एक्सक्लूसिव: भीमा-कोरेगांव मामले में सबूत प्लांट करने के और पुख्ता सबूत मिले

अमेरिका की एक प्रमुख डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी ने गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन के लैपटॉप को हैक करने और उनमें 22 फाइलों को प्लांट करने के 'अकाट्य' प्रमाण दिए हैं.

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रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि कैसे अटैकर ने फाइल को प्लांट करने की कमांड लिखते हुए गलतियां की और फिर उन्हें ठीक भी किया.

"किसी अटैकर को गलतियां करते हुए देखना दुर्लभ है, इसलिए हमारे लिए कोई भी गलती पकड़ना बेहद अहम है," स्पेंसर ने कहा.

आर्सेनल ने हमारे सामने कई सबूत पेश किए जो इस बात के अकाट्य साक्ष्य हैं कि रोना विल्सन का कंप्यूटर नेटवायर के जरिए संचालित किया जा रहा था. उनमें यह स्क्रीनग्रैब भी शामिल है:

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"यह अटैकर के कमांड-एंड-कंट्रोल सर्वर के साथ नेटवयर के संपर्क को दिखाता है जिसे हमने रोना विल्सन के कंप्यूटर विंडोज हाइबरनेशन से बरामद किया है," स्पेंसर ने कहा. "हाइबरनेशन 14 जनवरी, 2018 को हुआ. उस आईपी एड्रेस के होस्ट का नाम हमने पहली रिपोर्ट में जारी कर दिया है. लेकिन अब लोग बतौर उदाहरण यह देख सकते हैं कि हमारे पास कितनी जानकारियां हैं."

लैपटॉप के अलावा, हार्ड-डिस्क और पैन ड्राइव की फाइलें भी विल्सन और अन्य लोगों पर शिकंजा कसने में इस्तेमाल हुईं. अटैकर ने यह सुनिश्चित किया कि हुक होने पर फाइलें विल्सन के कंप्यूटर से बाहरी हार्ड-ड्राइव पर खुद-ब-खुद ट्रांसफर हो जाएं.

"आपको हमारी बात पर आंख मूंद कर भरोसा करने की जरूरत नहीं है. पहली और दूसरी रिपोर्ट में जो जानकारियां साझा की गई हैं वह कोई भी पेशेवर डिजिटल फॉरेंसिक विशेषज्ञ इन्हीं इलेक्ट्रॉनिक सबूतों का इस्तेमाल करके निकाल सकता है," स्पेंसर ने कहा.

स्पेंसर ने बताया, "प्रॉसेस ट्री ने अटैकर को रंगे हाथों पकड़ा है. यह बहुत स्पष्ट रूप से बताता है कि अटैकर ने कैसे रोना विल्सन के कंप्यूटर में उन्हें "फंसाने वाली" फाइलों को डाला.”

स्पेंसर ने कहा, "यह उस तरह की खोज है जो तकनीकी दुनिया से जुड़े लोगों के लिए चमत्कार जैसी है." स्पेंसर ने 2013 के बोस्टन मैराथन में हुई बमबारी और तुर्की के एक पत्रकार के खिलाफ 2014 में लगे आतंकवाद के झूठे आरोपों की जांच की थी.

एनआईए: हमारे पास इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के अलावा भी साक्ष्य हैं

एक विशेष अदालत में आर्सेनल द्वारा जारी की गयी पहली रिपोर्ट के आधार पर आनंद तेलतुंबड़े के वकीलों ने जब जमानत की अर्जी लगाई तब एनआईए ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इन निष्कर्षों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह "प्रमाणिक” नहीं हैं. राज्य की पुलिस और एनआईए द्वारा दायर सैकड़ों पन्नों के आरोप पत्र विल्सन और अन्यों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बरामद किए गए सबूतों पर ही आधारित हैं, जिनकी विश्वसनीयता अब एक स्वतंत्र फोरेंसिक संस्था सवाल उठा रही है.

10 फरवरी को दिये गए एक बयान में एनआईए ने अप्रत्यक्ष तौर पर आर्सेनल की पहली रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

“न्यायालय में दायर आरोप पत्र में जिस फोरेंसिक रिपोर्ट्स का हवाला दिया गया है वो एक मान्यता प्राप्त लैब से है जो कि भारतीय अदालतों द्वारा स्वीकृत है. इस मामले में यह काम पुणे में रीजनल फॉरेंसिक साइंस लैब द्वारा किया गया था. उनकी रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कोई मैलवेयर नहीं पाया गया था,” एनआईए की प्रवक्ता रॉय ने कहा. "बाकी सब तथ्यों की तोड़मरोड़ है."

हमने अदालत में अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की समीक्षा की. वे दिखाते हैं कि मामले के जांच अधिकारी ने 13 अक्टूबर, 2018 को फॉरेंसिक लैब को यह बताने के लिए कहा कि आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. सरकारी लैब ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. इसके बाद अभियोजन पक्ष ने कहा कि अभी कुछ और फॉरेंसिक रिपोर्ट्स का इंतजार किया जा रहा है. चार्जशीट में शामिल एनआईए की रिपोर्ट में भी यह उल्लेख किया गया है, "कुछ खास एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी) रिपोर्ट्स अभी तक प्राप्त नहीं हुई हैं."

