राम भजन 15 अप्रैल को पंचायत ड्यूटी पूरी कर उर्वा से वापस गोरखपुर अपने घर लौट रहे थे. अचानक उनकी तबियत बिगड़ने लगी. उन्होंने अपने साले अतुल कुमार को कॉल किया और बताया कि उन्हें बदन में हरारत महसूस हो रही है. अतुल और राम भजन को लगा पंचायत ड्यूटी के चलते कमज़ोरी लग रही होगी. लेकिन रात को घर पहुंचने के बाद राम भजन को बुखार आ गया. रात 12 बजे उनके साले अतुल, राम भजन को सदर अस्पताल लेकर गए. वहां डॉक्टर ने राम भजन को इंजेक्शन लगाया. सबको लग रहा था कि उनकी हालत सुधर जाएगी. इसके बाद अगले दस दिन तक राम भजन की जिंदगी बचाने का संघर्ष चला लेकिन वो बच नहीं पाए.
अतुल बताते हैं, “अगले दिन राम भजन की तबियत बहुत ज़्यादा ख़राब हो गई थी तब हमने उनका एक्स-रे कराया. उनकी एक्स-रे रिपोर्ट में गड़बड़ी निकली. फिर हमने तिलक पैथलॉजी में उनका कोविड टेस्ट कराया जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई."
इसके बाद डॉक्टरों ने राम भजन को अस्पताल एडमिट करने को कहा. अतुल कहते हैं कि यह हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी. "सबसे बड़ी समस्या यही थी कि जीजाजी (राम भजन) को एडमिट कहां करें? किसी भी अस्पताल में बेड नहीं मिल रहा था. अलग-अलग अस्पतालों में हमारे लोग लाइन में खड़े रहे लेकिन कहीं से कोई बेड नहीं मिला. दो दिन बाद 17 अप्रैल को आर्यन अस्पताल में जगह मिली," अतुल कहते हैं.
भर्ती करने के बाद से ही राम भजन का ऑक्सीजन लेवल गिरना शुरू हो गया और उन्हें आईसीयू वार्ड में शिफ्ट किया गया जहां उन्हें ऑक्सीजन दी जाने लगी. "अस्पताल के पास ऑक्सीजन ख़त्म हो गयी थी. पहले हर घंटा ऑक्सीजन के लिए सौ रूपए अस्पताल को देने होते थे. फिर हमने जैसे-तैसे ऑक्सीजन सिलेंडर का प्रबंध किया लेकिन ऑक्सीजन ही कहीं नहीं मिल रही थी," अतुल बताते हैं.
29 अप्रैल को आईसीयू में राम भजन की तबियत ज़्यादा बिगड़ने लगी. 30 अप्रैल को ऑक्सीजन देने के बावजूद उनका ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा. तब अस्पताल ने राम भजन को वेंटिलेटर पर शिफ्ट किया. मुश्किलें अभी ख़त्म नहीं हुई थीं. अतुल ने बताया कि उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयां और रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए जगह-जगह भटकना पड़ा. उन्होंने 37 हजार रुपए देकर एक रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदा. राम भजन का इलाज दस दिन चला जिसमें परिवार के चार लाख रुपए खर्च हुए लेकिन, परिवार के इस संघर्ष का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला, उनकी जान नहीं बचाई जा सकी. राम भजन गोरखपुर के कोराबर ब्लॉक के रहने वाले हैं. परिवार में उनकी पत्नी और तीन साल की बेटी है.
राम भजन ने अस्पताल में अतुल से आखिरी बातचीत में बताया था कि पंचायत चुनाव के दौरान पोलिंग बूथ पर कोई व्यवस्था नहीं थी. सभी शिक्षक अपनी सावधानी खुद बरत रहे थे. प्रशासन की तरफ से न तो सैनिटाइज़र उपलब्ध कराया गया और न ही सामाजिक दूरी का पालन किया जा रहा था. राम भजन की ड्यूटी उनके घर से साठ किलोमीटर दूर लगी थी.
