हिंदुत्व के मनभावन मुद्दे, विवेकानंद विकास परिषद के सदस्यों के अपने मत के उम्मीदवार का चुनाव करने के कारणों पर उतना असर नहीं डालते. उनके लिए आत्मनिर्भरता ज्यादा महत्वपूर्ण है.
विष्णु प्रिया शाह 30 रुपए किलो के हिसाब से कागज के थैले बनाते हैं और महीने में 300 से 500 रुपए कमा लेती हैं. दीदी के लिए उनका संदेश है कि, वह उनके एक कमरे के घर में उन्हें छोटा सा व्यापार शुरू करने में मदद करें. उनके घर में श्री कृष्ण के चित्रों और गीता और कृष्ण के संदेशों की 3 किताबों से भरा छोटा सा मंदिर, अलग ही ध्यान खींचता है.
वे बताती हैं, "मैंने 100 रुपए प्रति किताब देखकर यह तीनों ख़रीदीं." विष्णु प्रिया किताब के संदेश से बहुत प्रभावित हुई हैं, और उसके बारे में बात करते हुए श्रद्धा से अपनी आंखें बंद कर लेती हैं और हाथ जोड़ लेती हैं. वह कहती हैं कि दलगत राजनीति निरर्थक है. उनका कहना है, "क्या मायने रखता है कि हम इंसान के रूप में एक-दूसरे के लिए कितने अच्छे हो सकते हैं. मैं कर्म और हम यहां क्यों आए हैं इस बारे में सोचती हूं."
यह भी कहती हैं कि वह दीदी के काम से खुश हैं और मोदी के आत्मनिर्भरता के वादे से प्रभावित हैं.
जितनी भी महिलाओं से हम मिले, उनमें से आरती चटर्जी, आरएसएस-भाजपा की राजनीति से सबसे ज्यादा वैचारिक मेल रखने वाली हैं. उनकी गुज़ारिश पर उनका नाम बदल दिया गया है. आरती सेवा भारती में काम नहीं करती और वहां कभी-कभी ही जा पाती हैं क्योंकि उनका कपड़े सिलने का काम के चलते उनके पास खाली समय नहीं है. हमसे बात करते हुए भी वह अपनी सिलाई मशीन पर फटाफट एक ब्लाउज़ सिल रही हैं.
उनकी सबसे बड़ी चिंता महिलाओं की सुरक्षा है. वे कहती हैं, "आदमी लोग यहां शराब पीते हैं और दिक्कत पैदा करते हैं. और इसका कारण यह है की हर सड़क के कोने पर एक बार है. अगर यह बार बंद हो जाएं तो चीजें सुधर सकती हैं और महिलाओं के लिए बाहर निकलना सुरक्षित हो सकता है."
वह देश के हालातों से ज्यादा प्रभावित नहीं हैं. वे पूछती हैं, "वह देश जो चावल 2 रुपए किलो बेच रहा हो क्या विकसित देश होगा? हर कोई दुकान पर जाकर बाजार के दाम 20 रुपए किलो के हिसाब से चावल खरीद सकने के लिए सक्षम होना चाहिए."
इसका मतलब आरती की मुख्य इच्छा, राज्य पर अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए निर्भर न होकर खुद चीजों को खरीदने के सक्षम होना है. पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेताओं में से उन्हें आरएसएस के पूर्व प्रचारक दिलीप घोष सबसे ज्यादा अच्छे लगते हैं क्योंकि, "भाई जैसे हैं वैसे ही दिखाई पड़ते हैं, कोई नकाब नहीं है."
आरती अपना नाम इसलिए नहीं बताना चाहतीं क्योंकि उन्हें, अपने राजनीतिक मत को प्रकट करने के परिणाम से डर है. वह भी ऐसे राज्य में जहां, हाल ही में राज्य में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दलों के बीच के मतभेद, खूनी झड़पों में तब्दील हो गए. वे कहती हैं, "डर तो है और मैं नहीं चाहती कि मेरा पति, मेरे नजरिए की वजह से मुसीबत में फंसे."
वह तीन तलाक के मुद्दे पर मोदी सरकार के मुस्लिम महिलाओं को मदद करने, और प्रधानमंत्री ने चीन की फौजों का लद्दाख से कैसे पलायन करवाया इससे बहुत प्रभावित हैं. लद्दाख में भारत की जीत का जिक्र करते हुए वह कहती हैं, "चीन और पाकिस्तान को अब हम से डर लगता है."
मोदी सरकार के अंदर, भारत की सैन्य शक्ति की जानकारी उन्हें आजतक, एबीपी आनंद, जी बांग्ला और zee24ghanta जैसे समाचार चैनलों से मिलती है. अगर इच्छापुर में 80 के दशक से आरएसएस का धीरे-धीरे सुदृढ से होने वाला काम, उन्हें हिंदुत्व की छतरी के नीचे भाजपा के फायदे के लिए लाया है, तो समाचार चैनल संघ परिवार को इसमें पछाड़ दे रहे हैं."
हमारा समय उनके साथ खत्म होने तक अपर्णा और आरती के बीच थोड़ी सी बहस तृणमूल कांग्रेस के काम के बारे में हो जाती है. कि वे संघ से जुड़े एक एनजीओ में काम करती हैं, लेकिन इस चुनाव में अपर्णा हमें दीदी की प्रचारक ज्यादा दिखाई पड़ती हैं. जो अपने सहकर्मियों को ममता सरकार की प्रशंसा करने के लिए कहती हैं और उन्हें राज्य सरकार की जिंदगी में बेहतरी लाने वाली योजनाओं की याद दिलाती हैं.
जब वे आरती के साथ ऐसा करने की कोशिश करती हैं तो उन्हें डांट पड़ती है. आरती उन्हें बताती हैं कि इन योजनाओं से कुछ नहीं होने वाला, "तुम्हें स्वास्थ्य साथी से 200-250 से रुपए फायदे के तौर पर मिल जाएंगे लेकिन उसके बाद कुछ नहीं, तुम देख लेना तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा."
हमारी बातचीत के दौरान पहली बार अपर्णा के अंदर ममता के अच्छे काम के लिए कुछ झिझक और उनके समर्थन में कुछ ढीलापन दिखाई पड़ता है- जब दूसरा उन्हें जोर-जोर से बोल कर एक बात भी नहीं करने देता. यह कुछ वैसा ही है जैसा उन टीवी पर होने वाली डिबेटों में होता है जब विपक्ष के प्रवक्ता का माइक बंद कर दिया जाता है, यह देखना आरती को पसंद है.