"हम मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के गवाह बन रहे हैं"

भारत में कोविड की तबाही के पीछे की राजनीति.

WrittenBy:अरुंधति रॉय
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सोशल मीडिया पर हैशटैग #ModiMustResign ट्रेंड कर रहा है. कुछ मीम्स और इलस्ट्रेशंस में मोदी की दाढ़ी के पीछे से झांकते हुए कंकाल दिखाए गए हैं. मसीहा मोदी लाशों की एक रैली में भाषण दे रहे हैं. गिद्धों के रूप में मोदी और अमित शाह, क्षितिज पर लाशों के लिए नजरें गड़ाए हैं जिनसे वोट की फसलें काटी जानी हैं. लेकिन यह कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है. दूसरा पहलू है कि भावनाओं से खाली एक आदमी, खाली आंखों और अनमनी मुस्कान वाला एक आदमी, अतीत के इतने सारे तानाशाहों की तरह, दूसरों में उग्र भावनाएं जगा सकता है. उसकी बीमारी संक्रामक है. और यही है जो उसे अलग बनाता है. उत्तर भारत में, जहां उनका सबसे बड़ा वोटिंग जनाधार है, और जो अपनी शुद्ध संख्या के बूते, मुल्क की राजनीतिक किस्मत का फैसला करता रहता है, वहां उनके द्वारा दिया गया दर्द एक अजीबोगरीब आनंद में तब्दील होता हुआ दिखता है.

फ्रेडरिक डगलस ने सही कहा था: “तानाशाहों की सीमाएं उन लोगों की सहनशीलता से तय होती हैं, जिनपर वे जुल्म करते हैं.” भारत में हम सहनशीलता की अपनी काबिलियत पर कितना गर्व करते हैं. कितनी खूबसूरती से हमने अपने गुस्से से मुक्ति पाने की खातिर ध्यान लगाने और एकाग्र होने के लिए, और बराबरी को अपनाने में अपनी नाकाबिलियत को सही ठहराने के लिए खुद को प्रशिक्षित किया है. कितनी बेबसी से हम अपनी तौहीनी को गले लगा लेते हैं.

जब उन्होंने 2001 में गुजरात के नए मुख्यमंत्री के रूप में अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी, तो उस घटना के बाद मोदी ने भावी पीढ़ियों के लिए अपनी जगह पक्की बना ली थी, जिसे 2002 गुजरात कत्लेआम के नाम से जाना जाता है. कुछेक दिनों के भीतर, हत्यारी हिंदू भीड़ ने, गुजरात पुलिस की आंखों के सामने और कभी-कभी सक्रिय मदद के साथ, हजारों मुसलमानों की हत्या की, बलात्कार किया, जिंदा जलाया. यह सब एक ट्रेन पर आगजनी के एक भयानक हमले के “बदले” के रूप में किया गया, जिसमें 50 से अधिक हिंदू तीर्थयात्री जिंदा जल गए थे. एक बार हिंसा थमने के बाद, मोदी ने, जो उस समय तक अपनी पार्टी की तरफ से एक मनोनीत मुख्यमंत्री थे, समय से पहले चुनावों की घोषणा कर दी. उन्हें हिंदू हृदय सम्राट के रूप में पेश करने वाले अभियान ने उन्हें एक भारी जीत दिलाई. तब से लेकर मोदी ने एक भी चुनाव नहीं हारा है.

गुजरात कत्लेआम के अनेक हत्यारे बाद में इस बात की शेखी बघारते हुए पत्रकार आशीष खेतान द्वारा कैमरे पर रेकॉर्ड किए गए, कि उन्होंने कैसे लोगों को गोद-गोद कर मार डाला, गर्भवती औरतों का पेट चीर कर खोल दिया और नवजात बच्चों का सिर पत्थर पर पटक कर तोड़ दिया. उन्होंने कहा कि उन्होंने जो कुछ किया, वह सिर्फ इसलिए कर सके क्योंकि मोदी मुख्यमंत्री थे. वे टेप राष्ट्रीय टीवी पर दिखाए गए. जहां मोदी सत्ता में बने रहे, वहीं खेतान, जिनके टेपों को अदालतों को सौंपा गया और जिनकी फोरेंसिक जांच हुई, अनेक मौकों पर गवाह के रूप में हाजिर हुए हैं. समय गुजरने के साथ, कुछ हत्यारे गिरफ्तार किए गए, जेल में रहे, लेकिन अनेक को छोड़ दिया गया. अपनी हालिया किताब अंडरकवर: माई जर्नी इंटू द डार्कनेस ऑफ हिंदुत्वा में खेतान बताते हैं कि कैसे मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की हुकूमत के दौरान, गुजरात पुलिस, जज, वकील, अभियोजनकर्ता और जांच समितियों सबने मिल कर सबूतों के साथ छेड़-छाड़ की, गवाहों को धमकाया और जजों का तबादला किया.