हमने इस विषय पर एनआईए के प्रवक्ता रॉय से प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने कहा, “एनआईए ने पहले ही मामले में आरोप पत्र दायर कर दिया है और मामला फिलहाल अदालत में विचाराधीन है. मैं अदालत के किसी भी मामले पर टिप्पणी नहीं करूंगी.”

हमारा सवाल खास उसी बिंदु पर केंद्रित था जिसके मुताबिक आरएफएसएल ने रिकॉर्ड पर साक्ष्यों के छेड़छाड़ से संबंधित कोई जवाब नहीं दिया था.

शुरुआत में पुलिस और बाद में एनआईए ने, अपने द्वारा दायर दस्तावेजों में दावा किया कि उनके पास आरोपियों के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के अलावा भी अन्य सबूत हैं. तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों ने आरोप लगाया है कि सरकार ने अपनी विचारधारा के खिलाफ होने के कारण इन कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए सबूत गढ़े हैं.

विल्सन के वकील मिहिर देसाई जो कि एक वरिष्ठ वकील हैं, ने कहा, "मानवाधिकार रक्षकों को इस तरह से निशाना बनाने और फंसाने के लिए 2014 से एक कार्यप्रणाली तैयार की गयी थी ताकि ये लोग लंबे समय तक कानूनी चक्करों में उलझे रहें."

"स्ट्रैटेजी एंड टैक्टिक्स ऑफ इंडियन रेवोल्यूशन' नाम का एक दस्तावेज जिसे अधिकरियों ने एक इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज के तौर पर पेश किया था वो कोई गुप्त दस्तावेज नहीं है. यह सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है”, उन्होंने कहा. और वाकई में सिर्फ एक गूगल सर्च करने पर ये दस्तावेज हमारे सामने आ गए.

‘भड़काऊ गीत, भ्रामक इतिहास’: अन्य साक्ष्य

इन 16 व्यक्तियों के खिलाफ अपने केस को मजबूत बनाने के लिए लिए पुणे पुलिस ने इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स और चश्मदीद गवाहों के अलावा एल्गार परिषद में "पिछड़े समुदाय" के बीच प्रचलित "उत्तेजक" गीतों, "भ्रामक इतिहास" के प्रसार और "माओवादी विचारधारा को फैलाने" के प्रयासों का हवाला दिया है. चार्जशीट में ये कथित 'सबूत' एनआईए द्वारा अदालत में सभी 16 आरोपितों के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

इन सभी गतिविधियों को राजद्रोह और भारत को अस्थिर करने के प्रयासों के बराबर माना गया है.

इस आयोजन में प्रतिरोध के जो गीत गाए गए थे और चार्जशीट में जिनका हवाला साजिश के सबूतों के तौर पर दिया गया है उनके बारे में सवाल करने पर देसाई ने उल्टा हमसे ही पूछ लिया, “ये गीत किसके प्रति भड़काने वाले थे?"

“विरोध और जाति-विरोधी गीत महाराष्ट्र में एक परंपरा है. अन्नाभाऊ साठे, शाहिर अमर शेख, डीएन गवनकर और विलास घोगरे और संभाजी भगत जैसे गाथागीत कहने वाले राज्य के सांस्कृतिक परिवेश का हिस्सा हैं," महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारकों और क्रांतिकारी कवियों के जरिए उन्होंने हमें समझाया.

16 आरोपितों के खिलाफ चल रहे मामले में कबीर कला मंच (एल्गार परिषद का एक सांस्कृतिक संगठन) की प्रस्तुतियां भी लोगों के मन में "सरकार के खिलाफ नफरत पैदा करने" के प्रयासों के रूप में सूचीबद्ध हैं.

चार्जशीट में कथित तौर पर समूह द्वारा प्रस्तुत किये गए गाने के बोल भी सूचीबद्ध हैं, जैसे कि-

"जब जुल्म हो तो बगावत होनी चाहिए शहर में, अगर बगावत ना हो तो, बेहतर है के, ये रात ढलने से पहले शहर जल कर राख हो जाए"

चार्जशीट के अनुसार दस्तावेजों में यह दिखता है कि विल्सन सहित 16 अन्य आरोपी ये मान चुके थे कि दलित, बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ हो चुके हैं क्योंकि वो उन्हें ब्राह्मण हितैषी मानते हैं. इस सबसे चार्जशीट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि 16 आरोपित दलितों की इस भावना का इस्तेमाल बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ करके अराजकता पैदा करना चाहते थे. इतना ही नहीं, इस तथाकथित सबूत के जरिए जांच संस्थाओं ने यह निष्कर्ष भी दिया है कि ये सभी बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता और कवि भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ काम कर रहे थे.

पुलिस की चार्जशीट के एक खास पैराग्राफ कहता है, "जब्त किए गए पत्राचार में यह कहा गया है कि पिछड़े समुदाय की सोच ब्राह्मण हितैषी बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ हो चुकी है. आरोपितों का सोचना था कि इस तरह की अशांति का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया जा सकता है और लोगों को बड़े पैमाने पर सरकार के खिलाफ संगठित कर बड़े पैमाने पर अराजकता फैलाई जाए.

(श्रीगिरीश जालीहल रिपोर्टर्स कलेक्टिव के एक सदस्य हैं. यह स्टोरी आर्टिकल 14 द्वारा अंग्रेजी में प्रकाशित की जा चुकी है.)

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