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ का दावा है कि राज्य में राम भजन जैसे 700 से ज़्यादा सरकारी स्कूलों के कर्मचारियों की कोविड के चलते मौत हो गई है. ये सभी कर्मचारी उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव की ड्यूटी पर तैनात किये गए थे. प्रदेश के शिक्षक संघ, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने जिला मेजिस्ट्रेट और राज्य चुनाव आयोग को पत्र लिखकर सबके लिए मुआवज़े की मांग की है. संघ का कहना है कि चुनाव के दौरान किसी भी कोरोना प्रोटोकॉल का ध्यान नहीं रखा गया जिसके चलते इतनी बड़ी संख्या में शिक्षा कर्मियों को जान से हाथ धोना पड़ा.
अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन के लिए भटकते रहे परिजन
सिहोरवा गांव के रहने वाले अजय कुमार चौधरी 15 अप्रैल को पंचायत चुनाव से ड्यूटी ख़त्म कर गोरखपुर शहर अपने घर लौट रहे थे. उनकी ड्यूटी गोरखपुर जनपथ के उर्वा ब्लॉक में लगाई गई. अजय पीठासन अधिकारी थे. 16 अप्रैल की शाम से उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. उन्हें गले में खराश महसूस हुई. अगली रात को उन्हें हल्का बुखार रहा. लेकिन 29 तारिख के बाद से अजय की सेहत गिरने लगी और कमज़ोरी महसूस करने लगे. ऑक्सीमीटर से जांच करने पर देखा गया कि अजय का ऑक्सीजन लेवल लगातार गिरता जा रहा था. अजय को तुरंत अस्पताल में भर्ती होने के लिए कहा गया.
हम सिहोरवा गांव पहुंचा जहां हमारी मुलाकात अजय के छोटे भाई अतुल से हुई. उन्होंने हमें बताया कि शहर में बेड और ऑक्सीजन ढूंढ़ने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. वेटिंग में नंबर लग रहा था. "30 अप्रैल को बेड नहीं मिला रहा था. पूरा गोरखपुर ढूंढ़ लिया. अजय को साथ लेकर गोरखपुर में जगह- जगह घूमे. बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 370 वेटिंग चल रही थी. जुगाड़ से एक बेड की व्यवस्था हो पाई. अजय का एक्स-रे कराया गया जिससे पता चला कि उन्हें कोरोना है. उन्हें कोरोना वार्ड में रखा गया था जहां किसी परिजन को जाने नहीं दिया जा रहा था," अतुल ने बताया.
आपको बता दें कि अजय की आरटी पीसीआर रिपोर्ट अब तक (4 मई तक) नहीं आई है. कोरोना से लड़ते-लड़ते एक मई की सुबह सात बजे अजय ने अस्पताल में दम तोड़ दिया. अजय कुमार के परिवार में उनकी पत्नी और एक तीन साल की बच्ची है.
अजय के भाई अतुल ने उनसे हुई बातचीत का ज़िक्र हमसे किया. "अजय ने मुझे बताया कि पंचायत चुनाव के दिन व्यवस्था बहुत ख़राब थी. हर ब्लॉक पर छह से आठ हज़ार लोग थे. धक्का-मुक्की के बीच कागज़ लिए गए. पोलिंग बूथ पर सैनिटाइज़र की कोई व्यवस्था नहीं थी. लोग सामाजिक दूरी का पालन नहीं कर रहे थे. मगर कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था," अजय ने बताया.
सिहोरवा गांव के लोग बताते हैं कि अजय कुमार चौहान होशियार व्यक्ति थे और हमेशा दूसरों की मदद करने को तैयार रहते थे. अजय होटल मैनेजमेंट में स्नातक थे. गोरखपुर में बीटीसी के पदों पर भर्ती निकली थी, जिसमें अजय का नाम मेरिट लिस्ट में आ गया और उन्होंने टीचर के पद पर ज्वाइन किया.