यह सब जानने के बावजूद, भारत के अनेक तथाकथित जनबुद्धिजीवी, यहां की बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के सीईओ और उनके मालिकाने वाले मीडिया घरानों ने कड़ी मेहनत करते हुए मोदी के प्रधानमंत्री बनने की राह तैयार की. हममें से जो लोग अपनी आलोचना पर कायम रहे उनको उन्होंने जलील किया और चुप कराने की कोशिश की. “आगे बढ़ो,” उनका मंत्र था. यहां तक कि आज भी, जब वे मोदी के लिए कुछ कड़े शब्द कहते हैं तो उसकी धार को कुंद करने के लिए वे उनकी भाषण कला और उनकी “कड़ी मेहनत” की तारीफें करना नहीं भूलते. कहीं अधिक सख्ती से वे विपक्षी दलों के राजनेताओं की निंदा करते हैं और उन पर धौंस दिखा कर उन्हें अपमानित करते हैं. अपनी खास नफरत को वे कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी के लिए बचा कर रखते हैं, जो ऐसे अकेले राजनेता हैं जिन्होंने आने वाले कोविड संकट की लगातार चेतावनी दी और बार-बार सरकार से मांग की कि वह जितना संभव हो सकता था वह खुद को इसके लिए तैयार करे. सभी विपक्षी दलों को बर्बाद करने के इसके अभियान में सत्ताधारी दल की मदद करना लोकतंत्र को बर्बाद करने में मिलीभगत के बराबर है.

तो अब हम यहां हैं, सामूहिक रूप से उनके बनाए हुए जहन्नुम में, जहां एक लोकतंत्र के कामकाज के लिए बुनियादी रूप से जरूरी हरेक स्वतंत्र संस्थान को संकट में डाल कर, खोखला बना दिया गया है, और जहां एक वायरस है जो बेकाबू है.

संकट पैदा करने वाली यह मशीन जिसे हम अपनी सरकार कहते हैं हमें इस तबाही से निकाल पाने के काबिल नहीं है. खास कर इसलिए कि इस सरकार में एक आदमी अकेले फैसले करता है और वह आदमी खतरनाक है – और बहुत समझदार नहीं है. यह वायरस एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है. इससे निबटने के लिए, कम से कम महामारी के नियंत्रण और प्रशासन के लिए, फैसले लेने का काम एक किस्म की गैर दलगत संस्था के हाथों में जाना होगा जिसमें सत्ताधारी दल के सदस्य, विपक्ष के सदस्य और स्वास्थ्य और सार्वजनिक नीतियों के विशेषज्ञ शामिल हों.

जहां तक मोदी की बात है, क्या अपने अपराधों से इस्तीफा देना एक मुमकिन गुंजाइश है? शायद वे बस उनसे एक मोहलत ही ले लें – अपनी कड़ी मेहनत से एक मोहलत. उनके लिए एक 56.4 करोड़ डॉलर का एक बोईंग 777, एयर इंडिया वन का जहाज एक वीवीआईपी सफर के लिए, असल में उनके लिए, तैयार है और फिलहाल रनवे पर बेकार खड़ा है. वे और उनके आदमी बस छोड़ कर चले जा सकते हैं. बाकी के हम लोग उनकी गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए जो कुछ हो सकेगा करेंगे.

नहीं, भारत को अलग-थलग नहीं किया जा सकता. हमें मदद की ज़रूरत है.

अनुवाद: रेयाज़ुल हक़

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