"यह निश्चित तौर पर गंभीर घटना है. आश्चर्य का विषय है कि बिना किसी कारण, किसी के कहने से प्रशासन ने मरीज़ को गंभीर दशा में एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट किया और दूसरे अस्पताल में उसे भर्ती तक नहीं किया गया."
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने राहुल रजक के पिता आनंद रजक से बात की तो वह कहते हैं, "हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हो गया सर. हम तो नौगांव (छतरपुर) से अपने बच्चे का इलाज कराने आये थे. हमें बिड़ला अस्पताल यह कहकर पहुंचा दिया था कि हमारे बच्चे को वहां भर्ती करेंगे. हमें केएम से डिस्चार्ज करवा कर वहां भिजवा दिया था और फिर वहां पहुंचने पर मेरे बेटे को भर्ती नहीं किया गया. मैंने बिड़ला अस्पताल के डॉ. देसाई से लाख मिन्नतें की लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी. मैंने सबके सामने उनके आगे हाथ जोड़े लेकिन उन्होंने मेरे बेटे को भर्ती नहीं किया और गाड़ी में बैठकर चले गए. मैं क्या बताऊं सर मेरा बेटा मेरे सामने तड़प-तड़प कर मर गया था.
गौरतलब है कि आनंद रजक को जिस नंबर से फ़ोन आया था वह ग्वालियर के कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह का था और उनके अलावा एक अन्य व्यक्ति डॉ. प्रतीक ने भी उनसे बात की थी जो कि कलेक्टर सिंह द्वारा बनायी गयी टीम का हिस्सा हैं. आंनद को आश्वासन दिलाया गया था कि उनके बेटे को बिड़ला अस्पताल में भर्ती कर दिया जाएगा. बिड़ला अस्पताल में जब उनके बेटे को भर्ती नहीं किया गया था तो उन्होंने कलेक्टर के नंबर पर कई बार फ़ोन किये थे लेकिन किसी ने फ़ोन नहीं उठाया.
कौशलेन्द्र सिंह कहते हैं ,"मेरे पास यह मामला आया था और मुझे बताया गया था कि मरीज़ की हालत ठीक नहीं है इसलिए उन्हें दूसरे अस्पताल में भर्ती करना था. मैं अपनी मर्ज़ी से क्यों किसी व्यक्ति को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भेजूंगा, इसमें मेरा क्या फायदा हो सकता. कहीं ट्वीट वगैरह हुआ था उसके बाद मेरे पास निर्देश आये थे. हमें किसी का फ़ोन आया था लेकिन मैं यह नहीं बता सकता कि किसका फ़ोन आया था. जैसे ही मरीज का नंबर हमारे पास आया तो हमने उनसे संपर्क किया.
जब हमने उनसे राहुल को बिड़ला अस्पताल में भर्ती नहीं किये जाने की बात पूछी तो सिंह के पास उसका कोई वाजिब जवाब नहीं दे पाए, वह कहते हैं, "हमारी टीम के डॉ. प्रतीक भी उनके संपर्क में थे. ऐसी बात नहीं है कि उन्हें भर्ती नहीं किया गया था उनकी तबीयत बहुत खराब थी, उनको बचाने की कोशिश की गई थी लेकिन बचा नही पाये."
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने राहुल के परिवार वालों का फ़ोन क्यों नहीं उठाया तो वह कहते हैं, "शायद उस वक़्त फोन व्यस्त हो इस वजह से बात नहीं हो पाई."
जब सिंधिया या उनके दफ्तर से कॉल आने के बारे में सिंह से हमने पूछा तो वह सीधा जवाब ना देते हुए कहते हैं, "हो सकता है कि कॉल उनके यहां से आया हो, या हो सकता है उनके परिवार ने उनसे संपर्क किया हो या किसी और ने संपर्क किया हो."
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में जब बिड़ला अस्पताल के डॉ. एसएल देसाई से मरीज को भर्ती नहीं किये जाने के सवाल किये तो वह कहते हैं, "हमने मरीज को दो बार सीपीआर दिया था." इसके बाद उन्होंने फोन काट दिया और फिर दोबारा फ़ोन नहीं उठाया.
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में ज्योतिरादित्य सिंधिया से बात की तो वह कहते हैं, "हमें इस बात का बहुत खेद कि एक ज़िन्दगी चली गयी. मैंने ट्वीट भी किया था और उस मरीज़ की हालत के मद्देनज़र कलेक्टर से भी बोला था कि उन्हें उस अस्पताल में भर्ती कराये. लेकिन उन्हें किस वजह से भर्ती नहीं किया गया यह मुझे नहीं पता है. लेकिन कलेक्टर से बात कर इस मामले की जांच होगी और उन कारणों का पता लगाया जाएगा. मुझे खुद उस व्यक्ति कि मृत्यु का बहुत अफ़सोस है और इस बात का गिला रहेगा. हर ज़िन्दगी कीमती है."
सिंधिया आगे कहते हैं, "लेकिन आप सिर्फ इस मामले को ही मत देखिये मुझसे जितना बन पड़ रहा है मैं लोगों की मदद कर रहा हूं और करता रहूंगा. मैंने पिछले 15 दिनों में जो काम किया है आप उसको भी देखिये.