मानवता विरोधी है वैक्सीन राष्ट्रवाद और उपनिवेशवाद

धनी देशों ने टीके का ज़ख़ीरा जमा कर लिया है. फ़रवरी मध्य तक 130 देशों में एक भी खुराक नहीं दी गयी थी, लेकिन अमेरिका के पास अपनी आबादी का तीन गुना टीका उपलब्ध है.

WrittenBy:प्रकाश के रे
Date:
Article image

भारत ने इस साल मार्च में भी धनी देशों की आलोचना करते हुए संगठन से आग्रह किया था कि इस मुद्दे पर जल्दी फ़ैसला लिया जाना चाहिए. जैसा कि अर्थशास्त्री जोसेफ़ स्टिगलिज़ ने रेखांकित किया है, विश्व व्यापार संगठन के समझौते में विशेष परिस्थितियों में पेटेंट नियमन से छूट का प्रावधान है, पर विभिन्न देश कूटनीतिक कारणों से उनका इस्तेमाल करने में हिचकते हैं क्योंकि बौद्धिक संपदा अधिकार के नाम पर अमेरिका अक्सर पाबंदियों की चेतावनी देता रहता है. ख़ैर, बाइडेन प्रशासन के इस बयान से कुछ उम्मीद बंधी है कि अमेरिका इस मुद्दे पर विचार कर रहा है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने महामारी से निपटने को अपनी पहली प्राथमिकता बनाया है और वे पेटेंट कानूनों में थोड़े समय की छूट देकर दुनिया की बड़ी मदद कर सकते हैं. इससे अमेरिका को भी फ़ायदा होगा. विश्व नेताओं और सम्मानित व्यक्तियों ने अपने पत्र में लिखा है कि महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति प्रक्रिया में बाधा पहुंचने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हो रहा है. यह मुद्दा जितना आर्थिक है, उससे कहीं अधिक राजनीतिक और नैतिक है.

यदि वैक्सीन के व्यापक उत्पादन का रास्ता खुलता है, महामारी पर जल्दी क़ाबू पाया जा सकता है तथा भविष्य की तैयारियों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है. कई देशों में वैक्सीन फैक्ट्रियां ख़ाली पड़ी हैं. टीके की कमी का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सामान्य स्थिति में विभिन्न रोगों के लिए दुनिया को क़रीब 60 फ़ीसदी टीका मुहैया कराने वाले भारत को आज कोरोना टीकों का आयात करना पड़ रहा है, जबकि बीते महीनों में भारत ने कई देशों को खुराक भेजी थी, पर भयावह दूसरी लहर ने हिसाब बिगाड़ दिया है और टीके की भारी किल्लत हो गयी है. जनवरी से मार्च के बीच भारत ने 6.40 करोड़ खुराक विदेश भेजा था, पर मध्य अप्रैल तक यह आंकड़ा केवल 12 लाख रहा है.

कुछ देशों को छोड़ दें, तो भारत समेत बहुत सारे देशों में कई कारणों से स्थिति ख़राब हुई है. इनमें से एक वजह विवेकपूर्ण दृष्टि का अभाव और प्रशासनिक लापरवाही रही है. इसकी ज़िम्मेदारी सरकारों को लेनी चाहिए. लेकिन अब नयी समझ से और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से महामारी का मुक़ाबला किया जाना चाहिए. दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है. अकिन ओल्ला ने लिखा है कि पुराने औपनिवेशिक तौर-तरीकों को फिर से थोपा जा रहा है. टीकों की जमाख़ोरी और उत्पादन पर एकाधिकार के अलावा धनी देशों का एक और रवैया चिंताजनक है. अमेरिकी मीडिया में ऐसे लेख लिखे जा रहे हैं कि अमेरिका के पास अपना वैश्विक वर्चस्व फिर से हासिल करने का मौक़ा है और ऐसा वह अपने टीकाकरण अभियान के बाद बची हुई करोड़ों खुराक विभिन्न देशों को देकर कर सकता है.

Also see
article imageकोरोना के टीके की विश्वसनीयता कितनी है, क्या ये म्युटेंट वायरस संस्करणों से लड़ सकते हैं?
article imageयूपी-उत्तराखंड बॉर्डर: हरिद्वार कुंभ में कोविड टेस्ट के नाम पर मनमानी

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like