खनन का दंश झेल रही महिलाएं पर इसकी चर्चा तक नहीं होती

खनन की वजह से जमीन का ह्रास, रोजगार का संकट और जैव-विविधता पर बुरा असर हो रहा है. पर आस-पास रहने वाली महिलाएं भी इससे बुरी तरह से प्रभावित होती हैं, जिसकी चर्चा न के बराबर होती है.

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यह जगजाहिर है कि खनन की वजह से जमीन का ह्रास, रोजगार का संकट और जैव-विविधता पर बुरा असर हो रहा है. पर आस-पास रहने वाली महिलाएं भी इससे बुरी तरह से प्रभावित होती हैं, जिसकी चर्चा न के बराबर होती है.

देश में 87 तरह के खनिज पाए जाते हैं और इनकी खनन में महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. इनकी संख्या को देखते हुए ही 2019 में श्रम मंत्रालय ने भूमिगत खदानों में महिलाओं के काम करने की रोक हटा दी.

पर खनन में काम करने वाली महिलाओं के सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि अधिकतर महिलाएं खदानों में ठेके पर काम करती हैं.

पर यह तो स्पष्ट है कि किसी भी तरह का खदान हो- छोटे हो या बड़े, वैध या अवैध- यहां काम करने वाली महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है.

खदानों के आसपास रहने वाले लोग लगातार प्रदूषण से होने वाली बीमारियों का खतरा झेल रहे हैं. महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ता रहा है.

मोंगाबे-हिन्दी पर खनन का महिलाओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर कई खबरें प्रकाशित हुई हैं. इस वीडियो में महिलाओं पर खनन के दुष्प्रभावों को दिखाया गया है.

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मध्यप्रदेश: पन्ना के हीरा खदानों से निकलती बेरोजगारी, गरीबी और कुपोषण

मध्यप्रदेश का पन्ना जिला हीरे के लिए विख्यात है. इस हीरे की चमक में खदानों में काम करने वाले मजदूरों की कहानी कहीं खो जाती है. खासकर इन खदानों में काम करने वाले महिला मजदूरों की कहानी.

पन्ना जिला मध्य प्रदेश के उन कुछेक जिलों में आता है जहां बच्चों और महिलाओं में कुपोषण और एनीमिया (खून की कमी) सबसे अधिक है. खदान और घरेलू काम के बीच महिलाएं इस कदर उलझती हैं कि खाने का होश ही नहीं रहता.

राजस्थान: खनन ने लील लिया परिवार पर पापी पेट की वजह से खदान में वापस आने को मजबूर हैं महिलाएं

राजस्थान में कई प्रकार के पत्थरों का खनन बड़े पैमाने पर किया जाता है. इन पत्थर खदानों से निकली बारीक धूल मजदूरों के फेफड़ों में जमा होता रहती है. इससे कई तरह की बीमारियां होती हैं. इनमें एक जानलेवा बीमारी का नाम है सिलिकोसिस. इस बीमारी से हजारों लोगों की जान जा चुकी है.

राजस्थान के जोधपुर के पत्थर खदानों में अपनो को गंवाने के बाद अकेली महिलाओं की स्थिति गंभीर है. इन महिलाओं ने सिलिकोसिस और फेफड़े की अन्य बीमारियों में अपने पति और बेटों को खोया है. आलम यह है कि ये महिलाएं इन खदानों में काम करने को मजबूर हैं क्योंकि इन्हें कहीं से कोई मदद नहीं मिलता.

इस तरह सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारियों से इलाके की महिलाएं भी दम तोड़ रही हैं.

झारखंड: झारखंड में अभ्रक का अवैध खनन जारी, होने वाले जान-माल के नुकसान का कोई लेखा-जोखा नहीं

वर्षों पहले झारखंड में अभ्रक खनन पर रोक लगा दी गयी थी. पर न तो अभ्रक के खानों पर कोई काम हुआ और न ही उससे प्रभावित लोगों का पुनर्वास. नतीजा यह कि अवैध रूप से अभ्रक खनन जारी है.

कमजोर वर्ग के लोग अपने जीविकोपार्जन के लिए अभी भी ढिबरा यानी माइका स्क्रैप पर निर्भर है. इनके जान-माल के नुकसान का कोई हिसाब-किताब मौजूद नहीं है.

इन खदानों में काम करने वाली महिला और बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका विपरीत असर हो रहा है.

खनन का दंश झेल रही देश की महिलाएं, स्वास्थ्य से लेकर अस्मिता तक खतरे में

खनन प्रभावित इलाकों में पर्यावरण पर पड़ते असर की बात तो खूब होती है पर एक बड़ी आबादी के बढ़ते कष्ट का जिक्र लगभग नहीं के बराबर होता है. खनन वाले इलाकों में काम करने वाले जानकारों ने पाया है कि ऐसे इलाकों में महिलाओं की तस्करी और उनके खिलाफ अपराध की घटनाएं अधिक होती हैं.

जीने की जद्दोजहद में महिलाओं को मजदूरी और घरेलू काम करना पड़ता है जहां उनका शोषण होता है. रोजगार न मिलने पर महिलाएं देह व्यापार में भी धकेल दी जाती हैं. खनन का कुप्रभाव, महिलाओं के जीवन पर इस कदर होता है कि उनका मानसिक स्वास्थ्य भी खराब होता है.

राजस्थान: पौधों में जान डालने वाले फॉस्फेट के खदानों ने गांव के गांव कर दिए तबाह

राजस्थान के उदयपुर में फॉस्फोरस के खदान मौजूद हैं, जिनकी वजह से वहां के स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर हो रहा है. इस खदान से निकलने वाले जहरीले रसायनों की वजह से ग्रामीण टीबी और फेफड़े के कैंसर जैसी बीमारियां झेलने को अभिशप्त हैं.

गांव के लोगों का मानना है कि खनन की वजह से गांव की कई महिलाओं का गर्भपात हो चुका है. झामरकोटरा के अलावा उमरदा, लकड़वास, चांदसा जैसे 13 गांव खनन से प्रभावित हैं. इन गांवों में भील, माणा और गड़रिया आदिवासी रहते हैं.

(यह लेख मूलरूप से hindi.mongabay.com पर प्रकाशित हो चुका है)

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