बुधवार सुबह एक परिवार के चार लोगों को पुलिस उठाकर ले गई है. इससे पहले 24 मार्च को एक ही परिवार के छह लोगों को ले गई थी.
डर के साये में पूरा कैंप
एक सप्ताह के भीतर दस लोगों को हिरासत में लिए जाने से कालिंदी कुंज के रोहिंग्या कैंप में मातम पसरा हुआ है. लोग डर से काम पर नहीं जा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की जमीन पर बसे रोहिंग्या कैंप में हमारी मुलाकात 38 वर्षीय नूर कासिम से हुई. साल 2012 में म्यांमार से नदी के रास्ते भारत आने वाले कासिम अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ झुग्गी में बैठे हुए थे. डर की वजह से आज वे काम पर नहीं गए हैं.
कासिम कहते हैं, ‘‘हमारे पास तो सब कागज हैं लेकिन जिन्हें उठाकर ले जा रहे हैं उनके पास भी तो कागज हैं. ऐसे में डर बना हुआ है. पुलिस वाले कह रहे हैं कि सबको ऐसे ही उठाकर ले जाएंगे. नौ साल से यहां रह रहे हैं. पहले ऐसा नहीं हुआ. बीते एक महीने से कभी पुलिस वाले तो कभी कोई अजनबी आकर कहता है कि यहां से हट जाओ नहीं तो जल्दी ही खाली कराया जाएगा.’’
साल 2018 में रोहिंग्या कैंप में आग लग गई थी जिसमें 55 झुग्गियां जलकर खाक हो गईं. इसमें से एक घर नूर कासिम का भी था. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कासिम कहते हैं, ‘‘तब सुबह के 3 बजे किसी ने झुग्गी में आग लगा दी. हम सब सो रहे थे. सब कुछ जल गया. हम सिर्फ अपने बच्चों और कागजों को ही बचा पाए. सालों से हम यही कर रहे हैं. अपने परिजनों की जिंदगी और कागज बचाते भाग रहे हैं. म्यांमार की सरकार हमें अपना नहीं मानती है. भागकर यहां आए हैं ताकि जिंदगी बच जाए. अब यहां भी हमारे साथ गलत होने लगा. मेरे भाई बहन सब बांग्लादेश में हैं. उनसे साल में एक दो बार बात हो जाती है. यहां भले बिरयानी खाते हैं लेकिन बर्मा में शांति हो जाए तो वहां मिट्टी भी खाकर रह लेंगे.’’
दोपहर के करीब एक बजे कालिंदी कुंज के एक पुलिसकर्मी रोहिंग्या कैंप पहुंचे. उन्हें देखते ही लोगों की भीड़ जमा हो गई. कैंप के एक जिम्मेदार मोहम्मद सलीम से बात करके पुलिस वाला लौट गया. उस भीड़ में 35 वर्षीय तसलीमा भी थीं. वहां से लौटते हुए तसलीमा न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहती हैं, ‘‘पुलिस वालों को इधर देखकर डर लग रहा है. वे कह रहे हैं कि धीरे-धीरे सबको उठाकर ले जाएंगे. रात में नींद नहीं आती है. मेरे पति प्लंबर का काम करते हैं. दो दिनों से वे डर के कारण काम पर नहीं गए. छोटे-छोटे बच्चे हैं. ऐसे में अगर हमें उठाकर ले गए तो बच्चों का जीवन बर्बाद हो जाएगा.’’
बीते दिनों जम्मू में 168 रोहिंग्या मुसलमानों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये लोग आधिकारिक दस्तावेज के बिना शहर में रह रहे विदेशियों की पहचान करने के लिए यह अभियान चलाया गया था. नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट में पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि 168 अवैध प्रवासी रोहिंग्याओं को हीरानगर जेल भेजा गया है. ये फर्जी कागजात बनाकर रह रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जम्मू में पकड़े गए रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
जम्मू के अलावा भी देश के अलग-अलग हिस्सों में रोहिंग्या मुसलमानों की बढ़ती गिरफ्तारी के मामलों से यहां रहने वाले पहले से ही परेशान थे, लेकिन अब इनके आसपास गिरफ्तारी हो रही तो इनकी परेशानी और बढ़ गई है.
