं और यह लोग उन्हें सुनने तक के लिए यहां नहीं हैं. मैं इससे ज्यादा क्या कह सकता हूं?"
भोपाल की एक सामाजिक कार्यकर्ता सीमा करूप ने बताया कि वह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर कहां हैं. वे कहती हैं, "उन्हें वोट देकर जनता का प्रतिनिधि इसलिए बनाया गया था जिससे कि हम उनसे संपर्क कर सकें. लेकिन लोगों ने उन्हें कभी संकट के समय नहीं देखा. वे सांप्रदायिक मामलों या दक्षिणपंथी दलों से जुड़े प्रदर्शनों के लिए बाहर आती हैं."
भाजपा की राज्य इकाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ने कहां की प्रज्ञा ठाकुर को "टिकट तुक्के से मिल गया था" और वह चुनाव मोदी लहर की वजह से जीत गईं. सूत्र ने बताया कि, "लेकिन उन्होंने अपने को एक राजनेता की तरह सांसद बनने के बाद भी विकसित नहीं किया. वह सांसद होने लायक नहीं हैं."