कूच बिहार हत्याएं: 'केंद्रीय सशस्त्र बलों ने वोटरों की एक कतार पर गोलियां चलाईं, भीड़ पर नहीं

खबरों से इतर, जोरपटकी गांव के लोग दावा करते हैं कि केंद्रीय सशस्त्र बलों ने बूथ 126 पर लाइन में खड़े हुए वोटरों पर गोलियां चलाईं और चार लोगों को मार दिया. सीआईएसएफ ने आरोपों का खंडन किया है.

Article image

फजलुर्रहमान भाजपा सरकार के खिलाफ बोलते ही चले जाते हैं और वोटरों को दबाने की साजिशों की बातें करते हैं. लेकिन उनके साथ के गांव के लोग ही उन्हें अफवाहें न फैलाने और जो देखा वही बताने के लिए कहते हैं.

अंजूपा के पड़ोसी भी कहते हैं की उसके भाई सीआईएसएफ के लोगों की हिंसा करते हुए रिकॉर्डिंग कर रहे थे इसलिए उनके फोन भी छीन लिए गए.

मोनिरुल जमान, अपने पीछे घर पर अपनी पत्नी और एक छोटी सी बेटी छोड़ गए हैं. उनके मामा मस्जिद उल हक हमें बताते हैं कि उनका मीडिया से बात करने का कोई मूड नहीं है. वे कहते हैं, "मैंने अपनी कहानी 2 दिन लगातार बताई लेकिन उसे किसी ने अभी तक नहीं दिखाया. उन्होंने बस इतना ही दिखाया कि मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुझसे बात की. वे केवल वही दिखा रहे हैं जो दिलीप घोष कह रहा है, जिससे औरत अधिक पीड़ा पहुंचती है. उन्हें हमारा दर्द समझ ही नहीं आता."

28 वर्षीय मोनिरुल गंगतोक में मजदूरी का काम करता थे. मोनिरुल बताते हैं, "उसकी पत्नी ने 6 महीने पहले उसकी बेटी को जन्म दिया था लेकिन वह आ नहीं पाया क्योंकि उसके पास सफर के पैसे नहीं थे. उसे जो भी कमाया था वह सब उसने उनके पास भेज दिया था. मीडिया कह रहा है कि लोगों ने बूथ पर सुरक्षाकर्मियों के हथियार छीनने की कोशिश की. क्या आप सोचते हैं कि हम में से किसी की भी इतनी हिम्मत होगी? हम दिहाड़ी मजदूर हैं जो उनकी वर्दी और बंदूकों से डरते हैं. अगर वह कह रहे हैं कि एक भीड़ थी, क्या उनके पास उसका कोई वीडियो सबूत है?"

मोनिरुल जमान की बच्ची जिसे वह छह महीने से देख नहीं पा रहा था.

सीआईएसएफ के प्रवक्ता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वह जांच खत्म होने के बाद वीडियो रिलीज करेंगे. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कैमरे में क्या-क्या कैद हो उसकी भी सीमाएं हैं. वह ध्यान दिलाते हुए कहते हैं, "आपको ज्ञात ही होगा कि कैमरे पोलिंग बूथ के अंदर लगाए जाते हैं, ईवीएम मशीन की तरफ."

हमीदुल हक के घर पर सन्नाटा पसरा है. उनके कमजोर पिता हमारी तरफ देखते हैं और रोने लगते हैं. उनकी भाभी, जो फायरिंग शुरू होने पर महिलाओं की कतार में खड़ी थीं, उनके पास भी बाकी चश्मदीदों की तरह वही कहानी है. वे कहती हैं कि जैसे ही उन्हें समझ आया कि क्या हो रहा है वह भाग निकलीं. हमीदुल माथाभंगा में मिस्त्री का काम करता था और करीब 300 रुपए प्रति दिन कमाता था. उसकी पत्नी 9 महीने से गर्भवती है.

हमीदुल हक के अब तकअपने दो बेटे खो दिए हैं, एक को दिल का दौरा और एक को सीआईएसएफ की गोली ने मारा.

ऐसे ही दृश्य हमें नूर इस्लाम के घर पर मिलते हैं. उसके माता-पिता शांति से बस हमें घूरते रहते हैं. 19 वर्षीय नूर बूथ 126 के बगल में एक खेत में काम करता था और जब फायरिंग हुई तो अपने एक दोस्त से बात करने के लिए रुका था. उसके माता-पिता घटनाएं कैसे घटीं, इस पर कोई रोशनी नहीं डाल पाते सिवाय इसके कि उन्होंने अपने इकलौते कमाने वाले को खो दिया.

नूर इस्लाम के माता-पिता अपने घर के बाहर

माथा भंगा अस्पताल में 14 वर्षीय जाहिदुल हक एक बिस्तर पर आराम कर रहे हैं जहां उनकी मां उनकी बगल में है. पुलिस के अनुसार उसे ही पीटे जाने की अफवाह पर ही हिंसा शुरू हुई.