अनवर शाह न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हम अपने वतन से जिंदगी बचाकर भागे थे. यहां कब्जा करने नहीं आए हैं. लेकिन भारत की मीडिया हमें गलत तरह से पेश करती है. हम में से कोई गलत करेगा तो हम उसे बचाने नहीं आएंगे लेकिन जो लोग नियम से रह रहे हैं उन्हें क्यों परेशान किया जा रहा है. रोज-रोज परेशान करने से बेहतर हैं सरकार सभी रोहिंग्या लोगों को एक जगह इकठ्ठा करके उन्हें मार दे या समुद्र में डाल दे. रोज डर-डर के रहने से बेहतर हम एक बार में मर जाएंगे.’’
कानूनी सहयोग के सवाल पर बुधवार को गिरफ्तार हुए सुल्तान अहमद की बहू शनवारा कहती हैं, ‘‘हम लोग तो गरीब हैं. खाने तक के पैसे नहीं होते हैं. आप हमारा घर देखिए. ऐसे में हम क़ानूनी सहयोग कैसे ले सकते हैं. हम यहां यूएनएचसीआर के भरोसे हैं. वे लोग ही कुछ कर सकते हैं.’’
न्यूजलॉन्ड्री ने इस सिलसिले में यूएनएचसीआर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन हमारी बात नहीं हो पाई. उन्हें भी हमने सवाल भेज दिए हैं. जवाब आने पर उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
बता दें कि इस समय म्यांमार में तख्तापलट के बाद सेना ने सत्ता पर कब्जा किया हुआ है. वहां से हर रोज लोगों की हत्या की खबरें आ रही हैं. पत्रकारों को हिरासत में लिया जा रहा है. ऐसे में रोहिंग्या मुसलामनों को वापस भेजने के सवाल पर रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिसिएटिव से जुड़े साबिर न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘हम लोगों का बर्मा में जेनोसाइट हुआ. जिसकी जानकारी पूरी दुनिया को है. ऐसे में आपको हमें शेल्टर होम देना चाहिए. ऐसा न करके वापस भेजने के नाम पर लोगों को डराया जा रहा है. वापस भेजन के लिए ज़रूरी है बर्मा में शांति होना. आपको बर्मा में नागरिकों की सरकार आए इसके लिए काम करना पड़ेगा. वहां दोबारा लोगों की हत्या हो रही है. जिसकी आलोचना दुनिया भर में हो रही है. मिलिट्री वाले तानाशाही दिखा रहे हैं. भारत सरकार मिलिट्री के साथ है या नागरिकों के साथ यह भी स्पष्ट नहीं है.’’
लोगों को हिरासत में लिए जाने के सवाल पर साबिर कहते हैं, ‘‘हमें बस परेशान किया जा रहा है. क्या जिन लोगों को गिरफ्तार किया वे बिना यूएनएचसीआर के रिफ्यूजी कार्ड के यहां रह रहे थे? अगर ऐसा था तो पुलिस क्या कर रही थी. सबके पास रिफ्यूजी कार्ड है. कोरोना के समय में यूएनएचसीआर का ऑफिस बंद रहा तो कुछ लोग रिन्यू नहीं करा पाए. ऐसे में उन्हें उठाकर ले जाना परेशान करता है. अभी कुछ लोग कार्ड रिन्यू कराने दिल्ली आ रहे हैं तो उन्हें स्टेशन से ही उठा लिया जा रहा है. आप हमें मारना नहीं चाह रहे बल्कि डराकर मारना चाह रहे हैं.’’