फैक्टचेक: 2011 से नए निर्माण की स्वीकृति नहीं तो फिर योगी सरकार ने कैसे कर दी 771 कस्तूरबा विद्यालयों की स्थापना

न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी पड़ताल में पाया कि कस्तूरबा विद्यालयों को लेकर विज्ञापन में बीजेपी ने गलत दावा किया है.

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उत्तर प्रदेश सरकार ने 6 अप्रैल को एक ट्वीट कर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा किए गए शिक्षा के कार्यों को साझा किया. राज्य की बीजेपी सरकार ने जो तस्वीर साझा की है उसमें कई दावे किए, इनमें से एक दावा यह था कि योगी सरकार ने 771 कस्तूरबा विद्यालयों की स्थापना की है.

उत्तर प्रदेश बीजेपी के इस विज्ञापन में सीएम योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, दोनों उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा की तस्वीर लगी है.

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इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने पड़ताल की जिसमें पाया कि कस्तूरबा विद्यालयों को लेकर विज्ञापन में बीजेपी ने गलत दावा किया है. दरअसल साल 2011 के बाद पूरे देश में किसी भी नए कस्तूरबा विद्यालयों के निर्माण की मंजूरी नहीं मिली है.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सत्ता साल 2017 के मार्च महीने में आई, उसी समय एक आंकड़ा जारी किया गया कि प्रदेश में कुल 746 स्कूल संचालित हैं, जिसमें से 727 की बिल्डिंग बन गई है जबकि 19 बिल्डिंग निर्माणाधीन हैं.

वहीं साल 2019 में लोकसभा में भाजपा सांसद अन्नासाहेब शंकर जौले ने देश में कस्तूरबा विद्यालयों की संख्या को लेकर सवाल पूछा था जिसके लिखित जवाब में मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने जवाब देते हुए बताया कि उत्तर प्रदेश में कुल 937 स्कूल स्वीकृत हैं लेकिन संचालित 775 हो रहे हैं.

लोकसभा में सरकार द्वारा दाखिल जवाब

साल 2011 के बाद से नहीं मिली मान्यता

कस्तूरबा विद्यालयों की स्थापना के दावों की सच्चाई जानने के लिए हमने पहले उत्तर प्रदेश में कस्तूरबा विद्यालयों को देखने वाले कमलाकर पांडेय से बातचीत की. वह वरिष्ठ विशेषज्ञ के पद पर कार्यरत हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “साल 2011 से कोई भी नए कस्तूरबा विद्यालयों को स्वीकृति नहीं मिली है. जो अभी स्कूल हैं सिर्फ उनको अपग्रेड करने का काम चल रहा है.”

कमलाकर कहते हैं, अभी प्रदेश में 746 कस्तूरबा स्कूल संचालित हो रहे हैं. जिनमें कुछ की बिल्डिंग निर्माणधीन है इसलिए उन स्कूलों की कक्षाएं दूसरे बिल्डिंग में संचालित हो रही हैं. नए स्कूल का निर्माण तो नहीं बल्कि सरकार का 2030 तक लक्ष्य है कि इन स्कूलों को 12वीं तक अपग्रेड कर दिया जाए. वर्तमान में इन स्कूलों में कक्षा 6 से 8 तक पढ़ाई हो रही है.

वह आगे कहते हैं, “कक्षाओं को अपग्रेड करने से पहले हमें बिल्डिंग बनानी होगी, बुनियादी सुविधाएं जुटानी होंगी तभी 12वीं तक स्कूलों को अपग्रेड किया जा सकता है जिसमें अभी समय लगेगा.”

हालांकि वह यह भी कहते हैं, “यूपी सरकार ने कस्तूरबा विद्यालयों के लिए बजट की घोषणा की है, जो अगले वित्तीय बजट में हमें मिलेगी.”

उत्तर प्रदेश बीजेपी का विज्ञापन भ्रामक इसलिए लगता है क्योंकि केंद्र सरकार जो इन विद्यालयों की स्वीकृति देती है उसके 2019 के आंकड़ों के अनुसार यूपी में 937 स्कूल स्वीकृत हैं, लेकिन संचालित 775 हो रहे हैं. वहीं उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध कस्तूरबा विद्यालयों के आंकड़ों की मानें तो साल 2017 में वहां 746 स्कूल संचालित हो रहे थे, जो की 2021 में भी उतने ही हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा

अब जब प्रदेश में साल 2017 से पहले ही 746 स्कूल संचालित हो रहे हैं तो कैसे बीजेपी सरकार ने 771 स्कूलों की स्थापना कर दी. यह संख्या कुल स्वीकृति स्कूलों की संख्या से ज्यादा है.

बीजेपी के इस आंकड़े पर हमने उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता समीर सिंह से बात की. वह कहते हैं, “मैंने यह ट्वीट नहीं देखा है अभी तक, इसलिए इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. आप इसके लिए मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी से बात कर लीजिए. इस बारे में उन्हें पता होगा.”

इसके बाद हमने शलभ मणि त्रिपाठी से बात करने की कोशिश की. इसके लिए हमने उन्हें फोन किया और मैसेज भी भेजा. हालांकि उनका अभी तक कोई जवाब नहीं आया. जवाब आने पर खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.

हमने उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. सतीश द्विवेदी से भी इन आंकड़ों पर बात करने की कोशिश की. उनके सहायक ने हमारा परिचय लेने के बाद कहा कि, मंत्री जी अभी मीटिंग में हैं, उनके फ्री होते ही आपको खुद ही फोन लगा दूंगा. फोन नहीं आने के बाद हमने उन्हें मैसेज के द्वारा सवाल भेज दिए हैं. जवाब आने पर खबर में शामिल कर लिया जाएगा.

कस्तूरबा विद्यालय हैं क्या

भारत सरकार ने साल 2004 में सभी को शिक्षा प्रदान करने के लिए और साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना की शुरुआत की थी. यह आवासीय विद्यालय अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग की बालिकाओं और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए शुरू किया गया था.

बता दें कि इस विद्यालय के खर्च में केंद्र सरकार 75 प्रतिशत और राज्य सरकार 25 प्रतिशत योगदान देती है. साल 2007 में इस विद्यालय को सर्व शिक्षा अभियान के तहत जोड़ने के बाद इसका तेजी से विकास हुआ.

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