जाहिदुल हमें बताते हैं कि उसे वर्दी पहने हुए आदमियों ने सही में मारा. वह याद करते हुए बताते हैं, "मैं भाग नहीं रहा था, केवल तेजी से चलकर अपने घर लौट रहा था जब केंद्रीय बल के एक आदमी ने मुझे कंधे से पकड़ लिया. एक दूसरे जवान ने बोला 'ये एक बच्चा है, उसे जाने दो'. लेकिन उसने मुझे तब भी मारा. उसने मुझे एक डंडे से मेरी कमर और नितंबों पर मारा. उन्होंने मुझे बहुत जोर से नहीं मारा लेकिन जमीन पर धकेल दिया, मैं गिरा और बेहोश हो गया. मेरी आंखें अस्पताल के पास खुली और मुझे एहसास हुआ कि पुलिस मुझे यहां ले आई है. उन्होंने मुझसे अच्छे से बर्ताव किया."

हमसे बात करते हुए बच्चा रोना शुरू कर देता है और कहता है कि वह दोबारा से पिटना नहीं चाहता.

माथाभंगा के सब डिविजनल अस्पताल के निरीक्षक कहते हैं, “जाहिदुल मुझे बाहर लाया गया तो उसे गंभीर चोटें नहीं लगी थी लेकिन वह दहशत में था. उन्होंने यह भी कहा कि मारे गए आदमियों की छाती और कंधों में गोलियां लगी थीं. वह साथ में जोड़ते हैं कि, "पोस्टमार्टम से सही जानकारी पता लगेगी."

जोरपटकी के अल्पसंख्यक

बूथ 126 के पास रहने वाले लोग अधिकतर मुसलमान हैं. हिंदू जो अधिकतर अनुसूचित जाति राजबंशी से आते हैं, यहां अल्पसंख्यक हैं. हमने चार हिंदू परिवारों से पूछा कि वह हिंसा के बारे में क्या जानते हैं.

एक परिवार में हमें बताया गया कि जवान हिंदू पुरुष और महिलाएं वोटिंग वाली शाम फायरिंग के बाद भाग गए थे क्योंकि गांव में तनाव था. उन्हें प्रतिकार का डर था. वह यह शिकायत भी करते हैं कि "मुसलमानों" की तरफ से उन्हें वोट करने की इजाजत नहीं मिली है, इसलिए उन्हें नहीं पता बूथ पर क्या हुआ था.

एक जर्जर शरीर के बूढ़े व्यक्ति प्रोबेश बर्मन कहते हैं कि उन्हें धमकाया गया और चुनाव से 7 दिन पहले उन्हें कहा गया कि अपना वोट ना डालें. वह अपने को धमकाने वाले का नाम नहीं बताना चाहते लेकिन दावा करते हैं कि वोटिंग के दिन के अलावा हिंदुओं और मुसलमानों में कोई तनाव नहीं है. वे यह भी बताते हैं, "केवल 2019 लोकसभा चुनावों के अलावा, हमें अपना वोट डालने का अधिकार नहीं है. वह चुनाव बिना किसी परेशानी के बेहतरीन हुआ था." प्रोबेश कहते हैं कि उन्होंने 10 अप्रैल को वोट नहीं किया.

जिले के भाजपा नेता, संजय चक्रबर्ती आरोप लगाते हैं कि बूथ 136, 145 और 146 पर हिंदुओं को वोट डालने की इजाजत नहीं थी. हत्या वाले दिन ही एक भाजपा समर्थक आनंद बर्मन को संजय के अनुसार, गोली मार दी गई. उस मामले में दो लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. संजय यह भी बताते हैं, "पूरी तरह से ध्रुवीकरण हो चुका है. एक तरफ हिंदू और एक तरफ अल्पसंख्यक. सभी अल्पसंख्यकों को लगा कि अगर हिंदुओं को वोट करने दिया जाएगा तो भाजपा जीत जाएगी. और वह भाजपा के जीतने से इतना डरते हैं कि वह हिंदू वोटों में अड़चन डालते हैं जिससे कि तृणमूल कांग्रेस जीत सके."

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि 2018 के पंचायत चुनावों में वोटरों को दबाने की कारगुज़ारियां सर्वविदित हैं. बंगाल ने राजनीतिक हिंसा को लंबे समय से देखा है, जब कम्युनिस्ट और तृणमूल सत्ता के लिए खूनी संघर्ष में लगे थे.

भाजपा के बंगाल में प्रवेश से दलगत हिंसा की धरोहर ने एक सांप्रदायिक रंग ले लिया क्योंकि वोटरों के चुनाव सांप्रदायिक धाराओं में बंट गए. हालांकि हमने उनसे पूछा नहीं, लेकिन इसमें कोई रहस्य नहीं कि अधिकतर मुसलमान, जिनसे हमारी बात हुई, तृणमूल का समर्थन करते हैं. इतना ही नहीं मारे गए आदमियों के शरीरों को सत्ताधारी पार्टी के झंडे में लपेटा गया. जिन हिंदुओं से हमने बात की उनके घर के बाहर भाजपा के झंडे लगे हुए थे.

इसका अर्थ यह है कि वोटरों को दबाने के आरोप जो पहले दो दलों के बीच लगते थे अब दो संप्रदायों के बीच लग रहे हैं.

