स्वास्थ्य संबंधी समिति ने मेडिकल ऑक्सीजन और अस्पताल में बिस्तरों की कमी को रेखांकित किया था. ऐसा लगता है कि सरकार ने इस रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया.
भारत का जन स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाला खर्च 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद के 0.9 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 मई 1.1 प्रतिशत हो गया है, लेकिन यह हमारे ही जैसे देशों से तुलना में बहुत कम है. पिछले 5 सालों में बजट का उपयोग 100 प्रतिशत से ज्यादा रहा है. इसके बावजूद 2020-21 के आर्थिक सर्वे ने दिखाया कि 189 देशों में से, सरकार के बजट में स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता देने पर भारत 179वें स्थान पर है और सर्वे ने इस खर्चे में बढ़ोतरी की मांग की.
सुझाव
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई कदम, संभावित दूसरी लहर से निपटने के लिए सुझाए. रिपोर्ट कहती है, "समिति का यह मानना है कि खराब सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं वाले जिलों और राज्यों की पहचान प्राथमिकता से की जाए और उन्हें संक्रमित लोगों की पहचान, जांच और इलाज के लिए आवश्यक आर्थिक सहायता दी जाए."
ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की खस्ता हालत किसी से नहीं छुपी है और अगर दूसरी लहर गांव तक पहुंचती है तो इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कोरोनावायरस की जांच होने से पहले ही लोगों के सांस न ले पाने और बुखार से मरने की खबरें आ रही हैं.
एक और महत्वपूर्ण सुझाव मेडिकल ऑक्सीजन और अस्पतालों में बिस्तरों की कमी को लेकर था. "कोविड-19 महामारी की पहली लहर के हालातों को देखकर सांसदों ने कहा कि वह स्वास्थ्य व्यवस्था की खस्ता हालत को देखकर आहत हैं और सरकार को यह सुझाव देते हैं कि स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाया जाए और देश में स्वास्थ्य सेवाओं और व्यवस्थाओं के विकेंद्रीकरण के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं."
रिपोर्ट कहती है, "यह समिति इस बात का संज्ञान लेती है कि अस्पताल में बिस्तरों की कमी और जुगाड़ू वेंटिलेटरों की वजह से महामारी को रोक सकना, और भी जटिल है. जैसे-जैसे मामले बढ़ रहे हैं, एक खाली अस्पताल के बिस्तर को हड़बड़ाहट में ढूंढना भी काफी विचलित करने वाला काम हो गया है. अस्पताल के बाहर मरीजों को खाली बिस्तर ना होने की वजह से लौटा देना एक आम बात हो गई है. एम्स पटना में ऑक्सीजन सिलेंडर उठाए लोगों का इधर से उधर बिस्तर की तलाश में भागना ऐसा तथ्य है जो मानवता के दो फाड़ कर सकता है.
क्या आपको यह बात जानी पहचानी लगी? यह अभी भी हो रहा है लेकिन अब इसका प्रकोप कहीं ज्यादा और मारक है.
5 महीने पहले की 190 पन्नों की इस रिपोर्ट में कई और अवलोकन, सीख और सुझाव हैं जो महामारी की आने वाली दूसरी लहर और सरकार को उसे रोकने के लिए क्या करना चाहिए, उल्लेखित है. आज की भयावह स्थिति को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि सरकार के किसी भी नीति निर्माता ने रिपोर्ट पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
सलिल आहूजा के सहयोग से.
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.