नरेश बर्मन बाएं और प्रोबेश बर्मन

निष्कर्ष

बंगाल में जिस दिन से चुनाव शुरू हुए, न्यूजलॉन्ड्री ने वोटरों को दबाने के आरोपों की पश्चिम मेदिनीपुर, नंदीग्राम, डायमंड हार्बर और कई और जगह जहां केंद्रीय बल तैनात हैं, पड़ताल की. कई मामलों में व्हाट्सएप पर घूमती अफवाहें अतिशयोक्ति का पुलिंदा थीं, और स्थानीय नागरिक तृणमूल कार्यकर्ताओं के दावों को झुठला देते थे.

ममता सरकार ने केंद्रीय बलों के प्रति अविश्वास को कूचबिहार की हिंसा से पहले इस प्रकार के वक्तव्यों से हवा दी है, "भाजपा की सीआरपीएफ लोगों को प्रताड़ित कर रही है और मार रही है." इस तरह के आरोपों ने मुस्लिम वोटरों के एक धड़े के अंदर केंद्र वाहिनी से देखा जा सकने वाला डर पैदा कर दिया है, जिनके बारे में वह मानते हैं कि वह उनका वोट छीन ले आई हैं. उन्होंने अफवाहों और डर फैलाने वाली बातों के लिए भी उपजाऊ जमीन पैदा की है, क्योंकि परिणाम स्वरूप होने वाले ध्रुवीकरण से भाजपा और तृणमूल दोनों को ही फायदा होने की संभावना है.

हमारे द्वारा पहले बताई गई घटनाओं और जोरपटकी में अंतर यह है कि यहां 4 आदमी मारे गए और अनेकों गांव वाले एकरूपता से, केंद्रीय सशस्त्र बलों के द्वारा बिना किसी कारण के गोली चलाए जाने का दावा कर रहे हैं.

अभी स्थिति यह है कि सीआईएसएफ और मारे गए लोगों में से एक के भाई, दोनों ही पक्षों ने एफआईआर कर दी है. कुछ बिहार के माथाभंगा के अतिरिक्त एसपी सिद्धार्थ दोरजी ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "सीआईएसएफ ने एक शिकायत दर्ज करवाई है. गांव वाले भी एक शिकायत लेकर हमारे पास पहुंचे. इस समय मामले की जांच चल रही है तो मैं अभी इससे अधिक कुछ नहीं कह सकता."

इसी बीच सीआईएसएफ के प्रवक्ता ने हमें बताया कि घटना एक राजनैतिक रूप ले चुकी है. उन्होंने कहा, "हम गांव वालों के वक्तव्य पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. बाद में कई तरह के हेरफेर हो सकते हैं, बातें प्लांट की जा सकती हैं. अब यह भीड़ और आम लोगों तक सीमित नहीं रहा, अब यह एक राजनीतिक मुद्दा है. आप खुद ही समझ सकते हैं कि किस हद तक वक्तव्य पूर्व निर्धारित किए जा सकते हैं." वह यह बात भी जोड़ते हैं कि पश्चिम बंगाल में हजारों कंपनियां लगी हुई हैं और किसी को सोचना चाहिए कि केवल एक ही बूथ पर ऐसी फायरिंग क्यों हुई. यह एक ऐसा सवाल है जिसे जोरपटकी के निवासी भी पूछ रहे हैं.

मारे गए लोगों के परिवार कम से कम एक साफ और निष्पक्ष जांच के हकदार हैं. और मीडिया उनके सच को भी सुनना शुरू कर सकता है.

अपडेट - यह कहानी प्रकाशित होने के बाद समाचार चैनलों ने बूथ नंबर 126 के तथाकथित कई वीडियो चलाएं. एक वीडियो कुछ गांव के लोगों को, जिसमें आदमी और औरतें दोनों शामिल हैं, पुलिस स्टेशन के पास डंडे लिए खड़े दिखते हैं. परिस्थिति तनाव से भरी दिखती है लेकिन कोई भीड़, जवानों पर हमला नहीं कर रही. इतना ही नहीं डंडे लिए हुए कुछ आदमी बूथ के बाहर खड़े हैं और पुलिस से बातें कर रहे हैं. कुछ पुलिस वाले उन्हें पोलिंग स्टेशन से दूर रहने के लिए कहते हैं.

एक जगह पर पुलिस वाले चुपचाप देखते हुए देखे जा सकते हैं जिस समय, कथित तौर पर केंद्रीय बलों के जवान पोलिंग बूथ की तरफ तेजी से बढ़ते हुए दिखाई देते हैं. फिर गोलियों की आवाज आती है, भगदड़ मचती है और गांव वाले बूथ पर चढ़ दौड़ते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री अभी इन वीडियो को सत्यापित नहीं कर पाई है.

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

Also see
article imageहिंदू परंपरा पर रामकृष्ण मिशन का रुख बंगाल के चुनावों में इतनी अहमियत क्यों रखता हैं?
article imageबंगाली हिंदुत्व: "पश्चिम बंगाल पूर्वी बांग्लादेश नहीं बन सकता अब हिन्दू प्रतिरोध का समय आ गया"
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like